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जिले की लाडलियों की सफलता की 2 कहानी

गुरुवार, 12 मई 2022

/ by Vipin Shukla Mama
1. लाड़ली हूं इसलिए पढ़ रही हूं, नहीं तो दूसरी लड़कियों की तरह बालिका बधू बन जाती
2.लाड़ली लक्ष्मी योजना से मिला आत्मबल, आज बेटी नेशनल योगा चेम्पियन है
- लाड़ली की मां बोलीं योजना ने परिवार का मनोबल और बेटी का हौसला बढ़ाया
शिवपुरी। विवाह के 7-8 साल बाद काफी इलाज और मन्नत-दुआओं के बाद हमारे घर एक बेटी ने जन्म लिया। जिसका नाम हम ने पलक रखा। बेटी काफी लाडली थी,लेकिन परिवारिक आर्थिक स्थिति के चलते विवाह की चिंता होना लाजमी था। तभी हमें आंगनबाडी कार्यकर्ता के माध्यम से म.प्र. सरकार की लाड़ली लक्ष्मी योजना की जानकारी मिली। हमने योजना में उसका पंजीयन कर दिया। उसके बाद बेटी के विवाह की चिंता से मुक्त हो गए।बेटी के जन्म के दो साल बाद एक बेटा प्राप्त हुआ। योजना की शर्त के मुताविक दूसरी संतान के बाद परिवार नियोजन जरूरी था। उस समय स्वास्थ्यगत कारणों से मैं ऑपरेशन नहीं करा सकती थी, किन्तु बेटी को लाडली लक्ष्मी बनाना था, तो पति ने पुरूष नसबंदी को अपनाया और बेटी लाडली लक्ष्मी बन गई। यह बात लाडली पलक की मॉ सरस्वती तोमर ने बताई।
 उन्होंने बताया कि मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी। पति एक हलवाई की दुकान पर काम करते थे, उनकी मजदूरी से परिवार का भरण-पोषण होता था। आर्थिक तंगी के वावजूद भी हम ने बेटे और बेटी को बिना किसी भेदभाव के पढाया। कक्षा 06 से ही बेटी का योग की तरफरूझान हुआ तो उसे योगाभ्यास कराना शुरू कर दिया। आज मुझे इस बात पर गर्व है, कि पलक ने पढाई के साथ ही योग के क्षेत्र में भी बडी उपलब्धि हासिल की है। वर्ष 2016 में उसने नेशनल गोल्ड मेडल प्राप्त किया। वर्तमान में पलक के पास 04 गोल्ड और 03 सिल्वर मेडल है। उसने 10 वी बोर्ड परीक्षा में 71 प्रतिशत अंक प्राप्त किये है।
 लाडली लक्ष्मी योजना में पलक के जुडने से मुझे काफी संबल मिला है। हाल ही में 'मॉ तुझे प्रणाम योजना' के तहत उसे वाघा बोर्डर (पंजाब) की यात्रा कराई गई, जिससे उसमें देशभक्ति की भावना प्रबल हुई है तथा उसे आत्मबल प्राप्त हुआ है। मै सरकार की बहुत आभारी हूँ।
लाड़ली हूं इसलिए पढ़ रही हूं, नहीं तो दूसरी लड़कियों की तरह बालिका बधू बन जाती
बाल विवाह के भय से मुक्त शिक्षा की ओर कदम बढ़ा रहीं है जिले की 98 हजार से अधिक लाड़ली बेटिया
 शिवपुरी। पढ़ने- लिखने की इच्छा तो सभी की होती है,पर सभी की इच्छाएं पूरी कहां हो पातीं है। हमारा आदिवासी समाज शिक्षा के क्षेत्र में काफी पीछे है। लड़कियों को पढ़ाने के बजाय कम उम्र में विवाह करने का रिवाज है। जब मैं 10 वर्ष की थी, तब मेरी मां की मृत्यु हो गई। समाज के लोगों ने मेरे पिता पर दबाव बनाया कि अब कौन रखवाली करेगा, इसके हाथ पीले करो। 
मेरे पिता भी लोगों के दबाव में आकर विवाह करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी योजना के तहत मिलने वाले एक लाख रुपये के लिए महिला बाल विकास में संपर्क किया तो विभाग के अधिकारियों ने उन्हें बताया गया कि पहले लड़की को 12 वी तक पढ़ाओ 18 साल की होने के बाद विवाह करना तभी रुपये मिलेंगे। अभी विवाह करोगे तो जेल होगी। फिर पिता ने विवाह का विचार छोड़ दिया। 
 यह बात 9 वी कक्षा में पढ़ने वाली चंदनपुरा निवासी प्रियंका आदिवासी ने बताई। उसने बताया कि अगर मैं लाड़ली लक्ष्मी योजना में नहीं होती, तो समुदाय की दूसरी लड़कियों की तरह मेरा भी बाल विवाह हो गया होता। जन्म देने वाली मां का साथ छूटा तो लगा अब पढ़ाई छूट जाएगी, पर मुख्यमंत्री शिवराज मामा की लाड़ली लक्ष्मी योजना मेरे लिए वरदान बन गई। 
लाड़ली का बाल विवाह किया तो नहीं मिलेगी लक्ष्मी
समाज में बेटियों के साथ होने वाले भेदभाव और उन्हें बोझ समझे जाने की मानसिकता में बदलाव के लिए वर्ष 2007 में लाड़ली लक्ष्मी योजना का शुभारंभ किया। जनसंख्या नियंत्रण, बाल विवाह रोकथाम, घरेलू हिंसा उन्मूलन एवं बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ बेटियों के प्रति सामाजिक सोच बदलाव में इस योजना का विशिष्ट योगदान रहा है। 
बाल संरक्षण अधिकारी राघवेंद्र शर्मा ने बताया कि जिले में 98905 लाड़लियां पंजीकृत है, जिनके स्वास्थ, पोषण और शिक्षा की नियमित निगरानी की जाती है। इनमें से कक्षा 6, 9 , 11 एवं 12 वी में प्रवेश लेने वाली 16249 लाड़लियों को छात्रवृत्ति प्रदान की जा चुकी है। योजना की शर्त के अनुसार लाड़ली का विवाह 21 वर्ष की आयु होने पर ही लाभ मिलेगा। इस कारण लाड़ली बेटियां बाल विवाह के भय से मुक्त होकर शिक्षा की ओर कदम बढ़ा रहीं है।

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