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रेत या पत्थर माफिया कौन है ? इसकी हकीकत क्या है?

शनिवार, 12 जून 2021

/ by Vipin Shukla Mama
🌎 "चम्बल क्षेत्र"
       रेत की राजनीति
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भिण्ड, मुरैना, श्योपुरकलां के चंबल के किनारे का लगभग 300 किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र, चम्बल के किनारे के समानांतर मध्य प्रदेश की सीमा बनाता है।  श्योपुर कलां के ग्राम बड़ोदिया बिंदी से लेकर भिण्ड जिले की अटेर तहसील के चापक गांव तक चंबल के किनारे कि 01 किलोमीटर जमीन की पट्टी को सन् 1995 में राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य ( घड़ियाल पालने के लिए) अधिग्रहित किया गया था। तत्समय छोटे- बड़े लगभग 300 गांवों को विस्थापित करने का  नोटिफिकेशन मध्य प्रदेश सरकार द्वारा जारी किया गया। परंतु जुझारू किसान आंदोलन के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री को यह घोषणा करनी पड़ी कि चंबल अभ्यारण रेत तक सीमित रहेगा, 300 गांव खाली नहीं कराए जाएंगे। कुल मिलाकर किसान आंदोलन के चलते गांव तो बच गए। परंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार एवं वर्तमान भाजपा सरकार ने अघोषित रूप से 01 किलोमीटर जमीन को लेने की कार्यवाही जारी रखी। वर्तमान में चंबल के किनारे की एक किलोमीटर जमीन की पट्टी राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य के लिए अधिग्रहित एवं आरक्षित है। यह कार्यवाही कागजों में पूरी हो चुकी है। यहीं से चंबल के रेत का उत्खनन एवं परिवहन होता है। चंबल अभ्यारण वन विभाग के अंतर्गत आता है। इसलिए वन विभाग रेत के उत्खनन और परिवहन तथा उसमें प्रयुक्त होने वाले वाहनों ट्रैक्टर ट्रॉलीओं आदि को रोकने, रेत जप्त करने की कार्यवाही लगातार करता रहता है। इस तरह की कार्यवाहीयों में आईपीएस नरेंद्र सिंह शहीद हो गए हैं। ट्रैक्टरों की बेतहाशा भागदौड़ में कई मासूम बच्चों की जिंदगीयां चली गई हैं, कई निर्दोष असमय दुर्घटना के शिकार हो गए हैं। कई अधिकारी तथा कर्मचारी तथाकथित माफियाओं के हमले में घायल भी हो गए हैं। वर्तमान में अभ्यारण की अधीक्षिका श्रद्धा पंढारे टकराव लेकर कड़ी कार्रवाई करने, कई वाहनों को गोलीबारी के बीच राजसात करने के चलते चर्चा में हैं। लेकिन रेत या पत्थर माफिया कौन है ? इसकी हकीकत क्या है? इसकी गहराई से जांच पड़ताल किए जाने की जरूरत है। तभी इस समस्या का समाधान हो सकता है।
💥चंबल क्षेत्र में रेत माफिया कौन हैं? कैसे हैं?
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चंबल क्षेत्र में अवैध रूप से रेत उत्खनन एवं बिक्री तथा रिठौरा कला क्षेत्र में अवैध रूप से पत्थर उत्खनन एवं विक्री स्थानीय ग्राम वासियों द्वारा की जाती है । जिसमें एक जाति विशेष के लोग ही बहुतायत में शामिल हैं। क्योंकि घड़ियाल अभ्यारण का आरक्षित क्षेत्र होने से रेत का उत्खनन, परिवहन एवं बिक्री अवैध घोषित है। परंतु फिर भी यह अवैध कार्य राजनैतिक संरक्षण में जारी है। अक्सर इसका