ग्वालियर | नागरिक मूल्यों के उन्नयन के लिए प्रतिबद्ध संस्था "संस्कार मंजरी" के तत्वावधान में गत दिवस जिंसी नाला रोड़ लश्कर, ग्वालियर स्थित एक स्थानीय होटल में आयोजित एक गरिमापूर्ण समारोह में " उद्भव " द्वारा आयोजित किए जा रहे अन्तर्राष्ट्रीय खेल नृत्य संगीत एवं साहित्य के आयोजनो को सराहा गया । "उद्भव" परिवार के नेतृत्व और ग्वालियर के गौरव के लिए सतत् प्रयासरत डॉ .केशव पाण्डे की प्रशंसा की ,और उन्हे शॉल, पुष्पहार पहना कर सम्मानित किया गया। प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती को नमन् करते हुए पुष्पहार अर्पित कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। सरस्वती वंदना डॉ. मुक्ता सिकरवार ने सुमधुर स्वर में प्रस्तुत की। तत्पश्चात् यूनेस्को द्वारा ग्वालियर को संगीत नगरी घोषित कराए जाने के प्रयासों के लिए मुख्य अतिथि "उद्भव" के अध्यक्ष डॉ केशव पाण्डेय व विशिष्ट अतिथि "उद्भव " के सचिव दीपक तोमर का सम्मान संस्कार मंजरी की ओर से स्वागताध्यक्ष उद्योगपति राधा किशन खेतान, कार्यक्रम अध्यक्ष श्रीमती रमेश शर्मा व महामना जगदीश गुप्त ने किया। समस्त कवि कवियत्रियो का स्वागत पुष्पाहार द्वारा संस्था सचिव आभा अनुपम राठौर ने किया | कार्यक्रम का संचालन संयोजक सुरेन्द्र पाल सिंह कुशवाह ने किया । ' महामना 'जगदीश गुप्त ने कार्यक्रम की भूमिका प्रस्तुत करते हुए अतिथियों का स्वागत व विषय प्रवर्तन किया। इस अवसर पर संस्था द्वारा "शीत शगुन " कार्यक्रम में सामयिक श्रेष्ठ काव्य रचनाओ की प्रस्तुति भी की गई । सुधी श्रोताओ ने काव्य रसवर्षा का आनंद उठाया।
जगदीश महामना ने गीत प्रस्तुत किया
*जब से तुमने राम कहा राम हुआ जाता हूं*
हरगोविन्द ठाकुर ने सुंदर गीत पढा,
*संवरते हो तभी तक देखते हो,*
*मुझे दरपन नहीं बनना तुम्हारा*
*घुमाते हो बजाते तो नहीं हो,*
*मुझे कंगन नहीं बनना तुम्हारा.*
सुरेन्द्र पाल सिंह कुशवाह ने शरद गीत गाया।
,*शीत ठिठुरी कोठरी में धूप के दिन फिर उगा दें* ,
*सोए हुए उन संस्कारों को चलो फिर से जगा दें*।
अगले क्रम में कवि रामचरण"रुचिर" ने दोहे व गीत प्रस्तुत करते हुए कहा,
*तन मन शीतल होत हैं, शरद ऋतु दिन रैन*।
*मन मोहक वन बाग हैं, पवन करे बेचैन*।।
उन्होंने डाॅ. पांडेय को समर्पित गीत पढ़ा :-
*जो न कभी भटके पथ पर वह मंजिल को पाता है*।
*दृढ़ संकल्प लिए उर में वह जीवन को सफल बनाता है*।
अगले क्रम में वरिष्ठ गीतकार घनश्याम "भारती "ने मधुर गीतों से खूब वाहवाही लूटी ।
*थे कभी अनुभूतियों से शबनमी आदमीयत जी रहे थे आदमी*
*आज जादू और टोने हो गए सिर्फ चाबी के खिलौने हो गए*।
वरिष्ठ गीतकार डॉ.किंकर पाल सिंह जादौन ने भी सस्वर पाठ से मन मोह लिया। उन्होंने कहा,
*बैठे पास पास बतियाएं हल्का मन कर लें*।
*प्रिय! मन का उजला उपवन है नंदनवन कर ले*।
आलोक शर्मा ने अपने सामयिक मुक्तक प्रस्तुत किए ,
*दूर नहीं मैं उसे पन्ने से जिस पर राघव राम लिखा हो*
*नजदीक सभी वह ग्रंथ हमारे जिन पर माधव श्याम लिखा हो*।
( श्रीमती )रमेश शर्मा ने हास्य विनोद से गुदगुदाया,
*छोटे भाई की शिकायत पर माॅ ने की बड़े भाई की पिटाई यह कैसी कूटनीति है भाई*।
आरती श्रीवास्तव "अक्षत" ने कविता पढ़ते हुए कहा,
*सर्दी में भाने लगी हमें गुनगुनी धूप*
*बदल रहे हैं किस तरह मौसम के रंग रूप*।
और,
*गिरे जो शाख से पत्ते उसे जोड़ा नहीं जाता*
*निभायें फर्ज हम अपने उसे छोड़ा नहीं जाता*
*किसी से हो अगर गलती क्षमा करना बड़प्पन है*
*जरा सी बात पर रिश्ता कभी तोड़ा नहीं जाता*
डॉ. मुक्ता सिकरवार ने सरस्वती वंदना व एक मधुर गीत प्रस्तुत किये
*मन रे तू बन के एकाकी हो जा सबसे दूर,*
*चाहत में साथी की खुद को यूं न कर मजबूर।*
*अलग भीड़ से है कर लेना तू अपना अस्तित्व*,
*बिखरा रूप संवार निखारो अंतर का व्यक्तित्व*,
एकाकी पन में दिखते हैं रब के रंग और नूर।...
कार्यक्रम में अनेक साहित्यकार एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम बहुत ही सराहनीय एवं गरिमापूर्ण रहा।
कार्यक्रम के अंत में सभी का आभार प्रदर्शन संस्कार मंजरी " की संस्थापिका नीलम जगदीश गुप्ता ने किया। इसके पश्चात सभी ने जलपान किया।

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