शिवपुरी। इंसान और इंसानियत के तक़ाजे को पूरा करना साहित्य का काम है। मशहूर शायर फ़िराक़ गोरखपुरी ने कहा था, ‘अच्छी रचना वह होती है, जिसे सुनकर श्रोताओं को लगे कि मैं भी इसी तरह लिख सकता हूं।’ यह उद्गार थे, प्रोफ़ेसर पुनीत कुमार के। म.प्र. प्रगतिशील लेखक संघ और मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की शिवपुरी इकाई के संयुक्त आयोजन ‘कवि, कविता और विमर्श’ में अध्यक्ष की आसंदी से श्रोताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, कार्यक्रम में शामिल दोनों कवि नई कविता के सशक्त प्रतिनिधि हैं। उनकी जो कविताएं हमने आज सुनीं, उनमें लोक और आम आदमी केन्द्र में है। स्थानीय दुर्गा मठ में आयोजित इस कार्यक्रम में ग्वालियर से पधारी कवियत्री डॉ. नेहा नरूका ने अपनी रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा अध्ययन, अनुभव और अभ्यास इन तीनों के मिलने से साहित्य का जन्म होता है। अच्छा साहित्य सामूहिकता और सामाजिकता का निर्माण करता है। उन्होंने कहा, स्मृतियों का कवि के लेखन में महत्त्वपूर्ण रोल होता है। ज़्यादातर कविताएं स्मृतियों के आधार पर ही लिखी जाती हैं। मैं जिस समाज, जेंडर से आती हूं, ज़ाहिर है उसी के पक्ष में लिखूंगी। रचना प्रक्रिया पर बात करने के बाद नेहा नरूका ने अपनी कुछ प्रतिनिधि कविताओं ‘भ्रमर गीत’, ‘शक्कर से बच के रहना’, ‘प्रकाश संश्लेषण’, ‘विविधता’, ‘एक बोसा ले लो’ और ‘गांव’ का वाचन किया। जिसे श्रोताओं ने काफ़ी पसंद किया और उन्हें दिल से सराहा।
कार्यक्रम के दूसरे कवि अशोकनगर निवासी अरबाज़ ख़ान ने अपनी रचना प्रक्रिया का कुछ इस तरह से ख़ुलासा किया, कविता की आवश्यकता क्या है ? हमारे समाज में कई झूठ और मिथक गढ़ दिए गए हैं। कविता सच के पक्ष में एक सामाजिक आंदोलन है। कविता एक ज़िंदा सच हमारे सामने लाती है। उन्होंने कहा, कविता लिखने का कोई निश्चित फार्मूला नहीं होता। हर कविता लेखन के पीछे अलग-अलग पृष्ठभूमि होती है। इसके बाद अरबाज़ ख़ान ने अपनी प्रतिनिधि कविताओं ‘मस्जिद के भीतर चहकते बच्चे’, ‘औरतों की ईदगाह’, ‘युद्ध के खि़लाफ़’, ‘क्या मैं मारा जाऊंगा’ और ‘गवाह है शब-ए-बरात’ का वाचन किया। उनकी इन कविताओं में से ‘मस्जिद के भीतर चहकते बच्चे’ को ख़ास तौर पर श्रोताओं की दाद मिली। कार्यक्रम के तीसरे हिस्से में आमंत्रित कवियों की कविताओं पर विमर्श हुआ। जिसमे स्थानीय रचनाकारों ने इन कविताओं पर अपनी बात रखी। नाटककार दिनेश वशिष्ठ ने कहा, नई कविता के बारे में मेरे कुछ भ्रम थे कि इनमें कथ्य, विचार, सम्प्रेषणीयता और गेयता नहीं होती। लेकिन नेहा नरूका और अरबाज़ ख़ान की कविता सुनकर, मैं ग़लत साबित हुआ हूं। कथाकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद भार्गव ने कहा, नेहा की कविताओं में मुझे निराला का प्रतिबिंब दिखाई देता है। उनकी कविता में एक लय है। मुझे उनमें बहुत संभावना दिखाई देती है। वहीं अरबाज़ अपनी कविताओं में सामाजिक जड़ताओं को तोड़ने की कोशिश करते हैं। वे कविताओं में सामाजिक कुरीतियों को उकेरते हैं। मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष नवगीतकार विनय प्रकाश जैन 'नीरव' ने कहा, दोनों कवियों की कविताओं ने समाज के यथार्थ को हमारे सामने रखा है। आज समाज में दो बड़े समुदायों के बीच जो अविश्वास और खाई बना दी गई है, यह कविताएँ उस खाई को पाटने की कोशिश करती हैं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बुंदेली बोली के विद्वान कवि डॉ. लखनलाल खरे ने कहा, हमारे देश में हमेशा सामाजिक सौहार्द रहा है और सब लोग मिल-जुलकर साथ रहते आए हैं। साहित्य समाज को जोड़ने का काम करता है। आज की यह साहित्यिक गोष्ठी, इसी दिशा में बढ़ा एक क़दम है। कार्यक्रम के अंत में अतिथि कवियों को स्मृति चिन्ह के तौर पर किताबें भेंट की गईं। कार्यक्रम का संचालन लेखक ज़ाहिद खान ने किया, तो वहीं इस गोष्ठी में बाहर से पधारे कवियों, स्थानीय साहित्यकारों और श्रोताओं के आभार प्रदर्शन की रस्म अदायगी मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के सचिव सुनील व्यास ने की। कार्यक्रम में नगर के कई महत्वपूर्ण साहित्यकार मसलन डॉ. रामकृष्ण श्रीवास्तव, इशरत ग्वालियरी, विजय भार्गव, आरएन अवस्थी, एमएस द्विवेदी, याक़ूब साबिर, अजय अविराम, राजेन्द्र टेमक, युधिष्ठिर रघुवंशी, सत्तार शिवपुरी, रामकृष्ण मौर्य, बसन्त श्रीवास्तव, शरद गोस्वामी आदि पूरे मौजूद रहे। उन्होंने न सिर्फ़ कविताओं का दिल से आनन्द लिया, बल्कि अतिथि कवियों की हौसला अफ़ज़ाई भी की।

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