( डॉ अजय खेमरिया, शिवपुरी)
कोरोना की दूसरी लहर ने जिस अप्रत्याशित तरीके से देश में नागरिकों की जान ली वह हमारी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए तमाम बुनियादी सबक भी देता है।इनमें सबसे प्रमुख है सहबद्ध सेवाओं यानी एलाइड सर्विसेज की गुणवत्ता औऱ न्यूनता का पक्ष।कोविड से जितनी मौत चिकित्सकीय सेवा औऱ न्यूनता से हुईं है कमोबेश उतनी ही पैरा मेडिकल स्टाफ की मानक सेवाओं के अभाव से भी हुई।स्वतंत्र डेथ ऑडिट अगर ईमानदारी से सार्वजनिक किया जाए तो यह प्रमाणित होगा कि भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली मानक सहबद्ध सेवाओं की भारी कमी का सामना कर रही है।हजारों लोग अस्पतालों में इसलिए जान से हाथ धो बैठे क्योंकि उन्हें समय पर वेंटिलेटर नही लगाया जा सका।ऑक्सीजन कंस्ट्रेटर पर मरीजों को रखने के बाद उनकी सतत निगरानी नही हुई न ही यह ध्यान रखा गया कि किस क्षमता का कंस्ट्रेटर किस मरीज को लगाया जाना चाहिए।ऑक्सीजन पाइपलाइन से कितनी मात्रा ऑक्सीजन फ्लो की जानी है। उपयोग किये जा चुके उपकरणों को किस मानक विधि से नए मरीजों को हाइजीन के साथ प्रयोग किया जाना इसके लिए भी अस्पतालों में कोई मानक प्रचालन प्रविधि अमल में नही लाई गई।नतीजतन कम संक्रमित मरीज बड़ी संख्या में अस्पताल में आकर ज्यादा संक्रमित हुए और मौत का आंकड़ा लाखों में पहुँच गया। ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों पर बगैर एसओपी ( मानक प्रविधि) से इलाज किया गया जिसके चलते शहरी अस्पतालों में गंभीर मरीजों का तांता लगा गया।मप्र के नए आरम्भ हुए सात मेडिकल कॉलेजों में वेंटिलेटर पैकिंग से बाहर नही निकाले जा सके क्योंकि उन्हें चलाने वाले दक्ष स्टाफ की उपलब्धता नही थी।बिहार,पंजाब,राजस्थान,यूपी में तमाम वेंटिलेटर मरीजों के लिए उपयोगी साबित नही हुए।हजारों की संख्या में आरटीपीसीआर के नमूने प्रयोगशालाओं में रोज खारिज हुए क्योंकि उन्हें लेते समय सावधानी नही बरती गई।असल में जिस अचानक आपदा की तरह यह दुसरी लहर आई उसने हमारी सहबद्ध सेवाओं की पोल खोल कर रख दी। अगर प्राथमिक उपचार में दक्ष पैरामेडीकल स्टाफ सब जगह उपलब्ध होता तो संभव है मप्र,यूपी,बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में मौतों का आंकड़ा इस संख्या तक नही जाता। आज ब्लैक फंगस की नई चुनौती हमारे आगे खड़ी है इसके मूल में स्टीरॉयड दवाओं को बेतरतीबी से मरीजों को दिया जाना हैं।यह काम सहायक चिकित्साकर्मियों की देखभाल में तभी मानक अनुरूप हो सकता था जब उन्हें इस तरह का पूर्व प्रशिक्षण हांसिल होता।देश में सहबद्ध स्वास्थ्यकर्मियों के मामले में अभी तक कोई उन्मुखीकरण का सिस्टम नही है।