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धमाका खास खबर: 'कल 25 जुलाई से 'श्रावण मास' शुरु', पढिये विस्तार से खबर

शनिवार, 24 जुलाई 2021

/ by Vipin Shukla Mama
 जानिए कब पूजन करने से महादेव होंगे प्रसन्न
शिवपुरी। देवों के देव महादेव के प्रिय श्रावण मास की शुरुआत 25 जुलाई रविवार से हो रही है। श्रावण मास का आरंभ श्रवण नक्षत्र से हो रहा है। इस दिन दोपहर बाद 3 बजकर 27 मिनट तक आयुष्यमान योग है। ये योग रोगों से छुटकारा दिलाने के साथ ही भक्तों को लंबी आयु प्रदान करेगा। श्रावण मास का समापन 22 अगस्त को धनिष्ठा नक्षत्र में होगा। इसी दिन रक्षाबंधन का पर्व भी मनाया जाएगा।
मान्यता के अनुसार श्रावण मास में सोमवार का विशेष महत्व है। सोमवार को भगवान शिव का रूप माना गया है। श्रावण मास में भगवान आशुतोष की पूजा का विशेष महत्व है। जो भक्त प्रतिदिन नियमपूर्वक पूजा न कर सके, उन्हें श्रावण मास में शिव पूजा और व्रत रखना चाहिए। इस महीने मे जितने भी सोमवार होते हैं उन सभी में शिवजी का व्रत किया जाता है। श्रावण मास में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शिवालय पहुंचते हैं। ऐसे में शिवालयों में तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। कोरोना के कारण शासन के निर्देश पर पिछले साल सावन में शिवालय बंद थे, लेकिन इस बार मंदिर शर्तों के साथ खुले हुए हैं ऐसे में मंदिर प्रबंधन सावन की तैयारियों में जुटा है। 
इस बार सावन में होंगे चार सोमवार
पंडित विकासदीप शर्मा के अनुसार श्रावण मास में इस बार चार सोमवार पड़ेंगे।
पहला सोमवारः 26 जुलाई को श्रावण मास का पहला सोमवार है। इस दिन धन प्रदाता धनिष्ठा नक्षत्र, सौभाग्य के बाद शोभन योग, वरियान और महाशुभ नामक औदायिक योग है। इस दिन के व्रत से आर्थिक लाभ और दरिद्रता का शमन होगा।
दूसरा सोमवारः दो अगस्त को श्रावण मास का दूसरा सोमवार है। इस दिन कृतिका के बाद रोहिणी नक्षत्र, वृद्धि योग, गर करण और सुस्थिर नामक औदायिक योग है। चंद्रमा उच्चाभिलाषी है। इस दिन के व्रत से स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति एवं संतान पक्ष के अभ्युदय का योग मिलेगा।
तीसरा सोमवारः नौ अगस्त को श्रावण मास का तीसरा सोमवार है। इस दिन श्लेषा के बाद मघा नक्षत्र, वरियान योग, किंस्तुघ्न करण और औदायिक योग सौम्य का मान है। इस दिन के व्रत से पुण्य की अभिवृद्धि और पूर्वाजित पापों का क्षय होगा।
चौथा सोमवारः 16 अगस्त को श्रावण मास का तीसरा सोमवार है। इस दिन अनुराधा नक्षत्र, ब्रह्म योग, वरियान और मानस नाम का औदायिक योग है। इस दिन के व्रत से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होगा।
श्रावण पूजा को लेकर पंडित विकासदीप के अनुसार श्रावण में एक महीने तक शिवालयों में स्थापित, प्राणप्रतिष्ठित शिवलिंग या धातु से निर्मित लिंग का गंगाजल व दुग्ध से रूद्रभिषेक करें। यह शिव को अत्यंत प्रिय है। वहीं उत्तरवाहिनी गंगाजल, पंचामृत का अभिषेक भी महाफलदायी है। कुशोदक से व्याधि शांति, जल से वर्षा, दही से पशुधन, ईख के रस से लक्ष्मी, मधु से धन, दूध से एवं एक हजार मंत्रों सहित घी की धारा से भगवान शिव का अभिषेक पुत्र व यश वृद्धि होती है।
श्रावण मास के दिनों का महत्व
श्रावण में सोमवार सोमवारी व्रत रोटका भी कहलाता है। इसे सोम या चंद्रवार भी कहते हैं। यह दिन शिव को अत्यंत प्रिय है। मंगलवार को मंगलागौरी व्रत, बुधवार को बुध गणपति व्रत, बृहस्पतिवार को बृहस्पति व्रत, शुक्रवार को जीवंतिका देवी व्रत, शनिवार को बजरंगबली व नरसिंह व्रत और रविवार को सूर्य व्रत होता है।
