मुरैना। (अजय दण्डौतिया की रिपोर्ट)। शहर के कोतवाली थाने में घटित हुए हंगामें में जब शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाने के आरोपी मुकेश जैन को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया तो उसके पक्ष में भाजपाईयों व अन्य दलों द्वारा पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए हंगामा करना शुरू कर दिया। यहां पर यह सवाल खड़ा होता है कि एक तो धोखाधड़ी के आरोपी बैंक मैनेजर आशीष जैन को छुडवाने के लिये मनोज जैन गए ही क्यों....? अगर अपनी रिश्तेदारी के चलते उन्हें आशीष जैन को छुडवाना ही था तो उन्होंने न्यायालय का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया...? उन्होंने थाने में आकर एक पुलिसकर्मी द्वारा 50 हजार रिश्वत मांगने की बात कही। अगर इस बात में सच्चाई भी है तो फिर क्या रिश्वत मांगने से ज्यादा रिश्वत देना एक बडा गुनाह नहीं है ...? अपने रिश्तेदार को रिश्वत देकर छुडवाना और फिर इस पर बात न बनने पर हंगामा करना कहां तक सही है ...? कोतवाली टीआई द्वारा नियम विरूद्ध पैसे लेकर आरोपी को छोडने से साफ इंकार करना क्या गलत था ? कोतवाली में पुलिसकर्मियों से गाली गलोंच करना व थाना प्रभारी से अभद्र भाषा का उपयोग करना क्या सच में एक समाज सेवी को शोभा देता है ? इसके अलावा कई राजनैतिक दल जिसमें भाजपा का मुख्य रूप से चेहरा सामने आया है क्या इनके द्वारा मनोज जैन की वकालत करना सही है ...? ऐसे कई सवाल हैं जिससे यह साफ सिद्ध होता है कि शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाने के आरोप में मुकेश जैन को गिरफ्तार करना बिल्कुल भी गलत नहीं था। फिर कुछ राजनैतिक व व्यापारिक संगठन मनोज जैन की आवाज बुलंद करने में क्या लगे हुए हैं यह समझ से परे है और तो और इनके एक भाई को भी पुलिस द्वारा जुआ खेलते रंगे हाथों पकडा गया था क्या उसी बात की खुन्नस मनोज जैन द्वारा निकाली गई थी ? बहरहाल जो भी हो लेकिन एक आरोपी का साथ देना और उसी आरोप के पक्ष में थाने में जाकर गाली गलोंच करना इसके बाद राजनैतिक दलों का पूरी तरह उक्त लोगों का साथ देना निश्चित ही पूरी तरह से गलत है।
रिश्वत देने वाला और लेने वाला दोनों गुनेहगार : एड. शिवाली
एडव्होकेड शिवाली दण्डौतिया ने बताया कि किसी को भी रिश्वत देना या किसी से रिश्वत लेना कानूनन अपराध है। रिश्वत लेने वाला तो दोषी होता ही है लेकिन उतना ही दोषी रिश्वत देने वाला भी होता है। अगर मनोज जैन ने पुलिसकर्मी द्वारा रिश्वत लेने की बात कही तो उन्हें उसकी शिकायत पुलिस के आला अधिकारियों से करनी चाहिए थी ना कि थाने में जाकर हंगामा करना चाहिए था। अगर वह नियम के तहत उक्त पुलिसकर्मी की शिकायत करते तो निश्चित ही कानून अपना काम करता है आरोप सिद्ध पाये जाने पर उक्त पुलिसकर्मी के खिलाफ कार्यवाही भी होती। लेकिन थाने में जाकर शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाना निश्चित ही कानूनन अपराध है।
अपनी छवि धूमिल कर रहे राजनेता
मनोज जैन के मामले में कई राजनैतिक दल सामने आकर खुलकर उनका साथ दे रहे हैं और तो और अपने आला नेताओं से मिलकर पुलिस के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग भी कर रहे हैं। एक ऐसा आरोपी जिसने थाने में जाकर अभद्र भाषा का उपयोग किया हो और एक 420 के आरोपी को छुडवाने की जिद पकडकर खडा हो तो क्या उसके पक्ष में खड़ा होना सही है ...? ऐसी क्या वजह है कि मनोज जैन के घाव देकर कुछ राजनेता इतने खफा हो गए कि उन्होंने पुलिस अधीक्षक का घेराव कर पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग करने लगे, जबकि आम लोगों के खिलाफ हो रहे अत्याचार को लेकर एक भी राजनेतिक दल इस तरह से न्याय दिलाने के लिए बेताव नहीं होता। आम लोगों में भी यह चर्चा बनी हुई है कि एक आरोपी का साथ देने वाले राजनेता अपनी ही छवि धूमिल करने में लगे हुए हैं।
क्या वोट बैंक के चलते दिया जा रहा है साथ
मनोज जैन का मामला आज पूरे शहर सहित जिले भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। कई लोगों द्वारा चाय की गुमठियों पर यह चर्चा जोरों-शोरों से की जा रही है कि एक राजनैतिक दल द्वारा मनोज जैन का साथ देने के पीछे का बडा कारण वोट बैंक भी हो सकता है। क्योंकि व्यापारियों का एक बडा वोट बैंक शहर में है। यह सर्व विदित है कि नगरीय निकाय चुनाव आने वाले हैं और इसको लेकर राजनेताओं में अपनी-अपनी दावेदारी भी ठोकी जा रही है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि व्यापारियों का एक बडा वोट बैंक है शायद यही वह कारण है जिसकी वजह से राजनैतिक दल मनोज जैन का साथ दे रहे हैं जिससे उसके वोट बैेंक में से कुछ वोट उन्हें भी मिल जायें।

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