विश्व टेलीविजन दिवस पर विशेष : डॉ. केशव पाण्डेय
ग्वालियर। टेलीविजन मौजूदा परिवेश में हमारी जिंदगी का वह अभिन्न अंग है जिसके बिना जीवन जीना और संसार की कल्पना करना मुश्किल है। टेली यानी दूर और विजन माने दर्शन- इन दो शब्दों के अर्थ बहुत ही गहरे हैं। टेली और विजन मतलब दूरदर्शन। आज पूरी दुनिया इस छोटे से पर्दे पर सिमट सी गई है। दूरदर्शन के रूप में लोगों के मन-मस्तिष्क पर अपनी छाप छोड़ने वाला छोटा पर्दा यानी टीवी मनोरंजन के साथ ही आर्थिक रूप से संपन्नता प्रदान करने देश और दुनिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खेल हो या मनोरंजन या फिर खबरों का संसार पूरी दुनिया को आकार देने में खास है। कभी बुद्धु बक्सा कहे जाना वाला टेलीविजन आज लोगों को बुद्धिमान बना रहा है और करोड़ों का कारोबार कर रहा है। विश्व टेलीविजन दिवस पर पढ़िए देश में टीवी के 63 साल के आज तक के सफरनामे पर खास रिपोर्ट।_
सबसे पहले बात करते हैं विश्व टेलीविजन दिवस की। साल 1996 में आयोजित की गई पहली विश्व टेलीविजन फोरम की याद में संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 21 नवंबर को विश्व टेलीविजन दिवस मनाने की घोषणा की थी। टेलीविजन के दैनिक मूल्य को उजागर करने के लिए इसे मनाया जाता है, जो संचार और वैश्वीकरण में अहम भूमिका निभाता है। अब बात करते हैं इसके सफर की....टेलीविजन के माध्यम से लोग शिक्षा, समाचार, राजनीति, मनोरंजन और गपशप का आनंद लेते हैं। यह शिक्षा और मनोरंजन दोनों का एक स्वास्थ्यपरक स्त्रोत है। साथ ही यह मीडिया की शक्ति की याद दिलाता है। जनमत को आकार देने और विश्व राजनीति को प्रभावित करने में मदद करता है।
किसी जमाने में जो टीवी आम आदमी के लिए दूर का सपना हुआ करता था, वह समय के साथ ही सबका अपना-अपना हो गया है। कभी ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाने वाला टीवी अब बेडरूम का हिस्सा बन गया है और पॉकेट में समा गया है।
1924 में जॉन लोगी बेयर्ड ने टीवी का आविष्कार किया था। दो जुलाई 1928 को चारलेस फ्रेंचिस जेन्किस ने पहला व्यापारिक लाइसेंस टेलीविजन स्टेशन यूनाइटेड स्टेट में बनाया।
1936 में बर्लिन में हुए समर ओलंपिक का पहली बार सीधा प्रसारण किया गया। 1936 में ही ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) ने दुनिया मे पहली टेलीविजन सेवा शुरू की। 1939 में संयुक्त राज्य अमेरिका में इसकी शुरूआत हुई। टीवी के शुरूआती दौर में कैथोड रे ट्यूब (सीआरटी) का प्रयोग किया गया, जो कि बहुत मोटा और भारी होता था। इसके बाद एलसीडी तकनीक प्रचलन में आया और अब वर्तमान में एलईडी तकनीक का श्रेष्ठ रूप सबके सामने है।
