SHIVPURI। शिवपुरी। नेत्रदान, एक ऐसा महादान है जो किसी की अंधेरी दुनिया में रौशनी बन सकता है। हर साल 10 जून को विश्व नेत्रदान दिवस मनाया जाता है — ताकि हम ये समझ सकें कि जीवन के बाद भी हमारी आंखें किसी और के जीवन का उजाला बन सकती हैं।
इसी भावना के साथ शिवपुरी के बड़ोदी गांव में शक्तिशाली महिला संगठन द्वारा एक नेत्रदान जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में गांव की लगभग आधा सैकड़ा (20 से अधिक) महिलाओं ने हिस्सा लिया और गहराई से समझा कि नेत्रदान कैसे किसी के लिए एक नया जीवन बन सकता है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता रवि गोयल ने कहा:
> "हम अपनी आंखों से तो पूरी उम्र दुनिया देखते हैं, पर सोचिए — मरने के बाद भी अगर आपकी आंखें किसी और को दुनिया दिखा सकें, तो ये कितनी बड़ी सेवा होगी। क्या आप खुद को इस महादान के लिए तैयार कर सकते हैं?"
करण लाक्ष्यकार ने भावुक शब्दों में कहा:
> "असली दोस्त वही होता है जो दुःख में साथ दे — और नेत्रदान एक ऐसा तोहफा है जो किसी अनजान को भी अंधेरे से निकाल सकता है। यही सच्ची मानवता है।"
कार्यक्रम में यह जानकारी दी गई कि एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आंखों से चार लोगों को रोशनी दी जा सकती है। नई तकनीक ‘डी मेक’ से एक आंख से दो लोगों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट किया जा सकता है — और ये प्रक्रिया केवल मृत्यु के 6 घंटे के भीतर संभव होती है।
देश में 25 लाख लोग ऐसे हैं जो कॉर्निया की प्रतीक्षा में हैं — जो कभी अपनी मां का चेहरा नहीं देख पाए, या बच्चों की मुस्कान नहीं महसूस कर पाए। नेत्रदान उनके लिए एक जीवनदान है।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता रजनी सेन और अंगूरी ने कार्यक्रम में कहा:
> "हमने नेत्रदान का संकल्प लिया है। अब हम गांव की हर महिला को यह समझाएंगी कि ये दान नहीं, एक उम्मीद है — किसी के लिए नई सुबह का रास्ता।"
कार्यक्रम में महिलाओं के सवालों के उत्तर दिए गए, उदाहरण के लिए — चश्मा पहनने वाले, मधुमेह या ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोग भी नेत्रदान कर सकते हैं। यह ज्ञान सुनकर कई महिलाओं की आंखों में आत्मविश्वास और संकल्प दोनों दिखाई दिया।
यह आयोजन केवल एक कार्यक्रम नहीं था — यह एक प्रकाश की चुपचाप जलाई गई लौ थी, जो अब गांव की कई आंखों से होती हुई, औरों की ज़िंदगी में उजाला फैलाएगी।

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