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तात्या टोपे की बचपन से ही युद्ध और सैन्य कार्यों में रूचि थी: कु.शिवानी राठौर

रविवार, 18 अप्रैल 2021

/ by Vipin Shukla Mama
ब्रिटिश हुकूमत के दौर में देश में आजादी का बिगुल फूंकने वाले तात्या टोपे ने न सिर्फ 1857 में स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी, बल्कि पूरे देश में आजादी की चेतना का सूत्रपात किया। तात्या टोपे ने गुलामी को अपनी नियती मान चुकी पूरे देश की जनता को यह बताया कि आजादी क्या होती है और उसे हासिल करना कितना जरूरी है।
महान स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे  का बलिदान दिवस वर्चुअल रूप से मनाते हुए कु. शिवानी राठौर जिलाअध्यक्ष पिछड़ा वर्ग महिला कांग्रेस शिवपुरी ने बताया कि हम सब का सौभाग्य है कि हमारा जन्म शिवपुरी जिले में हुआ है। शिवपुरी ही वह पावन पुण्य भूमि है जहां पर अमर शहीद तात्या टोपे को आज ही के दिन 18 अप्रैल को अंग्रेज सरकार द्वारा उन्हें फांसी दी गई थी। भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही है। उन्होंने 1857 की क्रांति में अपनी युद्ध करने की नीति से अंग्रेज सैनिकों को खूब छकाया। युद्ध में कभी हार भी मिलती तो वह निराश नहीं होते बल्कि तुरंत दूसरे युद्ध की तैयारी में जुट जाते। उन्होंने अपने पूरे जीवन में अंग्रेजों के खिलाफ करीब डेढ़ सौ लड़ाइयां लडीं और इस दौरान उन्होंने दुश्मन के लगभग दस हजार सैनिकों को मार गिराया। इस तरह वे अंग्रेजों की नाक में हमेशा दम किए रहते। 
तात्या ने 1857 की क्रांति के दौरान झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का साथ दिया। दोनों ने साथ मिलकर अंग्रेजों को हराने की रणनीति बनाई ।कल्पी और ग्वालियर के युद्ध में वह रानी लक्ष्मीबाई की मदद के लिए आगे आए। अप्रैल 1859 में एक युद्ध के दौरान वह पकड़े गए। 15 अप्रैल की तारीख थी, जब उनका कोर्ट मार्शल किया गया और उसी में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। वह 18 अप्रैल की शाम थी, जब शाम पांच बजे सैंकड़ों लोगों की भीड़ के बीच उन्हें फांसी दे दी गई। कहा जाता है फांसी के दौरान भी उनका चेहरा दमक रहा था और वे गर्व से भी भरे हुए थे।
इस अवसर पर कु. शिवानी राठौर के साथ गूगल मीट पर अन्य साथी युवा कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

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