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धमाका साहित्य कॉर्नर: जिम्मेदारी वाले कांधे हिम्मत हार रहे हैं, पकवानों की खुशबू से ही मन को मार रहे हैं: डॉ. मुकेश अनुरागी शिवपुरी

रविवार, 1 अक्टूबर 2023

/ by Vipin Shukla Mama
*अन्तर्राष्ट्रीय वृद्ध जन दिवस पर समर्पित पंक्तियां*

पितृ दिवस पर आज
पिताजी अंतर्मन रोते हैं। 
बेटे केवल मन बहलाकर
खुशियां ही बोते हैं। 

बदल गया परिवेश
खाट से डबल बेड आया
पापा की लाठी ऐनक 
को फिर से बिसराया। 
पर्दे पीछे कोसा, बाहर
आंख भिगोते हैं। 

पानी नहीं गिलास दिया
पर जूस लाऊं कहते। 
देख रहीं हैं रस्ता आंतें
दिन भर भूखे रहते। 
प्रतिदिन आशा में जगते
हैं, पर निराश सोते हैं। 

जिम्मेदारी वाले कांधे
हिम्मत हार रहे हैं। 
पकवानों की खुशबू से ही
मन को मार रहे हैं। 
सभी इन्द्रियां साथ छोड़तीं
बेबस तन ढोते हैं।

@ डॉ. मुकेश अनुरागी शिवपुरी।














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