Responsive Ad Slot

Latest

latest

नाक से न बंद हो खून, जोड़ों में हो दर्द तो कराए हीमोफीलिया की जांच : डॉ पवन राठौर

सोमवार, 17 अप्रैल 2023

/ by Vipin Shukla Mama
ब्लड बैंक प्रभारी हैं डॉक्टर राठौर
विश्व हीमोफीलिया दिवस पर आदिवासी बस्ती बड़ोदी में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित  
शिवपुरी। शिवपुरी जिला चिकित्सालय में हीमोफीलिया के 5 मरीज पंजीकृत हैं। इन मरीजों में 80 से 85 प्रतिशत मरीजों को फैक्टर आठ लगाया जाता है। जबकि, 15 से 20 प्रतिशत मरीजों को फैक्टर नौ लगाया जाता है।अगर सामान्य खरोंच लगने पर भी रक्तस्राव बंद न हो, नाक से खून बहना न रुके और जोड़ों में तेज दर्द हो तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए। आप हीमोफीलिया से ग्रस्त हो सकते हैं। ऐसे में बिना देर किए इसकी जांच कराएं। जिला अस्पताल में इसका ईलाज बिल्कुल मुफ्त है जिला अस्पताल के ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. पवन राठौर ने बताया कि रक्तस्राव संबंधित इस आनुवांशिक बीमारी के लक्षणों में दांत निकालते समय या रूट कैनाल थेरेपी में अत्यधिक खून बहना, जोड़ो में सूजन या असहनीय पीड़ा होना, बच्चों के दांत टूटने व नये दांत निकलने में मसूड़े से लगातार रक्तस्राव और पेशाब के रास्ते खून बहना जैसे लक्षण शामिल हैं।  उन्होंने बताया कि ओपीडी में आने वाले मरीजों में हीमोफीलिया का लक्षण दिखने पर खून की निशुल्क जांच कराई जाती है। अगर इसकी पुष्टि होती है तो मरीज को इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया जाता है। इलाज के दौरान अगर ब्लड फैक्टर फ्यूजन की आवश्यकता होती है तो जिला अस्पताल में यह सुविधा निशुल्क है। इस बीमारी का संपूर्ण उपचार तो नहीं है, लेकिन जिस फैक्टर की कमी होती है उसे देकर मरीज के जीवन की रक्षा की जाती है। आज विश्व हीमोफिलिया दिवस पर बड़ोडी आदिवासी बस्ती में आधा सैकड़ा ग्रामीणों के साथ शक्ती शाली महिला संगठन द्वारा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जिसमे प्रोग्राम संयोजक रवि गोयल ने बताया बताया कि खास सावधानियां बरत कर और हीमोफीलिया प्रतिरोधक फैक्टर के जरिये इस बीमारी को नियंत्रित किया जाता है। इस बीमारी में आंत या दिमाग के हिस्से में होने वाले रक्तस्राव से जान भी जा सकती है। जोड़ो में सूजन के साथ जब इस बीमारी में अक्सर दर्दहोता है तो यह आंतरिक रक्तस्राव के कारण होता है, जो आगे चल कर दिव्यांगता में परिवर्तित हो सकता है। यह बीमारी दो प्रकार की होती है। जिन लोगों में रक्त का थक्का जमाने वाले फैक्टर आठ की कमी होती है, उन्हें हीमोफीलिया ए होता है और जिनमें फैक्टर नौ की कमी होती है, उन्हें हीमोफीलिया बी होता है। मरीज में जिस फैक्टर की कमी होती है, उसे इंजेक्शन के जरिये नस में दिया जाता है, ताकि रक्तस्राव न हो। इसके मरीजों के लिए सही समय पर इंजेक्शन लेना, नित्य आवश्यक व्यायाम करना, दांतों के बारे में शिक्षित करना, एचआईवी, हेपेटाइटिस बी व सी जैसी बीमारियों से बचाना आवश्यक है ।नवजात में नहीं हो पाती हीमोफीलिया की पहचान
जिला महिला अस्पताल के शिशु एवम बाल रोग विशेषज्ञ डॉ संतोष पाठक का कहना है कि नवजात में हीमोफीलिया की पहचान नहीं हो पाती है, लेकिन जब वह दो से तीन महीने के हो जाते हैं तो पहचान हो जाती है। ऐसे बच्चों का जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में इलाज होता है। हीमोफीलिया और इसके जैसे रक्तस्राव संबंधित विकारों से बचाव के लिए विटामिन-के का इंजेक्शन सभी नवजात को लगाया जाता है। रवि गोयल ने कहा की हीमोफिलिया को रॉयल डिसीज के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि महारानी विक्टोरिया इस रोग से ग्रसित थी इसका इलाज बहुत महंगा है लेकिन जागरूकता का बहुत अभाव है आज जब हमने हीमोफिलिया के बारे में पूछा तो कोई भी ग्रामीण इसका  जबाव नहीं दे पाया। आज के प्रोग्राम में आधा सैकड़ा आदिवासी ग्रामीण, आगनवाड़ी कार्यकर्ता रजनी सैन, शक्ती शाली महिला संगठन की पूजा शर्मा, बबिता कुर्मी, विनोद गिरी, लव कुमार वैष्णव एवम टाइगर ग्रुप के सदस्य मौजूद थे।

कोई टिप्पणी नहीं

एक टिप्पणी भेजें

© all rights reserved by Vipin Shukla @ 2020
made with by rohit Bansal 9993475129