शिवपुरी। शिवपुरी ग्वालियर फोर लेन स्थित सतनवाड़ा का पेट्रोल पंप के सामने एक पहाड़ी पर माता का मंदिर स्थित है। काफी प्राचीन मंदिर की देखरेख महंत दयालदास कर रहे हैं। अयोध्या के रहने वाले यह महंत बीते 10 सालों से इस इलाके में हैं और 7 सालों से छबीले हनुमान खुवत पर सेवा की जबकि 3 सालों से वे इसी पहाड़ी पर माता के मंदिर में मौजूद हैं। यहां उन्होंने 400 से ज्यादा फल और छायादार पौधे रोपे। पथरीली जमीन पर उन्होंने किसी तरह यह पौधारोपण किया। महंत कह रहे हैं कि सिंधिया की जमीन पर उन्होंने हरियाली फैलाने की ठानी इसलिये फलदार और छायादार पौधे रोपे। भीख मांगना उन्हें पसंद नहीं है इसलिए माता की सेवा करते हैं। उनके नाम ना तो यह जमीन है और ना ही उन्होंने कोई अतिक्रमण किया है लेकिन बीते दिनों पटवारी और तहसीलदार मिलकर मौके पर आए। लाव लश्कर लेकर आए थे और उन्होंने फलदार छायादार पूरे पेड़-पौधे यहां तक कि मंदिर में मौजूद हनुमान जी की प्रतिमा भी कब्जे में कर ली। सामान भरकर ट्रैक्टर ट्रॉली में ले गए। महंत दयाल दास का कहना है कि अगर मैं गलत होता तो यहां पूर्व विधायक और राज्य मंत्री दर्जा प्रहलाद भारती नलकूप का खनन नहीं कराते। जब बिजली का संकट आया और नलकूप नहीं चला तो राज्य मंत्री सुरेश राठखेड़ा ने यहां हैंडपंप लगवाया है। मैं उस हैंडपंप के पानी से किसी तरह पेड़ पौधों की सेवा कर रहा हूं यहां आने जाने वाले लोगों को धर्म से जोड़कर माता की सेवा करता हूं और उन्हें आवश्यकता होने पर भोजन या चाय पिला देता हूं। इसके अलावा मेरा कोई ऐसा उद्देश्य नहीं है कि मैं इस जमीन को हथियाना चाहता हूं या कब्जे में करना चाहता हूं। मैं 80 साल का हो गया मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है लेकिन कभी भी भीख नहीं मांगी इसलिए आज भी उसी बात पर कायम हूं और माता भक्ति के माध्यम से अपना जीवन बसर कर रहा हूं लेकिन तहसीलदार ने बीते दिनों मेरे कई सालों की मेहनत पर पानी फेर दिया और पेड़ पौधे उखाड़ कर फेंक दिए उन्होंने न्याय की गुहार केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया से लगाई है। उनका कहना है कि शिवपुरी जिला सिंधिया का बसाया हुआ है और जो भी जमीन है वह सिंधिया की है उन्हें न्याय की उम्मीद है।
यह था मामला
बीते दिनों तहसीलदार और राजस्व अमला इस पहाड़ी पर जा पहुंचा था यहां पेड़ पौधे से लेकर अन्य सामान को हटा दिया जिसके बाद में ट्रॉली में सामान को जप्त करके ले गए थे। कहा गया कि यह तीन करोड़ की भूमि पर कब्जा था जबकि मौके पर देखने में साफ नजर आता है कि एक छोटी सी पहाड़ी पर माता का मंदिर है और उसी के आसपास पथरीली जमीन में कुछ पेड़ पौधे रोपे गए थे। इस स्थिति को देखकर बिल्कुल भी नहीं लगता कि कोई यहां कब्जा कर रहा था।

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