श्रावण मास की तिथियों के देवता
प्रतिपदा के स्वामी अग्नि, द्वितीया के ब्रह्मा, तृतीया के गौरी, चतुर्थी के गणनायक, पंचमी के सर्प, षष्ठी के स्कंद, सप्तमी के सूर्य, अष्टमी के शिव, नवमी के दुर्गा, दशमी के यम, एकादशी के स्वामी विश्वदेव, द्वादशी के भगवान श्रीहरि, त्रयोदशी के कामदेव, चतुर्दशी के शिव, अमावस्या के पितर और पूर्णिमा के स्वामी चंद्रमा हैं।
श्रावण मास के व्रत एवं त्योहार
प्रतिपदा के अशून्यन व्रत, द्वितीया के औदुंबर व्रत, तृतीया को गौरी व्रत, चतुर्थी को दूर्वा गणपति व्रत, पंचमी को उत्तम नाग पंचमी व्रत, षष्ठी को सूपोदन व्रत, सप्तमी को शीतला व्रत, अष्टमी और चतुर्दशी को शिव व्रत, नवमी को नक्त व्रत, दशमी को आशाव्रत, एकादशी को भगवान श्रीहरि व्रत, द्वादशी को श्रीधर व्रत, त्रयोदशी को प्रदोष व्रत, अमावस्या को पिठोरा व्रत, पूर्णिमा को उत्सर्जन, उपाकर्म, सभाद्वीप, रक्षाबंधन, श्रावणी पूर्णिमा सहित सात व्रत होते हैं।
शिव का सावन में जलाभिषेक प्रसंग कथा
जानकारों की मानें तो सतयुग में देव-दानवों के मध्य अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन हो रहा था।अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष निकला।उसकी भयंकर लपट न सह सकने के कारण सभी देव गण ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा जी ने अपने तपोबल से कहा कि अब तो ब्रह्मांड को केवल शिव जी ही बचा सकते हैं। सभी देवगणों की प्रार्थना पर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होने वस्तु स्थिति को जानकर ब्रह्मा जी के अनुरोध पर विष की भयानकता से जगत की रक्षा के लिए विष को एकत्र कर पी गये और इस प्रकार यह सृष्टि के विनाश से बच गयी। उसी विष को उन्होंने अपने कण्ठ में अवरूद्ध कर लिया जिससे उनका कण्ठ नीला हो गया और वे नीलकण्ठ कहलाये। समुद्र मंथन से निकले, उस हलाहल विष के बारे में यह मान्यता है कि उस समय श्रावण मास था और उस विष के ताप को शान्त करने के लिए देवताओं ने वर्षाॠतु में तापनाशक बेलपत्र चढ़ाकर गंगाजल से उनका (शिव का) पूजन और जलाभिषेक किया। तभी से जलाभिषेक की परम्परा का प्रारम्भ माना जाता है। शिव का एक अर्थ जल भी होता है और यही जल प्राण भी है। शिवलिंग पर जलार्पण का अर्थ है प्राण तत्त्व का विसर्जन परम ब्रह्म में समर्पण कर देना। यही श्रावणी जलाभिषेक का संदेश है।
मकर, कुंभ, धनु, मिथुन, तुला राशि वाले जरूर करें यह काम
 सावन का महीना भगवान शंकर को समर्पित है। सावन के माह में भगवान शंकर की पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान शंकर की कृपा से शनि की महादशा से भी मुक्ति मिल जाती है। इस समय मकर, कुंभ, धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से पीड़ित लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति के लिए भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए। सावन के महीने में रोजाना शिव चालीसा का पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। मकर, कुंभ, धनु, मिथुन, तुला राशि वाले सावन के माह में रोजाना शिव चालीसा का पाठ जरूर करें।
शिव चालीसा
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
॥चौपाई॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।

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