निजी अस्पतालों में भी ऐसे पेशेवर कर्मियों का नितांत अभाव है जो क्लिनिकल अभ्यास से जुड़े हुए हो। फीजियोथेरेपिस्ट,टेकनिशियन,लैब असिटेन्ट,कम्पाउंडर,सिस्टर्स,काउंसलर,डायलिसिस टेक्नीशियन,एनस्थीसिया टेक्नीशियन, सिटी एवं एमआरआई असिटेन्ट,एंडोस्कोपी असिटेन्ट ड्रेसर,डायटीशियन,बेड असिटेन्ट,वार्ड वॉय,काल बाय,डिस्पोज सहायक,एनालाइजर,सहित छप्पन विधाएं पैरामेडीकल स्टाफ के अंतर्गत आती हैं जो मरीज को डॉक्टरी उपचार औऱ सर्जरी के बाद बेहद उपयोगी होती हैं।दुर्भाग्य से भारत में इन सेवाओं के लिए कोई मानक या सतत प्रशिक्षण का तंत्र है ही नही,यही कारण है कि करोड़ों के चिकित्सकीय उपकरण सरकारी अस्पतालों धूल खाते रहे और कोविड में लोगों की जान जाती रही।मोदी सरकार ने कोविड की पहली लहर के तत्काल बाद नर्सिंग मिडवाइफरी एवं पैरामेडिकल स्टाफ के विनियमन के लिए कानून बनाने वाले बिल पिछले संसद सत्र में पारित किए है । सरकार को एकतरफा इस त्रासदी के लिए कोसने वालों को यह भी समझना चाहिये कि 70 साल से इस देश में सहबद्ध स्वास्थय सेवाओं के लिए कोई नियामकीय तंत्र क्यों विकसित नही हुआ?यह प्रमाणित करता है कि आजादी के बाद से 2021 तक सरकारों की प्राथमिकता में जन स्वास्थ्य और इससे जुड़ी सहबद्ध सेवाएं कहाँ थी?एक दूसरा पक्ष उपलब्ध सेवाओं के अधिकतम सदुपयोग का भी इस दौरान सामने आया है।बीएससी नर्सिंग करने वाली नर्सों को हमने वेक्सिनेशन औऱ ऐसे ही कम महत्व के कार्यों में लगा रखा हैं।देश में नर्सिंग स्टाफ के अधतन प्रशिक्षण की कोई मानक व्यवस्था ही नही है।फिजियोलॉजी,एनाटोमी औऱ फार्माकोलॉजी जैसे चिकित्सकीय विषयों को पढ़ने वाली नर्सें वेंटिलेटर लगाने, सिटी स्कैन औऱ सामान्य क्लिनिकल उपचार के कार्य आसानी से कर सकती हैं लेकिन यह हमारे देश में नहीं होता है।विसंगति यह है कि यही भारतीय नर्सें विदेशों में जाकर क्लिनिकल प्रेक्टिस के आधे कार्यों में पारंगत हो जाती हैं।ब्रिटेन के नेशनल हैल्थ सिस्टम में प्रति साल एक हजार भारतीय नर्सों के लिए अलग से भर्ती होती हैं।यह नर्सें डॉक्टरों का आधा काम करने में कुछ ही समय में प्रवीण हो जाती हैं।भारत में इसके उलट स्थिति है, एकाद प्रमोशन पाकर नर्सें रिटायर हो जाती है वह जीवन भर एक बेड असिटेन्ट या वेक्सीनेटर बनकर रहती है।एक महत्वपूर्ण विसंगति यह भी है कि आर्मी प्रशासन में स्टाफ नर्स से भर्ती महिला कर्नल तक प्रमोशन पा जाती है और आर्मी हॉस्पिटल में क्लिनिकल प्रेक्टिस का अहम हिस्सा बन जाती हैं, वहीं सिविल प्रशासन में वह जड़ता और एकरूपीय कार्य संस्कृति की शिकार रहती है।वेतनमान के मामले में भी नर्सें दिहाड़ी दर पर काम कर रही है जबकि हाल ही में मोदी सरकार ने इन्हें हैल्थ एवं वेलनेस सेंटर्स पर सीएचओ यानी सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में तैनात करने का निर्णय लिया है लेकिन गुणवत्ता और निष्णात होने के मामले में एकरूपता का नितांत अभाव है।केरल और तमिलनाड़ु से आने वाली नर्सेज अन्य प्रांतों की तुलना में ज्यादा निपुण है क्योंकि वहां उन्हें प्रशिक्षण और काम की बेहतर संभावनाए मिलती हैं।
