इस रंगमंच रूपी दुनिया का अहंकार देखा ,
जब इंसानियत का खून होते आंखों से देखा ll
शोकाकुल मेरा हिय हुआ
जब इंसान को इंसान से हैवान बनते देखा,
जब पीड़ित को असहाय देखा ll
शोकाकुल मेरा हिय हुआ
जब झूठ फरेब के फैलते जाल को देखा,
जब धर्म के नाम पर इंसान को बटते देखा ll
शोकाकुल मेरा हिय हुआ
जब नफरतों का जहर चौतरफा देखा,
जब विषधरों के फन से घिरा जहाँ देखा ll
शोकाकुल मेरा हिय हुआ
जब सत्य को पैरों तले कुचलते देखा,
जब माँ तेरे आंचल पर अपमान का धब्बा देखा ll
शोकाकुल मेरा हिय हुआ
जब संवेदना को पल पल मरते देखा ,
देखकर ऐसा समाज आज लोचन अश्रु से भर आये ll
शोकाकुल मेरा हिय हुआ
निशु उपाध्याय
पुस्तकालय -अध्यक्ष










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बहुत सुंदर
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