1950 में दुनिया के तमाम देशों में टीवी का प्रसारण शुरू हुआ। पहले टीवी श्वेत-श्याम था। 1953 में यूएसए के कोलंबिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम (सीबीएस) ने पहला रंगीन टीवी कार्यक्रम प्रसारित किया। 1955 में वायरलेस टीवी के रिमोट का आविष्कार हुआ। 1950 के बाद के दो दशकों को टेलीविजन के लिए स्वर्णिम युग कहा गया। 15 सितंबर 1959 को देश में टीवी की शुरूआत हुई थी। 26 जनवरी 1967 को देश का पहला कार्यक्रम कृषि दर्शन शुरू हुआ। पहले इसका नाम टेलीविजन इंडिया था लेकिन 1975 में इसका नाम दूरदर्शन रख दिया गया। ऑल इंडिया रेडियो के अंतर्गत इसका प्रारंभ हुआ। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसका शुभारंभ किया। शुरुआती चरण में देश के सात शहरों तक इसका प्रसारण होता था। टीवी के विस्तार के लिए यूनेस्कों ने भारत सरकार को आर्थिक सहायता की। इसको आगे बढ़ाने में फिलिप्स कंपनी ने अपना योगदान दिया। प्रारंभिक काल में सप्ताह में दो बार एक-एक घंटे के कार्यक्रम प्रसारित होते थे। इनमें खास तौर पर स्कूल के बच्चों तथा कृषकों के लिए शैक्षणिक कार्यक्रम शामिल थे। 1970 में देश के अनेक राज्यों में दूरदर्शन केंद्र खुलने शुरू हो गए थे। 1976 में ऑल इंडिया रेडिया का अंग दूरदर्शन अलग विभाग बन गया। देश में टीवी इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना तब हुई जब 1982 में नौवें एशियाई खेलों का पहली बार भारतीय उपग्रह इनसेट-ए1 के माध्यम से राष्ट्रीय प्रसारण हुआ। जबकि 15 अगस्त 1982 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लाल किले से भाषण से रंगीन कार्यक्रमों के प्रसारण का आगाज हुआ। 1983 में टीवी कार्यक्रमों के विस्तार के लिए दूरदर्शन को स्वीकृति दी गई। 80 का दशक खत्म होते ही देश की 75 फीसदी जनसंख्या तक दूरदर्शन की पहुंच हो गई।
1984-85 में देश का पहला सोप ओपेरा मनोहर श्याम जोशी की कहानी पर आधारित और कुमार वासुदेव द्वारा निर्देशित हम लोग धारावाहिक प्रसारण हुआ। इसके बाद 1986-87 में विभाजन और उसके बाद के परिदृश्य पर आधारित रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित बुनियाद का प्रसारण हुआ। फिर शुरू हुए फौजी, सर्कस, नुक्कड़, चित्रहार और भारत एक खोज के जरिए दूरदर्शन लोगों कें दिल में उतर गया। इन धारावाहिकों की लोकप्रियता के बाद 80 के दशक में टीवी पर धर्म की बयार बही। 1986 से 1988 तक रामानंद सागर द्वारा निर्देशित रामायण का प्रसारण किया गया। इसके बाद 1989 -1990 में बीआर चौपड़ा एवं रवि चौपड़ा द्वारा निर्देशित महाभारत का प्रसारण हुआ। प्रत्येक रविवार को प्रसारित होने वाले इन धारावाहिक के समय शहर और गॉंवों में अघोषित कर्फ्यू से हालात बन जाते थे। रामायण की लोकप्रियता का आलम यह था कि यह पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा देखे जाने वाला धारावाहिक बन गया था। स्थिति यह थी कि रविवार का हर उम्र वर्ग के लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता था। रामायाण के प्रसारण समय के दौरान सभी कामों को छोड़कर टीवी के सामने बैठ जाते थे। उस वक्त हर घर में टीवी न होने के कारण गली मोहल्ले के लोग जिस घर में रंगीन टीवी होता था वहां पहुंच जाते थे।
1991 में सरकार के स्वामित्व वाला दूरदर्शन एक मात्र राष्ट्रीय चैनल बना। 1997 में प्रसार भारती की स्थापना की गई। आज दूरदर्शन के करीब तीन दर्जन चैनल हैं।
