शिवपुरी। जिस सीवर परियोजना ने नगर के लोगों को अस्थमा से लेकर धूल, मिट्टी के गुबार से रोगी बना दिया और आज भी पूरी नहीं हुई है। उस योजना में गड़बड़झाले के आरोप लगातार सामने आते रहे हैं। तत्कालीन अधिकारियों की लापरवाही के फेर में योजना लटकी रही जिसे मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया की सतत मोनिटरिंग से पूरा कराने के प्रयास जारी हैं। ईई एसएल बाथम योजना को पूरा कराने में जुटे हैं लेकिन इसी बीच लोकायुक्त के शिकंजे में आई सीवर परियोजना के काम मे गड़बड़ी और फर्जी भुगतान की जो आग भड़की है उसके थपेड़े ई ई बाथम को भी चपेट में ले रहे हैं। लोकायुक्त ने शहर में जारी झील सरंक्षण परियोजना अंतर्गत सीवर परियोजना के कार्य में गड़बड़ी को लेकर एक शिकायत के बाद कुछ महीने पहले पीएचई के अधिकारियों सहित परियोजना ठेकेदार पर केस दर्ज किया है। आरोप है कि ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए गलत ढंग से 1.12 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। लोकायुक्त ने पीएचई के कार्यपालन यंत्री एसएल बाथम, तत्कालीन सहायक यंत्री केजी सक्सेना, उपयंत्री एमडी गौड़, उपयंत्री डीपी सिंह और ग्वालियर की ठेकेदार कंपनी मैसर्स जैन एंड राय कंपनी पर केस दर्ज किया है। लोकायुक्त ने इन सभी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, आइपीसी की धारा 120बी, 420, 467, 468 और 471 में मामला दर्ज किया है और सभी संबंधित को कार्रवाई के लिए पत्र लिखा है। हालांकि ईई एसएल बाथम का कहना है कि मामले में उनका पक्ष नहीं सुना गया है आरोप निराधार हैं। बता दें कि खुड़ा निवासी एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने शिकायत की थी कि सीवर परियोजना की डीपीआर में क्रियान्वयर एजेंसी द्वारा नगर पालिका की सड़कों को सीवर लाइन बिछाने के लिए खोदा जाना था। फिर लाइन बिछाकर उसका भराव करना था और मिलान करके डब्ल्यूबीएम रोड़ डालकर नगर पालिका को सुपुर्द करनी थी, जिसके बाद नपा को इन पर सीसी रोड का निर्माण करना था। लेकिन पीएचई ने ऐसा नहीं किया। समतलीकरण और डब्ल्यूबीएम रोड का निर्माण किये बिना ही सड़कें नपा को हैंडओवर कर दी गईं। इनमें से 30 सड़कों का भौतिक सत्यापन भी कर लिया गया है जबकि 17 सड़कों पर सीसी रोड डाले जाने की वजह से उनका सत्यापन नहीं हो पाया है। जांच के दौरान लोकायुक्त की टीम ने लोगों के बयान भी लिए हैं। कहा जा रहा है कि काम हुआ बिना ही विभाग ने कंपनी को 1.12 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। जिसे लेकर लोकायुक्त ने इस मामले में 13 नवंबर 2020 को एफआइआर दर्ज की लेकिन किसी को भनक तक नहीं लगी।
यह आया है सामने
जांच में पाया गया कि उपयंत्री एमडी गौड़ स्टोर इंचार्ज थे एंट्री के लिए उत्तरदायी हैं। अप्रैल 2015 में कार्यपालन यंत्री विनोद कुमार छारी ने सब डिवीजन को माप पुस्तिका क्रमांक 105 जारी की थी। मेजरमेंट के लिए 26.09.2015 को सहायक यंत्री केजी सक्सेना ने उपयंत्री एमडी गौड़ को जारी की जिसमें पेज क्रमांक 24 डब्ल्यूबीएम और गिट्टी मुरम व मिलान के संबंध में है जिसमें उपयंत्री एमडी गौड़ ने मापांकन किया। पेज नं. 26, 27 पर एमडी गौड़ ने हस्ताक्षर करने के बाद काट दिये। इस पर हस्ताक्षर के नीचे 19.09.2015 अंकित है। पेज 85 पर हस्ताक्षर काटा गया है जिस पर 25.05.2016 अंकित है जिसे ओवरराइट किया गया है। पेज 28 के माप पर गौड़ ने 22.09.2015 को हस्ताक्षर किये हैं। जबकि गौड़ को माप पुस्तिका 22.09.2015 को जारी की गई थी यानि पुस्तिका जारी होने के पहले ही गौड़ ने मापांकन कर दिया। कार्यपालन यंत्री को कार्य के 10 प्रतिशत का सत्यापन करना था जो नहीं किया गया। मापांकन में जगह-जगह पर इस तरह की गड़बड़ी सामने आई है। इसलिए सहायक यंत्री केजी सक्सेना, उपयंत्री एमडी गौड़, उपयंत्री डीपी सिंह और ग्वालियर की ठेकेदार कंपनी मैसर्स जैन एंड राय को मिथ्या प्रविष्टि का दोषी बताया जा रहा है। बता दें कि जिस कार्य पर उंगलियाँ उठ रही हैं वह ई ई बाथम के जिले में आने के पहले के हैं और तब यही मामले अखबारों की खूब सुर्खियां बने थे लेकिन तत्समय किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी।

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