शिवपुरी के ख्यातिनाम डॉक्टर निसार एहमद ने यह सुंदर अभिव्यक्ति फेसबुक पर साझा की है। हम अपने आपको रोक नहीं पाये।
कीजिये एक नजर.....
दिल्ली बस स्टैंड पर बैठा, लेखक पंजाब जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था। अभी बस काउंटर पर नही लगी थी। लेखक बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहा था। उस को देखकर कोई दस साल की बच्ची उस के पास आकर बोली, "बाबू, पैन ले लो, दस के चार दे दूंगी। बहुत भूख लगी है कुछ खा लूंगी।"
उसके साथ एक छोटा-सा लड़का भी था, शायद भाई हो उसका। लेखक ने कहा, "मुझे पैन तो नहीं चाहिए।"
उसका जवाब इतना प्यारा था। उसने कहा, "फिर हम कुछ खाएंगे कैसे?"
लेखक ने कहा, "मुझे पैन तो नहीं चाहिए पर तुम खाओगे कुछ जरूर।"
लेखक के बैग में बिस्कुट के दो पैकेट थे, उस ने बैग से निकाल एक-एक पैकेट दोनों को पकड़ा दिया। पर उस की हैरानी की कोई हद ना रही जब उसने एक पैकेट वापिस करके कहा, "बाबू जी, एक ही काफी है, हम बाँट लेंगे।"
लेखक हैरान हो गया जवाब सुन कर। लेखक ने दुबारा कहा, "रख लो दोनों, कोई बात नहीं।"
फिर आत्मा को झिझोड़ दिया उसके के जवाब ने। उसने कहा, "तो फिर आप क्या खाओगे?"
लेखक ने अंदर ही अंदर अपने आप से कहा कि यह होते हैं आत्मा से तृप्त लोग।
बेशक कपड़े होण मैले,
पर इज्जत होवे कज्जी।
ढिडों बेशक भुखा होवे,

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