शिवपुरी। निजी विद्यालयों ने स्वतंत्रता के बाद से ही शिक्षा के प्रचार प्रसार में अमूल्य योगदान दिया है।
आज उन्हें सरकार ने इस आपदा के काल में न सिर्फ अनाथ छोड़ दिया बल्कि सहारा देने के बजाय पालकों को विद्यालयों के विरुद्ध उकसाया जा रहा है।
एक एक विद्यालय से पचास से लेकर एक सैकड़ा से अधिक परिवारों की रोज़ी रोटी जुड़ी है।
अहम सवाल👇
* क्या भारत एक लोक कल्याणकारी प्रजातंत्र नहीं है?
* क्या अशासकीय स्कूल के संचालक एवं शिक्षक इस देश के नागरिक नहीं हैं?
* क्या शिक्षा के हित में एवं स्कूली बच्चों की शिक्षण व्यवस्था को, इस संकट के समय में सुरक्षित और सुचारू रूप से चलाए जाने का प्रयास करना शासन की जिम्मेदारी नहीं है?
* बच्चों के करोड़ों गुरुओं को क्या बेरोजगार होने दिया जाए क्योंकि वो शासकीय सेवा में नहीं हैं?
* क्या इस प्रकार शिक्षा की अनदेखी करने के गंभीर शारीरिक, मानसिक दुष्परिणाम नहीं होंगे?
* क्या स्कूल, कॉलेज बंद रखने एवं शेष संस्थान, आयोजन खोलने से कोरोना को रोकना संभव है?
* क्या शिक्षा और स्वास्थ्य की कीमत समझना अब भी बाकी है?
* क्या महामारी की मार झेले मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाने में और विद्यालयों, शिक्षकों को आर्थिक सहायता देने से शासन को पीछे हटना चाहिए?
यदि शिक्षा अहम है तो यह हमारी प्राथमिकता बने।
सरकार एवं शिक्षा विभाग पालकों को निर्देशित करें कि विद्यालय खोलने के प्रयास होंगे और तब तक छात्र ऑनलाइन क्लास आवश्यक रूप से अटेण्ड करें, अनिवार्य शुल्क समय से जमा करें, सभी पालक अपने नन्हें मुन्नों के भविष्य के निर्माता शिक्षकों का सम्मान करें एवं विद्यालय से सहयोग करें।
ये निर्णय सरल हों, ठोस हों, शिक्षा के सहायक हों न कि उपेक्षा से पल्ला झाड़ने वाले।
समस्त स्कूल संचालक

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