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इस उम्र में यूँ अचानक जाने वालों में सिद्धार्थ अकेले नहीं हैं: जानीमानी लेखिका मोनिका शर्मा

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

/ by Vipin Shukla Mama
इस उम्र में यूँ  अचानक जाने वालों में सिद्धार्थ अकेले नहीं हैं | ऐसा भी नहीं है कि  फिल्म-टीवी की दुनिया से जुड़े लोगों के साथ ही कम उम्र  में यूँ  दुनिया से विदा होने  के वाकये हो रहे हैं | महानगरों में ही नहीं अब तो गाँवों-कस्बों में भी दिल के दौरे या दूसरी कई सेहत से जुड़ी जानलेवा परेशानियां बढ़ रही हैं | 
इन मामलों को देखते हुए कुछ बातें हैं- जिनपर ध्यान दिया जाना हम सभी के लिए जरूरी है - 
पहली बात-   फिटनेस फितूर ना बने |  किसी जमाने में यह  पागलपन केवल जाने-माने चेहरों में होता था , पर अब लड़कों में फिटनेस के मायने सिर्फ बॉडी बिल्डिंग और लड़कियों में हद से ज्यादा दुबला होना समझ लिया गया है |  वजन  घटाना  हो या तयशुदा नापतौल के मुताबिक़ बॉडी बनाना | लिए कई तरह के सप्लीमेंट्स भी लिए जाते हैं | वर्क आउट अच्छा होता है पर ऐसे लोग ओवर वर्क आउट भी करते हैं | कभी दो-चार  दिन लगातार खाना-पीना, पार्टी और फिर घंटों जिम में लगे रहना | यह तरीका भीतर से बहुत कुछ बिगाड़ता रहता है | पता तब चलता जब टेस्ट करवाए जाएँ या यूँ अचानक कभी सांस  ही  रुक जाए , दिल धड़कना ही बंद कर दे | सिद्धार्थ जैसा शरीर बिना सप्लीमेंट्स और  हार्ड कोर वर्क आउट के नहीं बनता | समझ सकते हैं कि वे जिस क्षेत्र में थे एक दबाव भी होता है- जितना हो सके हीरोइक बनने-दिखने का  | पर आम लोग तो चेतें | परफैक्ट बॉडी पाने के इस फेर में आज हर उम्र के लोग फंसे हैं, खासकर युवा |  
दूसरी अहम वजह मन की अशांति है- लाउडनेस , जो आज के युवा चेहरों में बहुत ज्यादा है | बिग बॉस में सिद्धार्थ को देखते हुए कई बार लगा जैसे वे काफी  गुस्सैल और लाउड रहे होंगें व्यक्तिगत जीवन में भी | बोलते बोलते हांफ जाना,  गुस्से में हाथ पैर हिलते रहना, आमतौर  पर ऊंची आवाज़ में ही बोलना  |  यह सब देखते हुए सिद्धार्थ तब भी थोड़े असहज से लगे थे |  कहा जा  सकता है कि यह तो रियलिटी शो था -  शो में यह जानबूझकर भी किया जाता है | हाँ, किया जाता है  पर इस कार्यक्रम के अलावा भी उनको पत्रकारों से बात करते हुए देखा तो सहज आवाज या ठहराव नहीं दिखा कभी  (  उनके मामले में  मैं  गलत हो  सकती हूँ ) पर आजकल हर कोई  इसी असहजता को जी रहा  है | जरा कुछ मन को नहीं जमा और बस --- यह उग्रता मन को बीमार करती है |  शरीर के पोर पोर को नुकसान पहुंचाती है | हमारी हर बात कहीं भीतर तक असर करती है |  जाहिर है कि यह असर मन  और शरीर दोनों की ही सेहत बिगाड़ता है |    मुझे तो लगता है  बच्चों को शुरू से  ही थोड़ा शांत-सहज  व्यवहार और ठहराव के साथ जीना  सिखाना चाहिए।
तीसरी बात   आज ग्लैमर की दुनिया ही नहीं आम लोगों की लाइफस्टाइल भी अजीबोगरीब है |  अजीब सा असंतुलन है खाने-पीने , सोने जागने, बोलने -बतियाने और यहाँ तक कि समझने स्वीकारने में भी |  इन सब बातों से बनी जीवनशैली को थोड़ा  बाजार ने तो थोड़ा खुद के कम्फर्ट ने 'ट्रेंड' का नाम दे दिया है | अब, घर में, कमरे में, हमारे आस-पास बिखरा  सामान, ट्रेंड है- जंक फ़ूड खाना, ट्रेंड है - कुछ भी  काम खुद न करके जिम में वेट्स उठाना, ट्रेंड है - रिश्तों में, घर में चुप्पी और सोशल मीडिया पर बहस, ट्रेंड है---- और भी बहुत कुछ | अंतहीन लिस्ट है यह | पर हम समझते ही नहीं कि यह सारी बातें स्वास्थ्य से जुड़ी हैं  और बहुत गहराई से जुड़ी है | चारदीवारी में घर बना बैठी चुप्पी और बाहरी दुनिया में दिखावे की आदत तनाव की बड़ी वजह है आज  |  कुछ भी औरों के मुताबिक ना कर पाने ( भले ही वे अपने घर के बड़े ही क्यों ना  हों  ?) डिप्रेशन का अहम कारण है | ऐसा सब कुछ बहुत हद तक  दिल की सेहत  बिगाड़ता है |धमनियों में  कोलेस्ट्रोल के  थक्के  ही नहीं बनते.. यह सब भी वहीँ कहीं दिल में ही जमता है |  
चौथी बात - रिश्तों में ठहराव जरूरी है |  दोस्त , जीवन साथी या गर्ल फ्रेंड-ब्यॉय फ्रेंड - ( कमाई, सुन्दरता, कामयाबी  जैसे कई मापदंडों पर)  कुछ बेहतर- और बेहतर और और बेहतर का कुचक्र भी स्ट्रेस और डिप्रेशन की ओर ले जाता है | कभी  किसी से जुड़ना फिर टूटना |   फिर किसी से जुड़ना  फिर टूटना |  देखने में लगता है जैसे कोई बड़ी बात नहीं | पर ऐसे मेलजोल मन-मस्तिष्क को बहुत प्रभावित करते हैं | आये दिन की उलझनें शरीर के अच्छे-बुरे हारमोंस पर प्रभाव डालती हैं | 
जीवन बचाने के लिए, सेहतमंद जिन्दगी जीने के लिए और जीते जी थोड़ी सहजता को साथी बनाने के लिए -- एक ठहराव, सौम्यता और सहजता जरूरी है |  थोड़ा ठहरिये और सोचिये |  (आमतौर पर सामाजिक मनोवैज्ञानिक विषयों  पर लिखती पढ़ती रहती हूँ तो अपनी बात कही-  सिद्धार्थ  का जाना वाकई मन व्यथित कर गया | उम्र के ऐसे पड़ाव पर दुनिया छोड़ने वाले बच्चों के माता-पिता के  दुःख के बारे में सोचकर  भी बहुत पीड़ा होती है | सादर नमन )

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