ग्वालियर। उदभव साहित्यिक मंच ने श्रेष्ठ रचनाकारों एवं साहित्यकरों को सम्मानित करने की श्रंखला में आज वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि अनंगपाल सिंह भदौरिया "अनंग" को सम्मानित किया गया। अनंगपाल सिंह को सम्मानित करते हुए संस्था के सचिव दीपक तोमर ने कहा की 'उदभव" ने साहित्य के लिए समर्पित श्रेष्ठ रचनाकारों को सम्मानित कर अपने साहित्यिक योगदान का कार्य आरम्भ किया है इसी कड़ी में अंतर्राष्ट्रीय साहित्य महोत्सव " ग्वालियर साहित्य उत्सव" का आयोजन कर देश विदेश के साहित्यकारों को ग्वालियर आमंत्रित कर साहित्यिक गंगा का प्रवाह किया था।
सम्मान कार्यक्रम के उपरांत उदभव साहित्यिक मंच की मासिक गोष्ठी का शुभारंभ माँ सरस्वती का माल्यार्पण कर किया गया |सरस्वती वंदना साहित्यकार जगदीश गुप्त "महामना" ने सुमधुर स्वर में प्रस्तुत की।
सभी का स्वागत एवं विषय प्रवर्तन की भूमिका सुरेंद्र पाल सिंह कुशवाह ने निभाई । कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए अनंगपाल सिंह भदौरिया ने साहित्यिक गतिविधियों को निरंतर संस्था द्वारा संचालित रखना बहुत ही सराहनीय एवं अनुकरणीय बताया।
इसके उपरांत गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए राम चरण चिड़ार रुचिर ने पढ़ा धर्म नीति कि राह न भटके,वही सुखद व्यवहारी है|
सरिता चौहान ने कुछ इस तरह गीत प्रस्तुत किया
आँख से तुम देख लो, क्या हो रहा है
आजकल| आदमी खुद बीज विष के, बो रहा है आजकल|
श्री सुरेंद्र सिंह परिहार ने आध्यात्मिक गीत को इस तरह पढ़ा-
पीड़ा में हूँ,मन उच्चाटित है,
चाहे जितना ज़ोर लगाऊँ|
कठिन समय में लक्ष्मी बाई जैसा जोश जगाना,
रानी सिखलाती है, अपनी मिट्टी पर मिट जाना|
जगदीश महामना का गीत इस तरह था
उल्लासों ने नृत्य रचे है,
वारिस की बूंदों ने रास|
जाग गया हूँ ब्रह्मघड़ी में,
कुंडल,कमल खिला आकाश|
डॉ किंकर पाल सिंह जादोन ने सुनाया-
जब –जब तुमने छूकर मुझको किया इशारा है,
तब –तब लगा किसी पीड़ा ने,मुझे पुकारा है|
मुझे लालसा नहीं किसी की,न तृप्ति कि प्यास
मुझे चाहिए अपनी धरती ,अपना ही आकाश| वरिष्ठ साहित्यकार अनंग पाल सिंह भदौरिया “अनंग” ने गोष्ठी का समापन इस तरह से किया |
रूह की पोशाक अब, काफी पुरानी हो गई,
जो सुनहरी थी कभी, अब आसमानी हो गई| गोष्ठी का संचालन सुरेन्द्रपाल सिंह कुशवाहा एवं आभार संस्था के सचिव श्री दीपक तोमर ने किया| उक्त अवसर पर श्रीमती रजनी तोमर एवं प्रोफेसर प्रतापभानु सिंह भदौरिया आई आई टी खड़गपुर विशेष रूप से उपस्थित थे |

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