संरक्षण सत्तारूढ़ दल के राजनेताओं द्वारा किया जाता है। जो इस कार्य में संलिप्त युवा है, वे ज्यादातर बेरोजगारी के कारण ही इस कारोबार को कर रहे हैं। राजनीतिक संरक्षण में युवाओं के समूह जो इस कार्य को अंजाम देते हैं। बे कम उम्र में ही पढ़ने लिखने के काम को छोड़कर इस अपराध की दुनिया में जान की बाजी लगाकर कूद पड़ते हैं। जिसके चलते अनपढ़ बैरोजगार अपराधियों के समूह राजनेताओं को बिना किसी प्रयास के ही फॉलोवर्स के रूप में मिल जाते हैं। जिन्हें प्रचलित शब्दावली में तथाकथित माफिया कहा जाता है। यदि सरकार और राजनेता चाहे तो इन बेरोजगार युवाओं को अपराधी माफिया बनने से बचा सकते हैं। परंतु उनको मैदान में बिना प्रयास के समर्पित समर्थन कहां से मिलेगा। जो सरेआम किसी भी अपराधिक कृत्य को अंजाम दे सकते हैं। इन समूहों के  कई लोग कारगुज़ारियों में मारे भी जा चुके हैं। परंतु राजनेताओं को क्या उनका तो साम्राज्य कायम रहना चाहिए।
🌎आखिर इस समस्या का समाधान क्या है?
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निजी और सरकारी भवनों का निर्माण होना ही है। हर छोटी बड़ी गतिविधि के लिए रेत अत्यंत आवश्यक है। बिना रेत के भवनों का निर्माण संभव नहीं है। इसके बाद भी आखिर इसका समाधान क्यों नहीं निकाला जा रहा है। इस समस्या के हल के लिए पूर्व में भी चर्चाएं हुई है।आंदोलन  किए गए हैं। हल भी सुझाए गए हैं। जिनके अनुसार - चंबल के पिनाहट उसेद घाट, राजघाट, अटार घाट सहित लगभग एक दर्जन घाटो को रेत के लिए विधिवत रूप से खोला जाना चाहिए। जब भाजपा सत्ता में नहीं थी। तब उनका कहना था कि हम सत्ता में आएंगे तब इस समस्या का समाधान कर देंगे। अब प्रदेश में 15 वर्षों से तथा केंद्र में 7 वर्षों से भाजपा की सरकारें हैं। परंतु समस्या का समाधान करने के बजाय समस्या और विकराल हो गई है। क्योंकि समस्या का समाधान नहीं करना है। इसे जारी रखना है। तभी तो समर्थकों की फौज मिलेगी, अन्यथा कौन जुड़ेगा । समस्या का समाधान करने के लिए चंबल के ऊपर बताए हुए एक दर्जन घाटों को विधिवत रूप से खोलने के लिए वन विभाग से( केंद्र से) एनओसी लेना होगी। जो केंद्र सरकार के अधीन है । इसके पश्चात नीलामी के जरिए विधिवत रूप से रायल्टी निर्धारित कर, रेत उपलब्ध कराया जाए। जिससे बेरोजगार को ईमानदारी एवं मेहनत से काम ( रोजगार ) मिलेगा, माफिया रूपी दाग दामन से हटेगा। राष्ट्र के रूप में रॉयल्टी के रूप में सरकार की भी आमदनी होगी जनता को भी अपने मकान भवन आज निर्माण कार्यों के लिए सदा सरकारी निर्माण कार्यों के लिए नियमानुसार बिना चोरी के रेत उपलब्ध होगा। चंबल क्षेत्र में शांति बहाल होगी । परंतु रेत की राजनीति , जो तथाकथित माफिया, राजनेता, अधिकारी गठबंधन के जरिए चला रहे हैं। वह नहीं चल पाएगी। इस समस्या के समाधान के लिए बेरोजगारों , उपभोक्ताओं, किसानों शांत कामी  नागरिकों को आगे आना होगा सभी  इस ज्वालंत समस्या का समाधान संभव है।
 लेखक
 अशोक तिवारी
 प्रदेश उपाध्यक्ष
 मध्य प्रदेश किसान सभा

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