शिवपुरी। शहर के मातोश्री गार्डन में 3 अगस्त से देश की भावी पीढ़ी यानी बच्चों और युवाओं के लिए खास कार्यक्रम आयोजित होने जा रहा हैं। हिंदू उत्सव समिति वेद प्रचार समिति शिवपुरी के बेनर तले ये आयोजन होगा।
पहली बार हो रहा आयोजन
वैदिक प्रवक्ता आचार्य सोमदेव द्वारा शिवपुरी में पहली बार पारिवारिक सद्भाव, समृद्धि के लिए "परिवार प्रबोधन" कार्यक्रम हो रहा है। यह कार्यक्रम दो दिवसीय रखा गया है।
3 अगस्त को ये होंगे कार्यक्रम
इसमें 3 अगस्त को सुबह 7.30 बजे ध्यान, वेद प्रवचन, दोपहर 3.30 बजे से समृद्ध परिवार का आधार मातृ शक्ति कार्यक्रम, रात्रि 8 बजे आत्मनिरीक्षण से मानव जीवन की उन्नति कार्यक्रम रखा गया है।
4 अगस्त के आयोजन इस प्रकार होंगे
4 अगस्त रविवार को सुबह 7.30 से 08:30 बजे ध्यान, 08:40 से 09:30 यज्ञ, 09:30 से 10:00
ध्यान योग, वेद प्रवचन, 10:10 से 11:00 - उन्नत परिवार, हमारी अनमोल सम्पत्ति, 11:10 से 12:00 राष्ट्र निर्माण में परिवार की भूमिका विषय पर प्रवचन होगा।
आयोजन समिति ने विस्तार से बताया
आचार्य सोमदेव जी
स्वामी आत्मानंद वैदिक गुरुकुल मलारना चौड़ (राजस्थान) से शिवपुरी आ रहे हैं।
आत्मीय स्वजन,
'वसुधैव कुटुम्बकम्' अर्थात् सारी (वसुधा) पृथ्वी मेरा (कुटुम्ब)
परिवार है, इस सिद्धान्त पर चलकर सम्पूर्ण विश्व को प्रेम और एकता के सूत्र में पिरोए रखने वाला ये राष्ट्र आज स्वयं पारिवारिक वैमनस्यता और विघटन का दंश झेल रहा है, टूटते हुए परिवार और मानसिक तनाव, अवसाद आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
इन वर्तमान स्थितियों के निर्मित होने का कारण है हमारे द्वारा उन मूलभूत सिद्धांतों, उन कार्य व्यवहारों को न जानना अथवा उनका त्याग कर देना जिनको जीवन में अपनाकर परिवार, समाज और राष्ट्र में सुख, शांति, प्रेम, सौहार्द, उन्नति समृद्धि, निश्चिन्तता, निर्भयता आदि को स्थापित किया जाता है। हमारा सौभाग्य है कि परिवार प्रबोधन के माध्यम से हमारे जीवन में सुख, शान्ति, समृद्धि सम्बन्धी सिद्धान्तों के विषय में मार्गदर्शन देने हेतु हमारे बीच पधार रहे हैं वैदिक प्रवक्ता आचार्य सोमदेव जी।
सनातन संस्कृति के सोलह संस्कार
"कृण्वन्तो विश्वमार्यम् "
परिवार प्रबोधन
मानव जीवन की उन्नति में संस्कारों का विशिष्ट महत्व है, मानव की शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक उन्नति के लिए जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त भिन्न-भिन्न समय पर संस्कारों की व्यवस्था प्राचीन ऋषि-मुनियों ने बहुत सुन्दर ढंग से की है। संस्कारों से ही मानव को द्विज बनने का अधिकार मिलता है। जिनको करके शरीर और आत्मा सुसंस्कृत होने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त हो सकते हैं और सन्तान अत्यन्त योग्य होते हैं इसलिये संस्कारों का करना सब मनुष्यों को अति उचित है।
(महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती, संस्कार विधि)
01. गर्भाधान संस्कार - शुद्ध आहार व शुद्ध विचारों से युक्त होकर
02. पुंसवन संस्कार - गर्भस्थ शिशु को बलवान, हृष्ट-पुष्ट, तेजस्वी बनाने हेतु दो या तीन माह पश्चात
03. सीमान्तोन्नयन संस्कार गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क के विकास हेतु चौथे, छठे या आठवे माह में
04. जातकर्म संस्कार - शिशु के जन्म के समय
05. नामकरण संस्कार जन्म के ग्यारहवें दिन
06. निष्क्रमण संस्कार- जन्म के दो या तीन माह पश्चात घर से बाहर की हवा और धूप में निकालना
07. अन्नप्राशन संस्कार दांत निकलने पर छटवे माह में
08. चूडाकर्म संस्कार - (मुण्डन संस्कार) पहले या तीसरे वर्ष में
09. कर्णभेद संस्कार जन्म के तीसरे या पांचवे वर्ष में
10. उपनयन संस्कार आठवे, ग्यारहवे, बारहवे वर्ष में यज्ञोपवीत धारण
11. वेदारम्भ संस्कार उपनयन संस्कार के साथ-साथ ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वेदाध्ययन आरम्भ
12. समावर्तन संस्कार- उत्तम विद्या प्राप्त कर गृहस्थाश्रम ग्रहण करने हेतु विद्यालय से प्रस्थान
13. विवाह संस्कार- अपने वर्णाश्रम के अनुकूल उत्तम कर्म करने हेतु स्त्री-पुरुष का संबंध होना
14. वानप्रस्थ संस्कार- विवाहोपरान्त सन्तान की भी सन्तान होने पर वन (आश्रम) आकर तप, स्वाध्याय करना
15. सन्यास संस्कार संसार के प्रति आसक्ति, पक्षपात, मोह आदि को त्यागकर प्राणि मात्र के कल्याणार्थ परोपकार करना
16. अन्तयेष्टि संस्कार- शरीर से आत्मा के मुक्त होने पर मृत शरीर का दाह करना

कोई टिप्पणी नहीं
एक टिप्पणी भेजें