शिवपुरी। नगर के जानेमाने कॉन्ट्रक्टर सुनील शर्मा एक जानीमानी हस्ती हैं। तल्ख कहना उन्हें बखूबी आता है या कहिये सच कहने का अदम्य साहस उन्होंने सदैव रखा है। वर्तमान कोरोना परिप्रेक्ष्य में जब तरह तरह के विचार लोग सामने ला रहे हैं ऐसे में शर्मा भी अपने ठोस विचार से हमको अवगत करा रहे हैं। बीते रोज एक साथी के तर्क से असहमत होकर शर्मा ने इतना ही कहा कि कुछ तर्क से अच्छे दिन जैसी बात किसी जुमले जैसी ही लगती हैं। इसलिए धरातल पर काम होना चाहिये। आप कहते हैं कि हम आम नागरिक जो इन सभी सुविधाओं स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली आदि के बेहतर होने के लिए ही प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष कर देते हैं, उसका हिसाब किताब जानने एवं उनके उपयोग करने का हमें पूर्ण अधिकार होना चाहिए पर जब हम किसी व्यक्ति की भक्ति या किसी पार्टी विशेष की पसंद के पूर्वाग्रह के नजरिये के चलते उसको नजरअंदाज कर अपने बेतुके तर्कों से खुद को ही दोषी मानने लगेंगे तो यह "नया भारत" का निर्माण भी एक जुमला ही होगा, यह तर्क तो भारत के हर पार्टी के राजनेताओं को वही सब मनमानी और भ्रष्टाचार करने का अवसर देना होगा जो वो अभी तक करते आये हैं। महामारी जब नहीं आई तब उसे अपने देश में "नमस्ते ट्रम्प" का आयोजन कर बुलाना फिर एक देश विशेष चीन के सर मढ़ देना, उस महामारी के आ ही जाने पर सत्तासीन जिम्मेदारों द्वारा स्वास्थ्य व्यवस्था सुधारने की जगह "गो कोरोना, गो कोरोना" के नारे लगाना और फिर उस महामारी की तीव्रता कम हो जाने पर अपनी दूरदर्शिता न दिखाकर ऐसे ऐसे काम करना जिससे लगे कि हम अपने देश में स्वास्थ्य इंतजाम बढाने की जगह उसे "कम कोरोना, कम कोरोना" कह कर बुला रहे हैं यह विपदा को आमंत्रण देना ही है और फिर अपने कुतर्कों के सहारे सरकार को जिम्मेदार न मानकर खुद को ही दोष दे रहे हैं।
एक नई अनोखी बीमारी (महामारी) के सटीक इलाज न होने के कारण किसी की जान जाती है तो किसी भी चिकित्सा प्रणाली, सरकार, प्रशासन आदि पर पूर्णतः दोषारोपण ठीक भी नहीं पर जब मरीजों की मृत्यु ऑक्सीजन की कमी, दवा की अनुपलब्धता, चिकित्सकों और चिकित्सा सहायकों की कमी के कारण हो तो सरकार या प्रशासन से प्रश्न तो बनता है, यदि नहीं तो फिर यह तो ऐसा हुआ कि जब शहर को आग लगी तब ही फायर ब्रिगेड को रिपेयर करने का टेंडर लगाया जाए और तभी नलकूप को सुधारने के आदेश दिए जाये जिससे कि जब फायर ब्रिगेड सुधर कर आये तो उसमे पानी भरकर उसे आग बुझाने भेजा जा सके। किन्तु जब तक सब जलकर ख़ाक हो जाये तो गेंद को इस पाले से उस पाले में फेकते रहें।

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