उसकी चिता जली तो बड़ी रौशनी हुई
शिवपुरी। ग्वालियर के सुप्रसिद्ध कवि, नवगीतकार और गजलकार स्व.श्री महेश अनघजी का एक शेर है-
जिसकी तमाम उम्र अंधेरा निगल गई,
उसकी चिता जली तो बड़ी रौशनी हुई।
मैंने शिवपुरी में जब होश संभाला तब वहां एक नहीं अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वर्तमान थे। अधिकांश वे थे जो गांधीजी के अनुयाई थे। जिन्होंने गांधीजी के आवाहन पर नमक-आंदोलन या अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन भाग लिया था और प्रदर्शन करते हुए जेल गये थे। उनकी अपनी सबकी संघर्ष की अपनी-अपनी गाथायें थी। इनमें दो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज से संबंधित थे। प्रथम-कर्नल गुरुबक्स सिंह.ढिल्लन और दूसरे श्री आर.एस.जोशी और एक उग्र क्रांतिकारी जिन्होंने बाद में गांधीवाद को पूरी तरह अपना लिया-श्री हरिकृष्ण पांडे बाबा। मैं जानबूझ कर किसी के नाम के आगे स्व. नहीं लगा रहा हूं। वह इस लिए देश पर प्राण छिड़कने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमर होते हैं। उनकी जब तक कीर्ति प्राणवंत है, वे जीवित हैं, अमर हैं।
जिसके जीवन में संघर्ष होता है उसके जीवन में संस्मरण होते हैं। जिसके पास संस्मरण होते हैं, उसके मन में उन्हें सुनाने की प्रबल ललक या अभिलाषा भी होती है। दो दर्जन से अधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में पांडे बाबा और कर्नल जी.एस.ढिल्लन ही ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिनके पास कहने और सुनाने को बहुत कुछ हुआ करता था। पांडे बाबा पहले उग्र क्रांतिकारी थे। उन्होंने अंग्रेजों पर बम्ब फोड़े थे, गोलियां चलाई थी, उन्हें मारने का प्रयास किया था, बाद में गिरफ्तारी भी हुई। अंग्रजों के द्वारा उन्हें भीषण यातनायें दी गईैं, उत्पीड़ित किया पर उन्होंने अपनी जुवान नहीं खोली। अंडा-सेल तक में बंदी बना कर रखा गया। किसी तरह जब वे अंग्रेजों के बंधनों से मुक्त हुए तो बिहार छोड़ कर मध्यप्रदेश में भाग आये। बाद में गांधीजी के सम्पर्क में आये तो ऐसे अहिंसावादी बने कि गांधीजी की तरह वेश अपना लिया। उनके सिद्धान्त अपनाये तो अपने उग्र विचार त्याग दिये। यहां तक वस्त्र भी त्याग दिये। मात्र एक धोती धारण करके रहते थे। गांधीजी की तरह वे आश्रम बना कर रहते थे। उनका बनाया हुआ पहला आश्रम नरवर जनपद के मगरोनी ग्राम में था तो दूसरा षिवपुरी में महल के पीछे।
कर्नल जी.एस. ढिल्लन साहब आजाद हिंद फौज में थे। दूसरे विश्व युद्ध में अंग्रेजों की और से लड़ते हुए बंदी बनाये गये और हिटलर की कारागार में जर्मनी में कुछ समय तक बंदी रहे। बाद में वे नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजादहिंद फौज में शामिल हो गए। नेताजी के आदेश पर वर्मा (वर्तमान नाम म्यमार) के घने जंगलों में अंग्रेजी सेना से मुकाबला किया था और हर तरह के अभाव में भी उन्हें अपनी वीरता का लोहा मनवाया था। अंग्रेजी सेना से लड़ते हुए अंततः बंदी बनाये गये और अपने अन्य साथियों के साथ दिल्ली के लाल किले में बंदी बना कर रखे गए। उन पर अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा देश-द्रोह का मुकदमा चलाया गया। जब मुकदमा चल रहा था तब वे नहीं जानते थे कि अंग्रेजों के द्वारा उन्हें फांसी की सजा दी जाती हैं या काले पानी की। उनका मुकदमा लड़ने के लिए पं.जवाहर लाल नेहरू ने भले ही एक बार फिर से काला कोट पहन लिया हो, लाल किले के बाहर पूरे देश की जनता उनके हित में नारे लगा रही हो। जेल के अंदर उन्हें कुछ पता नहीं चलता था, पर जब मुकदमें के लिए उन्हें अदालत ले जाया जाता तब उनके कांनों में ये आवाजें अवश्य आती थी-
