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#धमाका_धर्म: गुरु तुम चंदन हम हैं माटी, गुरु पूर्णिमा पर विशेष : डॉ. केशव पाण्डेय

रविवार, 21 जुलाई 2024

/ by Vipin Shukla Mama
आयु, बुद्धि, धन व शांति में वृद्धि करते हैं गुरु
ग्वालियर । अखिल ब्रह्मांड को धारण करने वाला ही गुरु* *--- गुरु ब्रह्मा होते हैं। गुरु विष्णु होते हैं। गुरु शिव होते हैं। जो सृष्टिकर्ता हैं अथवा जिसके पास सृष्टि करने का ज्ञान है, वह गुरु है। जो पालन करता है वह गुरु है। जो शासन और संहार करते हैं वे गुरु हैं। जो ब्रह्म और प्रकृति के रूप में अखिल ब्रह्मांड को धारण करते हैं, वही गुरु हैं। शरीर का नाश हो जाएगा लेकिन गुरु का नाश नहीं होगा। इसलिए गुरु को साक्षात परब्रह्म परमात्मा मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए। गुरु की पूजा करने से मनुष्य एक अस्तित्व में हो जाता है। गुरु से शुभ फल प्राप्त कर अंत में शुभ गति को प्राप्त करता है। गुरु की कृपा से मनुष्य की सारी विपत्तियां दूर हो जाती हैं। माता-पिता, गुरु और भगवान मनुष्य की आयु, बुद्धि, धन एवं शांति की वृद्धि करते हैं। उपनिषदों में कहा गया है कि आयु, विद्या, यश और बल यह चार चीजें सेवा से प्राप्त की जाती हैं। गुरु की सेवा करने वाले की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। आज गुरु पूर्णिमा पर्व पर करते हैं गुरुओं का सम्मान।* ------------- गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ अर्थात गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात् परब्रह्म है, उन सद्गुरु को मेरा प्रणाम।  गुरु के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने का आज पावन पर्व है यानी गुरु पूर्णिमा। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। यह एक सनातन धर्म संस्कृति है। हमारे धर्म ग्रंथों में गुरु मे “गु“ का अर्थ अंधकार या अज्ञान और “रु“ का अर्थ प्रकाश(ज्ञान) अर्थात् अज्ञान को हटा कर ज्ञान की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता है। जो अपने ज्ञान से शिष्य को सही मार्ग पर ले जाते हैं और उनकी उन्नति में सहायक बनते हैं। गुरु की महिमा का वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति और परंपरा का हिन्दू धर्म के लिये महत्वपूर्ण पर्व है, जो भारत के पौराणिक इतिहास के महान संत ऋषि व्यास की याद में मनाया जाता है। इसी दिन हिन्दू धर्मग्रन्थ महाभारत के रचयिता गुरु महर्षि वेदव्यास का भी जन्म हुआ था। वेद व्यास को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है। उन्होंने मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था और सभी पुराणों की रचना की थी। इसीलिए इन्हें जगत का प्रथम गुरु माना जाता है। गूरु पूर्णिमा को वेदव्यास जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। कहा जाता है कि जो साधक इस अवसर पर गुरु साधना और ध्यान करते हैं, उन्हें सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही कभी न समाप्त होने वाला ज्ञान। प्रत्येक शिष्य को चाहिए कि वह अपने गुरु को उपहार दें और उनका आशीर्वाद लें। अपने शिक्षकों, गुरुओं के मार्गदर्शन के लिए उनका आभार व्यक्त करें और उन्हें गुरु दक्षिणा प्रदान करें।  अगर आपके जीवन में शिक्षकों के अलावा आपके माता-पिता, आपके जीवनसाथी या आपके दोस्तों ने भी आपको कोई अच्छी सीख दी है, तो उनका भी सम्मान करते हुए आभार व्यक्त करें। ऐसी मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरुओं की पूजा और उनकी शिक्षा के प्रति आभार व्यक्त करने से जीवन के सभी कष्ट समाप्त होते हैं और जीवन का अंधकार दूर होता है।सामान्यतः दो तरह के गुरु होते हैं। प्रथम- शिक्षा गुरु और दूसरे- दीक्षा गुरु। शिक्षा गुरु बालक को शिक्षित करते हैं और दीक्षा गुरु शिष्य के अंदर संचित विकारों को निकाल कर उसके जीवन को सत्यपथ की ओर अग्रसित करते हैं। यह दिन केवल शैक्षिक गुरुओं के लिए नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन करने वाले सभी गुरुओं के प्रति समर्पित है। इस दिन गुरु मंत्र लेने की भी परंपरा है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति होती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। विशेष रूप से गुरु पूर्णिमा पर गुरु को आदर और सम्मान देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।शास्त्रों के मुताबिक गुरु की महिमा अनंत और अपरंपार है। भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है और उनके बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव मानी गई है। संत कबीर ने भी गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए कहा है कि,“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥“ यहाँ गुरु को गोविंद से भी ऊँचा स्थान दिया गया है, क्योंकि गुरु ही ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाते हैं। भगवान दत्तात्रेय ने अपने चौबीस गुरु बनाए थे। इनके अलावा भी भारतीय धर्म, साहित्य और संस्कृति में अनेक ऐसे दृष्टांत भरे पड़े हैं, जिनसे गुरु का महत्त्व प्रकट होता है।ऋषि वशिष्ठ को गुरु रूप में पाकर श्रीराम ने, अष्टावक्र को पाकर जनक ने और संदीपनी को पाकर श्रीष्ण-बलराम ने अपने आपको बहुत भाग्यशाली माना। केवल गुरु ही नहीं बल्कि अपने से बड़े और अपने माता-पिता को गुरु तुल्य मानकर उनसे सीख लेनी चाहिए एवं उनका हमेशा सम्मान करना चाहिए। इस गुरु पूर्णिमा पर हम सभी को अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करना चाहिए और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। गुरु के आशीर्वाद से ही हमारा जीवन सार्थक और सफल हो सकता है। क्योंकि सच्चे गुरु का ज्ञान और शिक्षा ही जीवन का आधार है। गुरु के बिना जीवन की कल्पना भी अधूरी है। सनातन अवधारणा के अनुसार इस संसार में मनुष्य को जन्म भले ही माता-पिता देते हैं लेकिन मनुष्य का सही अर्थ गुरु कृपा से ही प्राप्त होता है। गुरु जगत व्यवहार के साथ साथ भव तारक, पथ प्रदर्शक भी होते हैं।क्योंकि गुरु तो चंदन हैं और हम सब माटी। उनके आशीर्वाद से ही जीवन सार्थक होता है। तो आइए,आज हम सब करें अपने गुरुओं को नमन्।












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