दिल्ली। मोदी सरकार ऑफिस में काम के 12 घंटे करने की तैयारी में है। इसे लागू करने का प्रस्ताव
नए ड्राफ्ट कानून में शामिल है। कामकाज के अधिकतम घंटों को बढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया है। ओएसच कोड के ड्राफ्ट नियमों में 15 से 30 मिनट के बीच के अतिरिक्त कामकाज को भी 30 मिनट गिनकर ओवरटाइम में शामिल करने का प्रावधान है। अब तक 30 मिनट से कम समय ओवरटाइम योग्य नहीं माना जाता है। ड्राफ्ट नियमों में किसी भी कर्मचारी से 5 घंटे से ज्यादा लगातार काम कराने को प्रतिबंधित किया गया है। कर्मचारियों को हर पांच घंटे के बाद आधा घंटे का विश्राम देने के निर्देश भी ड्राफ्ट नियमों में शामिल हैं।
पीएफ और रिटायरमेंट के नियम भी बदलेंगे
नया बिल पास हुआ तो
अगले साल से कर्मचारियों की ग्रेच्युटी और भविष्य निधि (पीएफ) मद में बढ़ोतरी हो सकेगी। वहीं, हाथ में आने वाला पैसा घटेगा। साथ ही कंपिनयों की बैलेंस शीट भी प्रभावित होगी। कारण यह है कि पिछले साल संसद में पास किए गए तीन मजदूरी संहिता विधेयक कोड ऑन वेजेज बिल। इन विधेयकों को अगले साल 1 अप्रैल से लागू होने की संभावना है।
मजदूरी की नई परिभाषा के क्रम में भत्ते कुल सैलेरी के अधिकतम 50 फीसदी होंगे। इसका मतलब है कि मूल वेतन (सरकारी नौकरियों में मूल वेतन और महंगाई भत्ता) अप्रैल से कुल वेतन का 50 फीसदी या अधिक होना चाहिए। बता दें कि देश के 73 साल के इतिहास में पहली बार इस प्रकार से श्रम कानून में बदलाव किए जा रहे हैं। सरकार का दावा है कि नियोक्ता और श्रमिक दोनों के लिए फायदेमंद साबित होंगे। नए ड्राफ्ट के अनुसार, मूल वेतन कुल वेतन का 50% या अधिक होना चाहिए। इससे ज्यादातर कर्मचारियों का वेतन संरचना बदलेगी, क्योंकि वेतन का गैर-भत्ते वाला हिस्सा आमतौर पर कुल सैलेरी के 50 फीसदी से कम होता है, वहीं कुल वेतन में भत्तों का हिस्सा और भी अधिक हो जाता है। मूल वेतन बढ़ने से पीएफ बढ़ेगा। पीएफ मूल वेतन पर आधारित होता है। मूल वेतन बढ़ने से पीएफ बढ़ेगा, जिसका मतलब है हाथ में आने वाले वेतन में कटौती होगी। जबकि ग्रेच्युटी और पीएफ में योगदान बढ़ने से रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली राशि में फायदा होगा। माना जा रहा है कि इससे लोगों को रिटायरमेंट के बाद सुखद जीवन जीने में आसानी होगी। जिससे उच्च-भुगतान वाले अधिकारियों के वेतन ढांचे में सबसे अधिक बदलाव आएगा और इसके चलते वो ही सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। पीएफ और ग्रेच्युटी बढ़ने से कंपनियों की लागत में भी वृद्धि होगी क्योंकि उन्हें भी कर्मचारियों के लिए पीएफ में ज्यादा योगदान देना पड़ेगा। इन चीजों से कंपनियों की बैलेंस शीट भी प्रभावित होगी।

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