लाल किले से आई अवाज,
सहगल ढिल्लन शाहनवाज
तीनों की हो उम्र दराज,
नेताजी जिंदावाद
इंकलाब जिंदावाद,
कौमी-नारा जयहिंद
हमारा नारा जय-हिंद,
जय-हिंद, जय-हिंद
लाल किला तोड़ दो,
आजाद हिन्द छोड़ दो ।
जेल के बाहर का यह शोर उनकी जेल की काल कोठरी तक नहीं पहुंच पाता था। उनकी जेल की मोटी दीवारों के अंदर गहरा सन्नाटा था और बहुत गहरा अंधेरा। उन्हें तो कारागार की काल कोठरी में यह भी पता नहीं चला कि कब देश में परतत्रता की काली रात ढली, कब स्वतेत्रता का सूरज उगा। कब भारत माता की गुलामी की जंजीरें टूट गई। एक दिन अचानक जेल के मोटे दरबाजे खुले, उनकी बेड़िया खोल दी गई और उनसे कहा गया-भारत सरकार ने आपसे मुकदमें वापिस ले लिए हैं। अब आप स्वतंत्र हैं। वे कारागार से बाहर आ गये, तब जा कर उन्हें पता चला कि अंग्रेज इस देश को छोड़ कर जा चुके हैं, उनका देश आजाद हो चुका है और अब देश ही नहीं वे भी पूरे स्वतंत्र है। इसके साथ उन्हें इस बात का भी पता चला कि उनका गांव अलगो, अलगों में स्थित उनका पुश्तेनी मकान, उनकी जमीन-जायदाद सब कुछ विभाजन की भेंट चढ़ गया है। उनका परिवार शरणार्थी शिवरों में दिल्ली में जीवन बिता रहा है। सरकार तथा समाज-सेवियों से मिले कपड़े के टेंटों में और दान में मिली रोटियों को खाने के लिए विवश है। देश भर में उनके लिए मान-सम्मान बहुत था पर जीवन यापन के लिए कुछ नहीं। उनके सामने उनका भविष्य चुनोती बन कर खडा था। एक विकट अनिश्चितता थी उनके सामने। वे नहीं जानते थे कि उनके आगे का जीवन कैसे चलेगा?
तभी ट्रेन में अचानक उनकी भेट शिवपुरी के कविजी से होती है। कविजी अर्थाथ स्व.श्री घासीराम जैन (डॉ.हरिप्रकाश जैन, सुप्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ और गीतकार, गजलकार के पिताश्री)। कविजी उनका उपनाम था। बातों ही बातों में वे उन्हें शिवपुरी आने का न्योता देते हैं। कुछ समय के उपरांत जब ढिल्लन साहब शिवपुरी आते हैं तो बस स्टेंड पर उनका भव्य स्वागत किया जाता है। नगर के नागरिकों के द्वारा उन्हें फूल मालाओं से लाद दिया जाता है। उनके रहने और खाने की व्यवस्था की जाती है। उन्हें शायर खाबर साहब के द्वारा मात्र एक रूपया शुल्क लेकर ग्राम हातोद में उनके मनोनकूल भूमि उपलब्ध करा दी जाती है। उनके पैतृक ग्राम अलगो की तरह जंगलों, पहाड़ों और पानी से घिरी हुई कृषि भूमि, लगभग वैसी ही जैसी उनकी भूमि पाकिस्तान में छूट गई थी। वे दिल्ली के शरणार्थी शिविर से अपने परिवार को ले आते हैं और यहीं बस जाते हैं। यही अपना शेष जीवन व्यतीत कर देते हैं। सिपाही से किसान बन कर।
