कभी नाराज़ हो जाऊँ मुझे तुम ही हसाँ देना।
मुहब्बत से मेरे हमदम मेरे दिल को सजा देना।।
कभी जो काँच के जैसे चटक जाये न हाथों से।
बहुत नाज़ुक मेरा दिल ये कहीं तुम तोड़ना देना।।
कभी काँटे लगे चुभने ,कभी झाड़ी लगी उगने।
मेरा बेजान सा गुलशन कभी आकर खिला देना।।
बहुत होती फिक्र उनकी ,नहीं कोई खबर उनकी।
मेरे महबूब से मिल कर जरा पैगाम ला देना।।
निग़ाहों में छुपा लोगे सनम तुम अंजली को जब।

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