पंडितों के अनुसार चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर की रात से शुरू होकर 10 अक्टूबर की रात तक रहेगी और चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। छलनी से चंद्रमा और पति को देखना शुभ माना जाता है। इस व्रत के अंत में महिलाएं चंद्रमा और अपने पति का प्रत्यक्ष दर्शन न कर छलनी से दर्शन करती हैं। मान्यता है कि छलनी में हजारों छेद होते हैं, जिससे चांद के छेदों की संख्या जितने प्रतिबिंब दिखते हैं। अब छलनी से पति को देखती हैं तो उनकी आयु भी उतनी गुणा बढ़ जाती है। इस दिन शिव, भगवान गणेश और कार्तिकेय की भी पूजा होती है, लड़कीं प्रधानता चन्द्रमा की होती है। चंद्रमा को पुरुष रूपी ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पहली बार माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए यह व्रत रखा था।माता सीता ने भी भगवान श्रीराम के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। तब से सुहागिनें अखण्ड सौभाग्य हेतु इस व्रत का पालन करती हैं। कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर सिद्धि और शिववास योग कई दुर्लभ एवं मंगलकारी योग बन रहे हैं। करवा चौथ के कृत्तिका और रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इसके साथ ही बव, बालव और तैतिल योग का निर्माण हो रहा है।
सनातन धर्म में कार्तिक माह का खास महत्व है। इस महीने में जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा से जागृत होते हैं। इसके साथ ही कार्तिक महीने में दीवाली, धनतेरस, छठ पूजा समेत कई प्रमुख व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। इस माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर करवा चौथ मनाया जाता है। इस दिन वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी भी मनाई जाती है।
थाली में शामिल करें ये चीजें
गंगाजल, शुद्ध जल, लकड़ी की चौकी, चलनी, करवा, कलश, पीली मिट्टी, अठावरी, हलवा, दक्षिणा, गेहूं, शक्कर, रोली, चावल, जौ, माचिस, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मिठाई, सिंदूर, मेहंदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, चंदन, शहद, धूप, कुमकुम, हल्दी आदि।
करवा चौथ पूजा समय
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर पूजा के लिए शुभ समय शुक्रवार 10 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 57 मिनट से लेकर 07 बजकर 11 मिनट तक है। इस समय में व्रती करवा माता और चंद्र देव की पूजा कर सकती हैं। सनातन धर्म में भगवान गणेश प्रथम पूजनीय हैं। वहीं, करवा चौथ पूजा में करवा को भगवान गणेश माना जाता है। इसके लिए करवा में जल रखा जाता है और अग्नि देव को साक्षी मानकर कलश के सामने दीपक जलाया जाता है। साथ ही दीपक से आरती की जाती है।
सींक
करवा चौथ (Karwa Chauth History) में सींक का खास महत्व है। शास्त्रों में वर्णित है कि एक बार करवा माता के पति सरोवर में स्नान कर रहे थे। उस समय मगरमच्छ ने करवा माता के पति के पैर को पकड़ लिया। यह देख करवा माता ने सींक से मगरमच्छ के मुंह को बाँध दिया। इसके बाद करवा माता मगरमच्छ को लेकर यमलोक पहुंची। जब यमदेव को पूरी जानकारी प्राप्त हुई थी, तो यमदेव ने करवा माता के पति के प्राण की रक्षा की। इसके लिए पूजा के दौरान सींक अवश्य ही रखा जाता है।
कलश और थाली
करवा चौथ की संध्या को चंद्र उदय के बाद कलश से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। पूजा की थाली में जौ भी रखा जाता है। इससे सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही घर में सुख और शांति बनी रहती है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से व्रती की हर मनोकामना पूरी होती है।
पार्लर से लेकर मेंहदी वाली बुक
अब बात करें तो करवा चौथ को स्पेशल मनाने के लिए महिलाओं में प्रतिस्पर्धा देखने मिल रही है। ब्यूटी पार्लर से लेकर मेंहदी पार्लर बुक किए जा चुके हैं। इधर साड़ी की मैचिंग की चूड़ियां, कंगन आदि खरीदने की होड लगी है।
पतियों से गिफ्ट की फरमाइश
लंबी उम्र के बदले ये व्रत पतियों की जेब भी हल्की करवाता है इसीलिए पत्नी अपने पतियों से गिफ्ट मांग रही है। उपहार स्वरूप गहने से लेकर मनचाही वस्तुओं को लाने पतियों को राजी किया जा रहा है।














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