हर साल प्रत्येक 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) और 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) को शाल, श्रीफल, पुष्पहार से अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ उनका भी सम्मान किया जाता रहा है। तात्याटोपे के बलिदान दिवस पर उन्हें बतोर मुख्य-अतिथि मंच पर सम्मान दिया जाता था। नगर के अनेक छोटे-बड़े आयोजनों में वे बतोर मुख्य अतिथि अथवा अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किए जाते थें। जब उन्हें बोलने के लिए आमंत्रित किया जाता तो वे खूब लम्बा-लम्बा भाषण देते हैं और राष्ट्रीयता से भरी हुई अपनी कवितायें भी सुनाते हैं। कभी-कभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और वरिष्ठतम पत्रकार श्री प्रेमनारायण नागर साहब उनसे कहते भी- कर्नल साहब, जब आप वर्मा के घने जंगलों में घुस तो जाते हैं तो वहां से निकलने का रास्ता भूल जाते हैं।
कर्नल साहब कितना भी रास्ता भूलें, वर्मा के जंगलों में भटकें किंतु उनको उनके श्रोता पूरी तरह डूब कर उन्हें सुनते थे। एक तो उनकी बुलंद आवाज और दूसरा उनका ओज के तेज से प्रखर, प्रकाशवान व्यक्तित्व। समस्त श्रोता उनकी वाणी से सम्मोहित हो जाते थे। वे इतने सहज थे कि हमारी छोटी-मोटी कवि गोष्ठीयों में भी जा जाते थे। शिवपुरी नगर से 20-22 किलोमीटर दूर से वे जब भी शिवपुरी आते उनकी बैठक स्व.डॉ.राजेन्द्रनाथ ढीगरा अथवा स्व.डॉ.ध्यानचन्द्र चौधरीजी दुकान पर अवश्य होती। कभी-कभी वे डॉ.ढ़ीगरा के निवास पर चलने वाली रवीवारिय परिचर्चा बैठक में भी पधारते। इस बैठक में अपने समय के पिशावर वर्तमान पाकिस्तान में महा विद्यालय के पूर्व प्राचार्य स्व. श्रीराम मेहता (अंग्रेजी साहित्य के प्रखर विद्वान, पृथ्वीराजकपूर के साथी और स्व.श्रीमती क्षमा छिब्बर के पिता) डॉ.परशुराम शुक्ल विरही, खाबर साहब, स्व.मुरारीलाल विरामानी (बाद में ढिल्लन साहब के समधी) और मेरे साथ अनेक नगर के छोटे-बड़े बुद्धिजीवी इस बैठक में सहभागिता करते और उस दिन निर्धारित विषय पर विद्वानों को सुनते तथा अपने विचार भी रखते। साहित्य से लेकर समाज तक और राजनीति से लेकर धर्म तक, इस बैठक में प्रत्येक विषय पर चर्चायें होती थी। हमेशा तो नहीं पर कभी-कभी इस बैठक में भी कर्नल साहब पधारते और निर्धारित विषय पर अपने विचार, अपना अभिमत भी रखते।
हमारे नगर में एक ढिल्लन साहब ही तो थे जिनको देखते ही सहसा मुंह से ‘‘जय हिंद‘‘ निकल जाता था। कर्नल ढिल्लन साहब ने मेरी पहली कृति ‘‘सरहदी सिंदूर‘‘ का विमोचन किया था। वे हमारी अनेक कवि-गोष्ठीयों मे एक कवि के रूप में अनेक बार पधारे। अंतिम बार मध्य प्रदेश लेखक संघ के आंचलिक सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता भी उन्होंने की थी। एक समय वह भी आया जब उन्हें गम्भीर अस्वस्थता की स्थिति में जब शीवपुरी जिला चिकित्सालय के आई.सी.यू. में उन्हें भर्ती किया गया तब मेरी मॉ भी कोमा की हालत में वहां भर्ती थी। सन 2005 अक्टूबर की वह दीपावली की काली रात हमें भुलाये नहीं भूलती जब पूरा का पूरा अस्पताल लगभग संनाटे में डूबा हुआ था। कहीं दूर से फटाकों की आवाजें आ रही थी। लगभग वीरानसा हो गया था जिला अस्पताल। अधिकांश मरीज दीपावली मनाने छुट्टी कराकर अपने-अपने घरों में थे। डाक्टर और यहां तक अन्य पैरा मेडीकल स्टाफ भी दीवाली मनाने अपने घर चला गया था और ऐसे मैं केवल मैं अपनी अचेतन मॉ के पास था और वहां मेरे अलावा कर्नल ढिल्लन साहब के सुपुत्र सर्वजीत अपने पिता के पास थे। यूं अनेक शामें हमने इसी समय साथ अस्पताल में गुजारी थी पर इस रात की बात कुछ अलग थी-क्योंकि यह दीवाली की रात थी। 