शिवपुरी। राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक जटिल और बहु-आरोपित साइबर अपराध प्रकरण में आरोपी को नियमित जमानत प्रदान की है। यह निर्णय अभियुक्त की दो बार पूर्व में खारिज हो चुकी जमानत याचिकाओं के बाद आया, जब तीसरी बार प्रस्तुत याचिका में परिस्थितियों के नए तथ्य और सह-आरोपियों को मिल चुकी राहत को आधार बनाकर सफलतापूर्वक तर्क रखा गया।
मूल प्रकरण वर्ष 2024 में दर्ज एक एफआईआर से संबंधित है, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धाराएं 419, 420, 120-बी तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66-डी के तहत मामला दर्ज किया गया था। अभियोजन पक्ष का आरोप था कि आरोपी एक संगठित साइबर गिरोह से संबद्ध था जो बैंकों के खातों का अनुचित उपयोग कर डिजिटल धोखाधड़ी को अंजाम देता था।
आरोपी जून 2024 से न्यायिक हिरासत में था। इससे पूर्व उसकी दो जमानत याचिकाएं क्रमशः अगस्त 2024 और दिसंबर 2024 में खारिज हो चुकी थीं। तीसरी याचिका में, अधिवक्ता श्री राशिल गांधी ने न्यायालय के समक्ष स्पष्ट रूप से यह रेखांकित किया कि न केवल अभियोजन के दो प्रमुख गवाहों ने आरोपी के विरुद्ध कोई प्रत्यक्ष आरोप नहीं लगाए हैं, बल्कि आरोपी के व्यक्तिगत बैंक खातों में कोई संदिग्ध लेन-देन भी नहीं पाया गया है।
श्री गांधी द्वारा न्यायालय को यह भी अवगत कराया गया कि अभियुक्त की कोई पूर्व आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी दर्शाया कि यह मामला मजिस्ट्रेट न्यायालय में विचारणीय है और इसमें अंतिम निष्कर्ष तक पहुँचने में अपेक्षाकृत समय लग सकता है।
वहीं अभियोजन पक्ष ने इसका विरोध करते हुए तर्क दिया कि आरोपी गिरोह का सक्रिय सदस्य था और कमीशन के एवज में बैंक खातों का उपयोग करने की अनुमति दी थी, जिनके माध्यम से उच्च मूल्य के लेन-देन हुए थे।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के पश्चात माननीय उच्च न्यायालय ने यह माना कि वर्तमान साक्ष्य आरोपी की प्रत्यक्ष संलिप्तता को स्थापित नहीं करते हैं और अभियोजन का मामला फिलहाल प्राथमिक स्तर पर ही है। ऐसे में, अभियुक्त को सशर्त नियमित जमानत प्रदान की गई।
यह निर्णय न केवल अभियुक्त को राहत देने वाला है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि यदि विधिक पक्ष को तथ्यात्मक आधार पर मजबूती से प्रस्तुत किया जाए, तो न्यायालय पूर्व में खारिज की गई याचिकाओं पर भी सकारात्मक विचार कर सकता है। युवा अधिवक्ता श्री राशिल गांधी की यह सफलता न केवल उनकी विधिक सूझबूझ का प्रमाण है, बल्कि यह युवा अधिवक्ताओं के लिए एक प्रेरणा भी है कि सतत परिश्रम, विधिक अध्ययन और धैर्य से जटिल से जटिल मामलों में भी न्याय प्राप्त किया जा सकता है।

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