दूरदर्शन पर पारीवारिक और धार्मिक धारावाहिक के दौर के बाद निजी चैनलों पर शुरू हुआ फिल्मी चटकारे वाले धारावाहिकों का चलन। जहां सास-बहु के झगड़े, मायाबी दुनिया और शक्तिमान के साथ ही कौन बनेगा करोड़पति जैसे धारावाहिकों ने नई उम्मीद जगाई। पिछले कुछ वर्षों से मशहूर हस्तियों की नौकझौंक पर आधारित रियलटी शो बिग बॉस पसंद किया जाने लगा है। यह बदलते वक्त के साथ समाज की बदलती सोच को और सामाजिक मूल्यों का आइना है।
खबरों की दुनिया में टीवी ने नई क्रांति का सूत्रपात किया। भारत की पहली न्यूज रीडर प्रतिमा पुरी थीं। 1985 में प्रणव रॉय का डीडी मेट्रो पर न्यूज द नाइट शुरू हुआ। उनके साथ ही एमजे अकबर और विनोद दुआ ने न्यूज लाइन कार्यक्रम शुरू किया। यह टीवी पर खबरों को लेकर नया प्रयोग था। खबरों के लिहाज से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है 1991 का आम चुनाव। जो खबरों के दृष्टिकोण से मील का पत्थर बना और वरदान साबित हुआ। उस दौरान प्रणव रॉय ने तीन दिन लाइव प्रसारण किया। जिसे देश में खूब सराहा गया । दो अक्टूबर 1992 को शुरू हुए पहले निजी टीवी चैनल जी टीवी पर रात साढे नौ बजे न्यूज बुलेटिन आता था, वह विदेशी भारतीय दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाया गया था। इसी दौरान बीबीसी होम भी शुरू हुआ लेकिन वह सफल नहीं हो सका। 1996 में जी न्यूज शुरू हुआ। उसने सर्व प्रथम हरियाणा चुनावों की शानदार रिपोर्टिंग कर खबरिया चैनलों के लिए आगे की राह दिखा दी। इसके बाद स्टार और एनडीटीवी ने हिंदी और अंग्रेजी में चैनल शुरू किए।
समय के साथ ही अब टीवी की परिभाषा भी बदल गई है। डिजिटल दुनिया में अब टीवी ने लोगों के मनोरंजन का तरीका ही बदल दिया है। आज का टीवी स्मार्ट होता जा रहा है। बाजार में एलसीडी, एलईडी 4के अल्ट्रा एचडी और स्मार्ट टीवी की भरमार है। नये जमाने के टीवी में अनेक तरह के एप्लीकेशंस आ रहे हैं या अपनी पसंद के अनुरूप प्ले स्टोर से इन्हें डाउनलोड किया जा सकता है। अनेक कंपनियांं की टीवी पर तो नेटफ्लिक्स, अमेजन, यूटयूब, लाइव टीवी और फिल्म स्ट्रीमिंग होती है। जबकि कुछ टीवी पर वेब ब्राउजर भी मौजूद हैं। इन पर इंटरनेट सर्फ कर सकते हैं। टीवी से दूर बैठे हुए भी फोटो और वीडियो देख और शेयर कर सकते हैं।
हालांकि स्मार्ट मोबाइल के आने से इसके महत्व में कुछ कमी जरूर आई है। इतना ही नहीं ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजॉन, प्राइम वीडियो और नेटफ्लिक्स के बढ़ते प्रभाव से टीवी की लोकप्रियता पर अब ग्रहण सा लगने लगा है। क्योंकि कभी मोहल्ले और फिर ड्राइंग रूम और बेडरूम की शोभा बढ़ाने वाला टीवी अब पॉकेट में समा गया है। बावजूद इसके 99 साल के सफर और देश में 63 वर्ष के टीवी युग में आज हम 27वॉ विश्व टेलीविजन दिवस मना रहे हैं। टीवी आने वाले समय में भी अपनी उपयोगिता सिद्ध करती रहेगी ऐसी हम कामना करते हैं।

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