कैग की एक रिपोर्ट बताती है कि बिहार, झारखंड,मप्र,यूपी, सिक्किम, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल-में स्वास्थ्य केंद्रों में करीब 50 फीसदी पैरामेडिकल कर्मचारियों की कमी है।जाहिर है न केवल डॉक्टरों की उपलब्धता बल्कि सहबद्ध सेवाकार्मिकों के मोर्चे पर भी भारत में दीर्धकालिक और मानक रणनीति की आवश्यकता है।मोदी सरकार ने इस मोर्चे पर पहली बार बुनियादी पहल की है।
कोरोना काल में सहबद्ध सेवाओं के निर्णायक महत्व को ध्यान में रखते हुए सहबद्ध औऱ स्वास्थ्य देखरेख आयोग विधेयक को स्वीकृति दी गई है। पहली बार एक राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान इस बिल में है।आयोग द्वारा मानवीय चिकित्सा प्रणाली के लिए मान्यता प्राप्त विभिन्न प्रवर्ग को अधिसूचित किया जा रहा है।जिनमें प्रमुख रूप से चिकित्सा प्रयोगशाला औऱ जीव विज्ञान है।इसके अंतर्गत जैव प्रौद्योगिकीविद,जैव रसायनज्ञ,न्यायालयिक विज्ञान,रक्त,मूत्र और मेरुदंड सहित जैविक सामग्री के विश्लेषण,परीक्षण करने वाले , उत्तक प्रोद्योगिकीविद,रक्त प्रोद्योगिकीविद समेत 11 सहबद्ध कर्मी शमिल होंगें है।मानसिक आघात,बर्न केयर,शल्य प्रवर्ग में ओटी प्रोद्योगिकविद ,लेप्रोस्कोपी प्रद्योगिकीविद,आपातकालीन चिकित्सा सहायक सहित छः सेवाएं सम्मिलित की गई है।भौतिक चिकित्सा के तहत फीजियोथेरेपिस्ट भी अब इसमें शामिल कर लिए गए है।पोषाहार विज्ञान प्रवर्ग के तहत पोषण आहार विज्ञानी,पोषणविद जिनमें लोक स्वास्थ्य पोषण विद ,खेल पोषणविद को शामिल रहेंगे।नेत्र विज्ञान सेवा में दृष्टि विज्ञान,नेत्र विज्ञान सहायक,दृष्टि तकनीशियन शामिल रहेंगे।सामुदायिक देखभाल,व्यवहार स्वास्थ्य विज्ञान,एमआरआई,सीटी स्कैन,सोनोग्राफी,एक्सरे,अल्ट्रासाउंड प्रोद्योगिकीविद के अलावा रिकार्ड कीपर,सूचना सहायक जैसे कुल 56 प्रकार के पैरामेडिकल सेवाकर्मियों को इस विधेयक में कवर किया गया है।जाहिर है बुनियादी रूप से भारत में अब पहली बार इन सेवाओं को प्रतिष्ठित एवं विनियमित किया जाएगा।इसी तर्ज पर नर्सिंग मिडवाइफरी बिल भी नर्सिंग कौशल को चिकित्सकीय उपचार प्रणाली में प्रभावी और परिणामोन्मुखी ढंग से सयुंक्त करेगा।इस आशय का उल्लेख नई शिक्षा नीति में भी किया गया है।
वस्तुतः 130 करोड़ की आबादी के आरोग्य का काम केवल भौतिक संसाधन जुटाने से संभव नही है इसके लिए दक्ष मानव संसाधन अपरिहार्य हैं।भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली अभी तक डॉक्टरों की प्रवीणता को प्रतिपादित करती रही है जबकि तथ्य यह है कि सहबद्ध सेवाओं के बिना कोई भी पैथी प्रमाणिकता से समाज का भला नही कर सकती है।
आशा की जानी चाहिये कि आने वाले समय में हमारी स्वास्थ्य प्रणाली का ढांचा पूरे कौशल के साथ एक समावेशी धरातल पर काम करेगा।जो सबक कोविड में हमें सेवाओं की न्यूनता के रूप में रेखांकित हुए है उनका समयबद्ध शमन केंद्र और राज्य की सरकारें मिलकर करेंगी।

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