मन मोहन तो हो गए
सदा सदा को मौन।
काम आज हैं बोलते
जो लगते थे गौण।।
धन संकट से अपना
घिरा हुआ था देश।
उदार निति अपना कर
दिया नया संदेश।।
कोई भूखा ना रहे
दिया अन्न अधिकार।
इससे पहले किसी को
आया नहीं विचार।।
हर हाथ को काम हो
कोई न हो निष्काम।
मनरेगा को लाए थे
खर्च करोड़ों दाम।।
पता आप कर सकते
क्या करती सरकार।
हर हाथ को दे दिया
सूचना का अधिकार।।
समझौता परमाणु किया
लगा दाव कुर्सी को।
देश बने निज उन्नत
महत्व दिया ऊर्जा को।।
कर्ज बोझ से दबे थे
लाखों देश किसान।
किया कर्ज से मुक्त था
काम नहीं आसान।।
मौनी बन करते रहे
बड़े देश हित काम।
बहुत बहुत श्रद्धा से
करता देश प्रणाम।।
*डॉ आर के जैन शिवपुरी*

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