पं. लक्ष्मीकांत शर्मा
शिवपुरी। इस साल पितृ पक्ष 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक रहेंगे,इस अवधी में में पितरों से संबंधित तर्पण/पिण्डदान आदि करने पर उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं करने पर पितृ दोष लगता है,पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है,अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है,इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है।
'पितृ पक्ष की महत्वपूर्ण तिथियां-
इस वर्ष पितृ पक्ष 20 सितंबर से शुरू होंगे जो कि 6 अक्टूबर को समाप्त होंगे,तथा 26 सितंबर को किसी भी तिथि का श्राद्ध नहीं किया जायेगा।
पूर्णिमा श्राद्ध – 20 सितंबर
1.प्रतिपदा श्राद्ध – 21 सितंबर
2.द्वितीया श्राद्ध – 22 सितंबर
3.तृतीया श्राद्ध – 23 सितंबर
4.चतुर्थी श्राद्ध – 24 सितंबर
5.पंचमी श्राद्ध – 25 सितंबर
6.षष्ठी श्राद्ध – 27 सितंबर
7.सप्तमी श्राद्ध – 28 सितंबर
8.अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर
9.नवमी श्राद्ध – 30 सितंबर
10.दशमी श्राद्ध – 1 अक्तूबर
11.एकादशी श्राद्ध – 2 अक्टूबर
12.द्वादशी श्राद्ध- 3 अक्टूबर
13.त्रयोदशी श्राद्ध – 4 अक्टूबर
14.चतुर्दशी श्राद्ध- 5 अक्टूबर
श्राद्ध विधि
किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के द्वारा ही श्राद्ध कर्म (पिंडदान, तर्पण) करवाना चाहिए,श्राद्ध कर्म में पूर्ण श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब,जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है।इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।
यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए, यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है,जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए, भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।
श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए। योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें, इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए, इन्हें भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए.मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए.!
'श्राद्ध के बारह प्रकार'
नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धिश्राद्ध, सपिण्डिन श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, गोष्ठ श्राद्ध, शुद्धि श्राद्ध, कर्माङ्ग श्राद्ध, दैविक श्राद्ध, तुष्टि श्राद्ध और क्षयाह श्राद्ध।
नित्य श्राद्ध -: प्रतिदिन किये जाने वाले श्राद्ध को नित्य श्राद्ध कहते हैं,उसमें विश्वेदेव की पूजा नहीं की जाती,यदि अन्न से श्राद्ध करने की शक्ति न हो तो केवल जल से भी नित्यश्राद्ध किया जा सकता है।
नैमित्तिक श्राद्ध -: एकोद्दिष्ट श्राद्ध का नाम नैमित्तिक श्राद्ध है।
काम्य श्राद्ध -: अभिष्ट वस्तु की सिद्धि के लिए कामना रखकर जो श्राद्ध किया जाता है,उसे काम्य श्राद्ध कहते हैं।
वृद्धि श्राद्ध -: विवाह आदि उत्सवों के अवसर पर जो श्राद्ध किया जाता हैवह वृद्धि श्राद्ध कहलाता है।
सपिण्डन श्राद्ध -: 'ये सामना' इत्यादि मंत्रों के द्वारा किये जाने वाले श्राद्ध को सपिण्डन श्राद्ध कहते हैं।
पार्वण श्राद्ध -: अमावस्या आदि पर्वो पर किये जाने वाले श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध कहते हैं।
गोष्ठ श्राद्ध -: गोशाला में जो श्राद्ध किया जाता है,वह गोष्ठ श्राद्ध है।
शुद्धि श्राद्ध -: पाप शुद्धि के लिए जो श्राद्ध किया जाता है,उसे शुद्धि श्राद्ध कहते हैं।
कर्माङ्ग श्राद्ध -: गर्भाधान,सोमयाग,सीमन्तोन्नयन तथा पुंसवन आदि में जो श्राद्ध किया जाता है,वह कर्माङ्ग श्राद्ध है।
दैविक श्राद्ध -: देवता के उद्देश्य से किये जाने वाले श्राद्ध को दैविक श्राद्ध कहते हैं।
तुष्टि श्राद्ध -: जो देशान्तर चला जाये,उसकी तुष्टि के लिए घी से श्राद्ध करना चाहिए,इसे तुष्टि श्राद्ध कहते हैं। सांवत्सरिक {क्षयाह} श्राद्ध -: बारह महिने पर जो श्राद्ध किया जाता है,उसे क्षयाह अथवा सांवत्सरिक श्राद्ध कहते हैं। जो वर्ष के अंत में क्षयाह के दिन पिता और माता का आदरपूर्वक श्राद्ध नहीं करते उनकी की हुई पूजा को मैं {महादेव जी} ग्रहण नहीं करता। जिस ब्यक्ति को अपने माता पिता की क्षयाह तिथि ज्ञात न हों उसे माघ अथवा मार्गशीर्ष की अमावस्या को सांवत्सरिक श्राद्ध करना चाहिए,तथापि इन सभी श्राद्ध में सांवत्सरिक श्राद्ध सबसे श्रेष्ठ माना गया है।

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