अखियों के जानेमाने डॉक्टर गिरीश चतुर्वेदी ने हाथ ठेले कारोबार पर विस्तृत लिखते हुए सुझाव दिया था की मेरी सलाह केवल मुहल्लों के नज़दीक अलग अलग हॉकर्स ज़ोन बनाने की है न कि पूरे शहर में सिर्फ़ एक .. जिससे सामान्य उपयोग की वस्तुएँ आसानी से उपलब्ध हो सकें तथा ठेले वाले दुबारा वहीं न आयें जहां से विस्थापित किए जाएँ। अन्यथा इतिहास गवाह है की हॉकर्स ज़ोन और BRTS का कॉनसेंप्ट भारत के किसी शहर में सफल नहीं हो सका। अभिषेक शर्मा ने लिखा था जिस तरह ऑटो स्टैंड अलग अलग उसी तरह होकर जॉन अलग अलग बनाए जाते। अजीत शर्मा ने लिखा मै भी हर जगह ठेले होने के विचार से असहमत हू क्योकि जनता को अपनी सहूलियत से ज्यादा नगर के सौंदर्य और उसके समुचित विस्थापन पर भी ध्यान देना होगा जिसे हम नागरिक शास्त्र कहते है जिसका आज किसी को बोध नहीं है। गिरीश भाई से इस बात पर सहमत हू कि हौकर्स जोन हर वार्ड मे आवश्यकतानुसार व्यवस्थित तरीके से जनसुविधा अनुरूप किसी रेलवे स्टेशन ,बस स्टैंड हॉस्पिटल ,कॉलेज शासकीय दफ्तर ,न्यायालय जहा ग्राहक की दृष्टि से आवागमन ज्यादा हो वहां बनाया जाना ज्यादा उचित होगा जिससे फेरी वालों की बिक्री भी प्रभावित न हो।

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