02 नवम्बर 2005 की दीपावली की दौज की शाम को मेरी मॉ ने इस नश्वर संसार से विदा ले ली। कर्नल ढिल्लन साहब भी पूर्ण स्वस्थ्य नहीं हुए। 26 जनवरी को कलेक्टर डॉ. एम.गीता ने जब ंशिवपुरी जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सम्मान किया तो उन्हें ढिल्लन साहब की याद आई और उन्होंने ग्वालियर जा कर उनके सम्मान करने का मन बनाया। अंततः उसी दिन ग्वालियर जा कर अस्पताल के बिस्तर पर ही कलेक्टर ने उनका शाल, श्रीफल से सम्मान किया। यह उनका अंतिम सम्मान था। तब तक कोई नहीं जानता था वेअब कुछ दिनों के मैहमान है। 06 फरवरी 2006 को अंततः उनके प्राणों ने भी उनके शरीर सदा के लिए त्याग दिया। अगले दिन उनके निधन का समाचार समाचार-पत्रों में था।
26 जनवरी 2006 को कलेक्टर के द्वारा दिया गया सम्मान भारत सरकार के द्वारा दिए गये पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान के आगे कुठ नहीं था,। हमारे हृदय में बसा हुआ उनके प्रति सम्मान भी उनके विशाल व्यक्तित्व के आगे बहुत छोटा अवश्य है। पर शिवपुरी के नागरिकों की भावनाओं, स्नेह और आदर का प्रतीक अवश्य है उनके प्रति व्यक्त प्रत्येक सम्मान। अगर हमारे नगर ने उन्हें मान-सम्मान दिया तो उन्होंने भी इस नगर को भरपूर स्नेह दिया। मुझे याद है-पद्मश्री से सम्मानित होने के उपरांत जब उन्हें 18 अप्रेल को तात्याटोपे बलिदान दिवस पर सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया जा रहा था तब वे शायद जीवन में पहली बार बोलते-बोलते अत्यधिक भावुक और तरल हो गए थे। उन्होंने भावना के आवेग में यहां तक कह दिया था कि जब मेरे जीवन में गहन अंधेरा तब शिवपुरी ने उन्हें आश्रय दिया, सहारा दिया, प्यार दिया, दुलार दिया, सम्मान दिया। हम तो दिल्ली के लाल किले में अंग्रजी न्यायालय के आदेश की प्रतिक्षा कर रहे थे। हम नहीं जानते थे कि हमें काले पानी की सजा मिलेगी या फांसी। जेल से छूटे तो सबसे बड़ी समस्या दाल-रोटी की थी, वे अत्यंत भावुक हुए और बोले- ..............इस शहर ने मुझे और मेरे बच्चों का पाल लिया है। उनके निधन पर मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें समुचित सम्मान दिया। गत वर्ष वर्तमान भारत सरकार ने भी कर्नल ढिल्लन साहब के परिजनों को समुचित आदर देकर उनके प्रति राष्ट्र बा सम्मान व कृतज्ञता व्यक्त की। 06 फरवरी को कर्नल ढिल्लन साहब की पुण्यतिथि है। उनकी पुण्य तिथि पर उनकी स्मृति को इस अकिंचन की ओर से भी शत-शत नमन, वंदन और विनम्र श्रृद्धांजलि। उनकी स्मृतियों के साथ। मेरा सौभाग्य मुझे उनका सानिध्य मिला उनके प्रति मेरी बेटी अदिति के मन में भी कम श्रृद्धा नहीं है, उसने भी एक नृत्य कुछ साल पहले यू टयूब पर उन्हें समर्पित करते हुये डाला था। कुछ चित्र उनकी स्मृतियों से जुड़े हुए। कुछ चित्र उनके पुत्र सर्वजीतजी के साथ।
जय हिंद।
अरुण अपेक्षित
06 फरवरी 2022

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