उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के निष्कर्षों सहित वैज्ञानिक और सामाजिक आंकड़े बताते हैं कि किशोरों में यौन गतिविधियां असामान्य नहीं हैं। जयसिंह ने 2017 और 2021 के बीच 16-18 वर्ष की आयु के नाबालिगों से जुड़े पॉक्सो कानून के तहत अभियोजन में 180 प्रतिशत की वृद्धि का हवाला दिया। उन्होंने कहा, ‘‘अंतरजातीय या अंतरधार्मिक संबंधों से जुड़े मामलों में अधिकतर शिकायतें अक्सर लड़की की इच्छा के विरुद्ध माता-पिता द्वारा दर्ज कराई जाती हैं। न्यायमित्र ने चेतावनी देते हुए कहा कि सहमति से यौन संबंध को अपराध घोषित करने से ‘‘युवा जोड़ों को खुले संवाद और शिक्षा को प्रोत्साहित करने के बजाय छिपने, शादी करने या कानूनी परेशानी में पड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है।'' इस समस्या के समाधान के लिए, उन्होंने न्यायालय से कानून में ‘‘आयु के निकट'' अपवाद को शामिल करने का आग्रह किया, जो 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों के बीच सहमति से किए गए यौन कृत्यों को पॉक्सो और आईपीसी के तहत अभियोजन से छूट देगा। उन्होंने कहा, ‘‘किशोरों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित करना मनमाना, असंवैधानिक और बच्चों के सर्वोत्तम हितों के विरुद्ध है।'' वरिष्ठ अधिवक्ता ने अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और भारतीय न्यायशास्त्र का हवाला देते हुए तर्क दिया कि कानूनी क्षमता सख्ती से उम्र-बाधित नहीं है। जयसिंह ने बंबई, मद्रास और मेघालय सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों के रुझानों की ओर भी इशारा किया गया है, जहां न्यायाधीशों ने पॉक्सो के तहत किशोर लड़कों के खिलाफ स्वतः मुकदमा चलाने पर असहमति व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि इन न्यायालयों ने रेखांकित किया कि नाबालिगों से संबंधित सभी यौन कृत्य बलपूर्वक नहीं होते हैं, तथा कानून को दुर्व्यवहार और सहमति से बने संबंधों के बीच अंतर करना चाहिए।
जयसिंह ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए यौन संबंध को दुर्व्यवहार नहीं माना जाना चाहिए और इसे पॉक्सो तथा दुष्कर्म कानूनों के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। उन्होंने पॉक्सो की धारा 19 के तहत अनिवार्य अभ्यावेदन दायित्वों की समीक्षा का आह्वान किया, जो किशोरों को सुरक्षित चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने से रोकता है। जयसिंह ने अपनी लिखित रिपोर्ट में कहा, ‘‘यौन स्वायत्तता मानव गरिमा का हिस्सा है, और किशोरों को अपने शरीर के बारे में विकल्प चुनने की क्षमता से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन है। (साभार)

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