शिवपुरी। शहर के मां राजेश्वरी रोड स्थित प्राचीन 'मां कैलादेवी के मंदिर' पर नवरात्रि महोत्सव के दौरान श्रद्धालु एवं भक्तजनों की भीड़ नजर आ रही है। आस्था का सैलाब अल सुबह से लेकर देर रात्रि तक उमड़ रहा है। कहा जाता है कि मां कैला देवी की प्रतिमा जमीन से प्रकट हुई थी। बाद में धीरे धीरे मन्दिर विकसित होता गया। मन्दिर के पुजारी शरदपुरी गोस्वामी के अनुसार मंदिर के चमत्कारों से बहुत कम लोग परिचित हैं फिर भी इस मंदिर की मान्यता सर्वव्यापी है और शिवपुरी के अलावा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के भक्त और श्रद्धालुओं का नवरात्रि में दर्शनार्थ तांता लगा रहता है। यहां हजारो की संख्या में नवरात्रि महोत्सव में दर्शनार्थी दर्शन कर मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
बुजुर्ग बताते हैं
मंदिर में मां कैला देवी की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है उसे लेकर किवदंती है कि वह प्रतिमा अपने आप जमीन से बाहर आई। मंदिर स्थल पर एक बरगद का पेड़ था जहां मां कैला देवी की सुंदर प्रतिमा अपने आप प्रकट हुई थी। यहां मां की प्रतिमा स्वयं अवतरित हुई तब मंदिर के प्रथम पुजारी महंत पीतांबर पुरी गोस्वामी जी ने मढ़िया का निर्माण कराया और माता की प्रतिमा को बरगद के पेड़ से हटाकर उसमें स्थापना की। जिस के कुछ दिन बाद बरगद का पेड़ नष्ट हो गया।इसके बाद धीरे-धीरे जन सहयोग से मंदिर का निर्माण भव्यता के साथ कराया गया। मंदिर के प्रथम पुजारी महंत पितांबर पुरी गोस्वामी की मृत्यु के बाद मंदिर की सेवा उनके पुत्र महंत हरदयाल पुरी गोस्वामी जी द्वारा की जाने लगी। वर्तमान में चरण पुरी गोस्वामी और उनके पुत्र शरद पुरी गोस्वामी मां की सेवा में लगे हुए हैं।
सबसे पहले केला माता मंदिर पर लगाई गई थी पशु बलि पर रोक
मंदिर के पुजारी शरद पुरी बताते हैं कि पूर्व में प्रथा थी कि पशुओं की बलि दी जाए जिससे देवी मां प्रसन्न हो यह प्रथा पूरे भारत में प्रचलित थी, जहां लाखों की संख्या में बेजुबान पशुओं को धर्म की आड़ में वली दी जाती थी। सभी मंदिरों की तरह कैला देवी मंदिर में भी यह प्रथा कई वर्षों से चली आ रही थी लेकिन मंदिर से जुड़े भक्तों ने धार्मिक आस्था का ध्यान रखते हुए इसका विरोध किया तो सर्वप्रथम कैला देवी मंदिर पर बलि प्रथा को समाप्त किया गया।
पुजारी को स्वप्न के बाद हवन वेदी से प्रकट हुई माई चामुंडा
मां केला देवी मंदिर में कैला माता की प्रतिमा के ठीक सामने पीपल के पेड़ के नीचे मां चामुंडा देवी की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा के अवतरण को लेकर भी एक किबंदती है कि मंदिर के पूर्व पुजारी चरण पुरी जी की माताजी श्रीमती रामप्यारी गोस्वामी जी को मां चामुंडा देवी ने स्वप्न में दर्शन देकर मंदिर परिसर में बनी हवन वेदी की खुदाई का आदेश दिया और पुनः हवन वेदी निर्माण करने को कहा। स्वप्न में दिए गए आदेश को मानकर रामप्यारी गोस्वामी ने कई विद्वानों के साथ मिलकर खुदाई कराई तो उसमें से मां चामुंडा माता की एक सुंदर प्रतिमा निकली जिसे मां केला देवी की प्रतिमा के ठीक सामने पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित किया गया। इन दोनों कैलादेवी और चामुण्डा देवी की स्थापना में खास बात यह है कि जहां मां कैला देवी की प्रतिमा थी वहां बरगद का पेड़ था और जहां आज के समय में चामुंडा माता की प्रतिमा स्थापित है वहां पीपल का पेड़ है।
जिले का एकमात्र गिरिराज धरण मंदिर भी कैलादेवी प्रांगण में स्थापित है जहां प्रतिदिन भक्तों द्वारा जल एवं दूध चढ़ाया जाता है एवं एकादशी एवं पूर्णिमा पर भारी भीड़ एवं आसपास के इलाकों के भक्त जनों द्वारा यहां आकर परिक्रमा की जाती है। भक्तों की मान्यता है कि यहां पर आकर गिरिराज धरण की परिक्रमा करने से मथुरा में स्थित गिरिराज धरण की परिक्रमा करने का फल प्राप्त होता है एवं गुरु पूर्णिमा पर हजारों की तादात में भक्त लोग यहां आकर परिक्रमा करते हैं।
ये भगवान भी विराजे
मंदिर परिसर में इच्छापूर्ण गणेश मंदिर, श्री सिद्ध हनुमान मंदिर, नागेश्वर, नर्मदेश्वर महादेव मंदिर, संतोषी माता, भैरो बाबा मंदिर भी स्थापित है।

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