आज की शाम ये सुहानी है।
उठ रहा है धुँआ मुहब्बत का ।
देखते हो जवाँ नजारों को ।
कब से खामोश लब हमारे थे।
लफ्ज़ बिखरे हुये थे होटों पे ।
कुछ सितारों की बात भी कर लो
ये किनारे भी अब दगा देंगे ।
आज कश्ती मेरी बचानी है ।।
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