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सांस्कृतिक विस्मृति से समाज में बढ़ रहे अपराध: जस्टिस पारे

रविवार, 13 दिसंबर 2020

/ by Vipin Shukla Mama

सीसीएफ़ की 23 वी ई संगोष्ठी सम्पन्न
भोपाल। चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 23 वी ई संगोष्ठी में आज जिला जज(सेनि) अनिल पारे ने देश भर के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि समाज में निरन्तर होता सांस्कृतिक क्षरण एक खतरनाक चुनौती है।अपराध का बढ़ता ग्राफ या पारिवारिक,सामाजिक तनाव का मूल कारण भारतीय लोकजीवन से परम्परागत सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों का कटाव है।अपने सुदीर्ध न्यायिक अनुभव के आधार पर बोलते हुए श्री पारे ने कहा कि आज बाल और महिला अपराधों में तेजी मूलतः संस्कारहीनता का नतीजा ही है।आज का समाज अपनी सम्रद्ध मूल्य विरासत को विस्मृत कर एक तरह की पतितावस्था में आ चुका है यही उन अपराधों की जड़ है जो बच्चों और महिलाओं से जुड़े है।जस्टिस पारे ने समाज मे परिवार प्रबोधन की आज की सामयिक आवश्यकता  है और केवल कानून  का निर्माण, सामाजिक विचलन का शमन नही कर सकते है।उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारी चेतना में भारतीय सँस्कृति औऱ जीवन मूल्य पुनर्स्थापित नही होंगे तब तक कानून कारगर नही हो सकते है। पारे ने न्यायालय में वाद प्रस्तुत किये जाने सबंधी विहित प्रक्रिया और प्रावधानों की विस्तार से जानकारी दी उन्होंने बताया कि कैसे औऱ किन मुख्य आधारों पर न्याय निर्णय की कारवाई पूर्ण होती है। डिक्री और निर्णय के बुनियादी अंतरों को भी उन्होंने सरलता से बताने का प्रयास किया। संगोष्ठी में सिविल प्रक्रिया सहिंता औऱ आईपीसी सहित अन्य  सहसबन्धित प्रावधानों पर भी सिलसिलेवार चर्चा की गई। खुले सत्र में बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने पॉक्सो कम्पनसेसन को लेकर न्यायालय द्वारा अधिक समय लिए जाने पर फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चोबे ने बताया कि पॉक्सो में विचाराधीन प्रकरणों में अंतिम निर्णय नही होने तक पूर्ण मुआवजा नही दिया जाता है ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बड़ी संख्या में इस कानून का दुरूपयोग भी सामने आया है।डॉ चौबे ने बताया कि ऐसे मामलों में त्वरित मुआवजे के लिए बालकल्याण समितियों को कलेक्टर से सम्पर्क कर शुरुआती राहत राशि उपलब्ध कराई जा सकती है।
चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने ई संगोष्ठी के मुख्य वक्ता जस्टिस पारे का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि कानून के मकड़जाल में आम आदमी  को कैसे न्याय प्राप्त हो इसके लिए सिस्टम को समावेशी बनाने की आवश्यकता है।
ई संगोष्ठी में मप्र के 32 जिलों के सीडब्ल्यूसी व जेजेबी सदस्य सहित मप्र, छतीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, बिहार, झारखंड, यूपी, हिमाचल प्रदेश, आसाम के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। सचिव डॉ चौबे ने अंत मे यह भी बताया कि 24 वी संगोष्ठी परामर्श प्रविधि पर आयोजित होगी।

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