सुदाम कमाने वाला ही सुदामा है-
ज्ञानी, शांत चित्त, विषयों से विरक्त और जितेन्द्रिय ही सुदामा है-
शिवपुरी। श्री ठाकुर बाबा मंदिर हाथी खाना पर मणि महाराज की चल रही तृतीय, श्रीमद्भागवत कथा का आज अंतिम दिन था, विश्राम दिवस की कथा का श्रवण कराते हुए बाल योगी नंदिनी भार्गव ने सुदामा चरित्र का सुंदर वर्णन किया उन्होंने कहा कि सुदामा कौन है ? इस बात पर विचार करना चाहिए और सुदामा के वारे मैं जानना ही कथा कहलाती है।
सुदामा वह नहीं होता जो सिर्फ निर्धन ही हो, अपितु वह भी होता है जिसने जीवन मैं अच्छा दाम कमाया हो, सुदामा चरित्र के द्वारा भगवान के द्वारा की गई व्राम्हण भक्ति को भी उद्धृत किया। शुकदेव पूजन के साथ कथा का विश्राम हुआ।
देखा जाये तो कथा विश्राम का अर्थ समापन नहीं होता, क्योंकि कथा केवल प्रारंभ होती है विराम नहीं। विश्राम से अर्थ होता है,कथा सुनकर हमारे हृदय मैं चल रही उद्देगनाओं,क्रोध,मोह ईर्ष्या से विश्राम से मिलकर परम शांत स्वरूप, भगवान का हृदय मैं स्थापित हो जाना ही कथा विश्राम कहलाता है।
शुकदेव जी ने अंतिम उपदेश भी यही दिया,जिसे श्री रामचरित मानस मैं भी समझैं तो यह है कि, ईश्वर अंश जीव अविनाशी,चेतन अमल सहज सुख राशि, शुकदेव जी ने कहा कि जव मैं तुम मैं हूं तो तक्षक तुम्हारा क्या विगाडेगा। मुख्य यजमान मणिमहाराज (मनी) द्वारा कराई जा रही कथा मै हर दिन भीड उमड़ी।शहर के साथ आसपास से आये अन्य ग्रामीणों ने भी कथा का रसपान किया।हर किसी ने मणि की कथा का तन,मन,धन,से सहयोग किया साथ ही इलेक्ट्रॉनिक सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, एवं न्यूज चैनलों ने भी कथा को विशेष सफल वनाया।

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें