*अखिल भारतीय साहित्य परिषद का प्रांतीय प्रशिक्षण वर्ग का शुभारंभ
*मध्यभारत प्रान्त के एक सैकड़ा साहित्यकारों को दिया जा रहा है प्रशिक्षण
शिवपुरी। किसी भी संस्था का उद्देश्य और सिद्धांत भले अच्छे हों लेकिन अगर वह व्यवहारिक नही है तो सब व्यर्थ है। विगत कुछ वर्षों में देश की अनेकों ऐसी संस्थाएं जिनका उदय बेहद अच्छे उद्देश्यों और सिद्धांतों के आधार पर काम करने से शुरू हुआ था परंतु वे व्यवहारिक नही थीं। इसलिए कालांतर में उनका नाम गायब होता चला गया। फलस्वरूप आर्य समाज और ब्रह्म समाज जैसी संस्थाएं जिन्होंने अपने प्रारंभिक काल मे देश में प्रचलित अनेक कुरीतियों को बंद कराने का काम किया लेकिन वे व्यवहारिक न होने के कारण नाम मात्र के लिए शेष रह गयी हैं। उक्त वक्तव्य आज शिवपुरी के सरस्वती विद्यापीठ विद्यालय में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य परिषद के मध्य भारत प्रान्त के दो दिवसीय कार्यक्रता प्रशिक्षण वर्ग में पूरे प्रान्त से आये कार्यकर्ताओं को मुख्य वक्ता की आसंदी से संबोधित करते हुए साहित्य परिषद के संगठन महामंत्री श्री श्रीधर पराड़कर काका जी ने कहा।
आदरणीय काकाजी ने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देते हुए कहा कि 1947 के पश्चात हमारे देश मे जो विचार धारा रही उसने हमारे वैभव शाली इतिहास परंपराओं, और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला है।उन्होंने कहा किप्रत्येक संस्था और संगठन का कार्य करने का अपना अपना तरीका होता है ।कार्यक्रता को संस्था की कार्य पद्दत्ति के विषय मे मालूम होना चाहिए। कोई भी काम क्यों करना है कैसे करना है और कब करना है इसकी जानकारी अच्छे से होना चाहिए। तथा संस्था का भी ये काम है कि वह ये तय करे कि किस किसी काम को करने वाला कार्यकर्ता कौन और कैसा हो। तथा का काम की प्रकृति कैसी हो। काम करना अलग बात है लेकिन किसी काम को अच्छी तरह समझकर करना अलग बात है।और यही सब जानकारी प्राप्त करने और अन्य कार्यक्रताओं को तैयार करने के लिए इस तरह के प्रशिक्षण वर्ग का आयोजन किया जाता है।
इससे पूर्व विद्यापीठ परिसर के सुदर्शन सभागार में अयोजित कार्यक्रम को प्रारंभ करते हुए सबसे पहले प्रांतीय टोली द्वारा साहित्य की प्रदर्शनी लगाई गई। तत्पचात कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों ने मां सरस्वती को प्रतिमा पर दीप प्रज्वलित कर विधिवत शुभारम्भ किया। इस अवशर पर परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सुशील चन्द्र त्रिवेदी जी, संगठन महामंत्री श्री श्रीधर पराड़कर जी, संयुक्त राष्ट्रीय महामंत्री डॉ पवन पुत्र बादल जी, राष्ट्रीय मंत्री श्रीमती नीलम राठी जी,प्रवीण गुगनानी जी, डॉ कुमार संजीव जी, जयनारायण राठौर , आलोक इंदौरिया जी, रविन्द्र शिवहरे जी, राहुल गंगवाल मंचासीन थे।
कार्यक्रम के प्रथम सत्र में राष्ट्रीय संगठन महामंत्री काका जी ने हमारा अधिष्ठान विषय पर कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया। दूसरे सत्र में संयुक्त महामंत्री डॉ पवन पुत्र बादल ने परिषद के कार्य हेतु कार्यकर्ताओं की पहचान, अभिरुचि,एवं योग्यता के अनुसार कार्यक्रताओं को कार्य का वितरण, कार्यों का आवधिक निरीक्षण, एवं कार्य मे आने वाली बाधाओं एवं कठिनाइयों का निराकरण विषय पर सभी को संबोधित किया। डॉ पवन पुत्र बादल ने कहा कि हमे अपने साथ नए लोगों जोड़ने का काम करना होगा। हमे अच्छे व्यक्तियों का चयन करना होगा उसे मित्र बनाये और उन्हें परिषद से जोड़ना चाहिए।और फिर उसे दायित्ववान कार्यक्रता के रूप में स्थान दें। डॉ बादल ने कहा कि साहित्य सृजन एक साधना है और साधना अहंकार और अभिमान रहित एकाग्रचित होना चाहिए।हम जो भी कार्य करते हैं हमारे ज्ञान और अनुभव पर निर्भर करता है। इसलिए हमें ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सहभागिता करके ज्ञान अर्जित करना चाहिए। और लगातार साहित्यिक क्षेत्र से जुड़े रहकर अनुभव लेना चाहिए। हमे अपने साथ नए लोगों को जोड़ने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। क्योंकि हम अगर अपने कार्य को दस लोगों में बांटेंगे तो निश्चित रूप से हमारा काम दस गिना अधिक गति से सम्पन्न होगा।
तीसरे सत्र में परिषद की राष्ट्रीय मंत्री दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ नीलम राठी ने परिषद के अनिवार्य एवं नैमितिक कार्यक्रमों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कोई भी संस्था कार्यक्रमों के बिना कार्य नही कर सकती है।कार्यकर्ताओं के सुदृनिकरण के साथ साथ परिषद द्वारा लगातार कार्यक्रमो का होते रहने भी अनिवार्य है।हमे इस बात का चिंतन करना होगा कि ऐसे कौन से कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं जिनसे हम औपनिवेशिक मानसिकता को समाप्त कर सकते हैं।डॉ राठी ने कहा कि विचार संक्रमण की तरह फैलते हैं इसलिए हमें विचार शील बनना होगा और अपने और अपनी परिषद के विचारों को निरंतर फैलाने का काम भी हमे करना होगा।
उद्घाटन सत्र का संचालन प्रान्त महामंत्री आशुतोष शर्मा ने प्रथम सत्र का संचालन भोपाल के धर्मेंद्र सोलंकी ने,द्वितीय सत्र का संचालन वर्ग संयोजक जयनारायण राठौर ने एवं तीसरे सत्र का संचालन कीर्ति वर्मा जी ने किया। कार्यक्रम में बाहर से पधारे साहित्यकारों के अतिरिक्त स्थानीय साहित्यकार प्रमोद भार्गव, योगेंद्र शुक्ला, डॉ एच पी जैन, डॉ महेंद्र अग्रवाल, सुकून शिवपुरी, जिलाध्यक्ष प्रदीप अवस्थी,जयपाल जाट, विकास शुक्ल प्रचंड आदि उपस्थित थे।

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