चाँदनी रातों में छत पर अब तु क्यों आया नहीं
चाँद भी उजला नज़र आये हमें भाया नहीं
आपकी हर बात पर हम मुस्करा के रह गये
आशिकी में ओ सनम कुछ भी जरा देखा नहीं
प्यार में मरने की कसमें खूब खाते हैं मगर
प्यार की रस्में निभाना भी ज़रा आता नहीं
जो खफा भी हो न पाए एक पल मुझसे कभी
दूरियाँ ला कर करीबी फिर वही लाता नहीं

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें