इस उम्र में यूँ अचानक जाने वालों में सिद्धार्थ अकेले नहीं हैं | ऐसा भी नहीं है कि फिल्म-टीवी की दुनिया से जुड़े लोगों के साथ ही कम उम्र में यूँ दुनिया से विदा होने के वाकये हो रहे हैं | महानगरों में ही नहीं अब तो गाँवों-कस्बों में भी दिल के दौरे या दूसरी कई सेहत से जुड़ी जानलेवा परेशानियां बढ़ रही हैं |
पहली बात- फिटनेस फितूर ना बने | किसी जमाने में यह पागलपन केवल जाने-माने चेहरों में होता था , पर अब लड़कों में फिटनेस के मायने सिर्फ बॉडी बिल्डिंग और लड़कियों में हद से ज्यादा दुबला होना समझ लिया गया है | वजन घटाना हो या तयशुदा नापतौल के मुताबिक़ बॉडी बनाना | लिए कई तरह के सप्लीमेंट्स भी लिए जाते हैं | वर्क आउट अच्छा होता है पर ऐसे लोग ओवर वर्क आउट भी करते हैं | कभी दो-चार दिन लगातार खाना-पीना, पार्टी और फिर घंटों जिम में लगे रहना | यह तरीका भीतर से बहुत कुछ बिगाड़ता रहता है | पता तब चलता जब टेस्ट करवाए जाएँ या यूँ अचानक कभी सांस ही रुक जाए , दिल धड़कना ही बंद कर दे | सिद्धार्थ जैसा शरीर बिना सप्लीमेंट्स और हार्ड कोर वर्क आउट के नहीं बनता | समझ सकते हैं कि वे जिस क्षेत्र में थे एक दबाव भी होता है- जितना हो सके हीरोइक बनने-दिखने का | पर आम लोग तो चेतें | परफैक्ट बॉडी पाने के इस फेर में आज हर उम्र के लोग फंसे हैं, खासकर युवा |
दूसरी अहम वजह मन की अशांति है- लाउडनेस , जो आज के युवा चेहरों में बहुत ज्यादा है | बिग बॉस में सिद्धार्थ को देखते हुए कई बार लगा जैसे वे काफी गुस्सैल और लाउड रहे होंगें व्यक्तिगत जीवन में भी | बोलते बोलते हांफ जाना, गुस्से में हाथ पैर हिलते रहना, आमतौर पर ऊंची आवाज़ में ही बोलना | यह सब देखते हुए सिद्धार्थ तब भी थोड़े असहज से लगे थे | कहा जा सकता है कि यह तो रियलिटी शो था - शो में यह जानबूझकर भी किया जाता है | हाँ, किया जाता है पर इस कार्यक्रम के अलावा भी उनको पत्रकारों से बात करते हुए देखा तो सहज आवाज या ठहराव नहीं दिखा कभी ( उनके मामले में मैं गलत हो सकती हूँ ) पर आजकल हर कोई इसी असहजता को जी रहा है | जरा कुछ मन को नहीं जमा और बस --- यह उग्रता मन को बीमार करती है | शरीर के पोर पोर को नुकसान पहुंचाती है | हमारी हर बात कहीं भीतर तक असर करती है | जाहिर है कि यह असर मन और शरीर दोनों की ही सेहत बिगाड़ता है | मुझे तो लगता है बच्चों को शुरू से ही थोड़ा शांत-सहज व्यवहार और ठहराव के साथ जीना सिखाना चाहिए।
तीसरी बात आज ग्लैमर की दुनिया ही नहीं आम लोगों की लाइफस्टाइल भी अजीबोगरीब है | अजीब सा असंतुलन है खाने-पीने , सोने जागने, बोलने -बतियाने और यहाँ तक कि समझने स्वीकारने में भी | इन सब बातों से बनी जीवनशैली को थोड़ा बाजार ने तो थोड़ा खुद के कम्फर्ट ने 'ट्रेंड' का नाम दे दिया है | अब, घर में, कमरे में, हमारे आस-पास बिखरा सामान, ट्रेंड है- जंक फ़ूड खाना, ट्रेंड है - कुछ भी काम खुद न करके जिम में वेट्स उठाना, ट्रेंड है - रिश्तों में, घर में चुप्पी और सोशल मीडिया पर बहस, ट्रेंड है---- और भी बहुत कुछ | अंतहीन लिस्ट है यह | पर हम समझते ही नहीं कि यह सारी बातें स्वास्थ्य से जुड़ी हैं और बहुत गहराई से जुड़ी है | चारदीवारी में घर बना बैठी चुप्पी और बाहरी दुनिया में दिखावे की आदत तनाव की बड़ी वजह है आज | कुछ भी औरों के मुताबिक ना कर पाने ( भले ही वे अपने घर के बड़े ही क्यों ना हों ?) डिप्रेशन का अहम कारण है | ऐसा सब कुछ बहुत हद तक दिल की सेहत बिगाड़ता है |धमनियों में कोलेस्ट्रोल के थक्के ही नहीं बनते.. यह सब भी वहीँ कहीं दिल में ही जमता है |
चौथी बात - रिश्तों में ठहराव जरूरी है | दोस्त , जीवन साथी या गर्ल फ्रेंड-ब्यॉय फ्रेंड - ( कमाई, सुन्दरता, कामयाबी जैसे कई मापदंडों पर) कुछ बेहतर- और बेहतर और और बेहतर का कुचक्र भी स्ट्रेस और डिप्रेशन की ओर ले जाता है | कभी किसी से जुड़ना फिर टूटना | फिर किसी से जुड़ना फिर टूटना | देखने में लगता है जैसे कोई बड़ी बात नहीं | पर ऐसे मेलजोल मन-मस्तिष्क को बहुत प्रभावित करते हैं | आये दिन की उलझनें शरीर के अच्छे-बुरे हारमोंस पर प्रभाव डालती हैं |
जीवन बचाने के लिए, सेहतमंद जिन्दगी जीने के लिए और जीते जी थोड़ी सहजता को साथी बनाने के लिए -- एक ठहराव, सौम्यता और सहजता जरूरी है | थोड़ा ठहरिये और सोचिये | (आमतौर पर सामाजिक मनोवैज्ञानिक विषयों पर लिखती पढ़ती रहती हूँ तो अपनी बात कही- सिद्धार्थ का जाना वाकई मन व्यथित कर गया | उम्र के ऐसे पड़ाव पर दुनिया छोड़ने वाले बच्चों के माता-पिता के दुःख के बारे में सोचकर भी बहुत पीड़ा होती है | सादर नमन )

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