ऐसे हुए बाद में सिंधिया के खास
शिवपुरी जिले में हाल के कुछ सालों की बाते छोड़ दें तो जहां तक राजनीति का सवाल हैं तो साफ हैं की वह सिंधिया राजघराने की मोहताज रही है। हमने बड़े बड़े सूरमाओं को उनकी धारा में बहते देखा हैं। बात बैजनाथ सिंह यादव की करें तो जब एमपी में कांग्रेस की सरकार थी तब शिवपुरी में कांग्रेस दो धड़ों में बटी मानी जाती थी। पूर्व मंत्री दाऊ हनुमंत सिंह हो या कुछ और नेता यहां तक कि पिछोर के बड़े नेता तक दूसरे पाले में माने जाते थे। जब धीरे धीरे दूसरे गुट का प्रभाव कम होने लगा तो नेताओं ने जिले की राजनीति में बने रहने के लिए अपना ब्लड ग्रुप भी बदल डाला था। खैर कमोवेश बैजनाथ सिंह यादव भी तब सिंधिया के करीब आए। उन्होंने तमाम जतन करके सिंधिया का दिल जीता था लेकिन बीते लोकसभा और फिर विधान सभा चुनाव के बाद से द ग्रेट सिंधिया बैजनाथ सिंह से नाखुश थे या पूरी तरह खुश नहीं थे, कोई भले ही इस बात को झुठलाए लेकिन आपको याद होगा की पोलो ग्राउंड में बैजनाथ सिंह यादव ने एक विशाल सभा करके सिंधिया के समक्ष अपनी सफाई पेश की थी। जिसका नतीजा रहा की सिंधिया के बीजेपी में कदम रखते समय सभी के साथ बैजनाथ भी आए लेकिन अन्य सिंधिया निष्ठो की तरह बीजेपी में बैजनाथ सिंह भी अलग थलग पड़े रहे। गौर कीजियेगा की अकेले बैजनाथ ही नहीं बल्कि कई सिंधिया निष्ठ केडरवेस पार्टी में सिर्फ टाइम पास करते नजर आते हैं। एक दो नेता सोशल मीडिया पर कट पेस्ट करके अपनी दुकान चला रहे हैं या वे ठस कर बीजेपी की बैठकों में या कार्यक्रम में दिखाई पड़ जाते हैं। लेकिन हकीकत में कांग्रेस पार्टी जेसी उनकी रसूख नहीं हैं। खैर हम फिर विषय पर आते हैं।रामसिंह दादा की विरासत नहीं संभाल पाए महेंद्र
कोलारस की बात करें तो एक समय पुरन सिंह बेडिया के बाद रामसिंह यादव दादा ही एक मात्र ऐसे नेता थे जो सिंधिया के खासम खास थे। बाहुबली नेता और विरोधियों को भी अपने बस में करने वाले दादा ने इलाके में सिंधिया की पताका फहराकर रखी लेकिन उनके निधन के बाद अनुकंपा टिकिट की विजय को छोड़कर उनके बेटे महेंद्र सिंह यादव वो ताकत नहीं बटोर सके जो उनके पिता की थी। बीते दिनों वायरल एक वीडियो ने भी घाव हरे किए हैं ऐसे में उनका टिकिट फाइनल होगा। ये कहना जल्दबाजी होगी।
कांग्रेस के हाथ लगा अलादीन का चिराग
अब बात की जाय टिकिट की तो कांग्रेस के हाथ अलादीन का चिराग लग गया हैं। जिसने इलाके में जनपद से लेकर नगर परिषद और जिला पंचायत की राजनीति में मोहरे अपने हिसाब से बैठाने का काम किया है और सफल हुए हैं। हम बैजनाथ सिंह की बात कर रहे हैं। अब वे अपने old house ritrn हो गए हैं तो कांग्रेस को अधिक विचार नहीं करना होगा। लेकिन उनकी कांग्रेस में इंट्री की खबरों को देखते हुए कुछ नेता विचार की मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं। शायद उन्हें लगता हैं की अब कांग्रेस टिकिट नहीं देगी ! आज जिस तरह पलक पांवड़े बिछाकर कांग्रेस ने बैजनाथ की इंट्री करवाई और उसमें आकाओं की मोजुदगी के साथ ब्रांडिंग की हैं देखकर यही लग रहा हैं की बीजेपी के प्रत्याशी का मुकाबला बैजनाथ से होना तय हैं।
अब कुछ बेटिंग टिकिट पर हो जाए बातचीत
बात करें जितेंद्र जैन गोटू की कांग्रेस प्रवेश की तो उनकी तेज बहती हवा बीते कुछ दिनों से कम बह रही है। कांग्रेस जिलाध्यक्ष विजय सिंह को मिठाई खिलाना हो या ये कहना की राजनीति में सब जायज हैं इन बातों के मायने बीजेपी पर दबाव बनाने के हो सकते हैं। क्योंकि बैजनाथ की कांग्रेस इंट्री के बाद अब कोलारस में बीजेपी टिकिट पर विचार मंथन करेगी। हालाकि उनके पास ब्लास्टर बल्लेबाज वीरेंद्र रघुवंशी मौजूद हैं लेकिन घर में ही उनकी घेराबंदी हुई तो परिणाम कुछ और होंगे। इधर टिकिट की दौड़ में संगठन स्तर पर मजबूत सुरेंद्र शर्मा भी अब खिले खिले दिखाई दे रहे हैं। क्योंकि पत्ते वालों और वीरेंद्र के बीच की टकराहट देख पार्टी उनकी तरफ देख सकती हैं। हालाकि सिंधिया का सिग्नल कमजोर हैं। फिलहाल बीजेपी से सिंधिया निस्ठ हरवीर रघुवंशी भी टिकिट की इच्छा रखते हैं। इधर जातिगत गणित वाले कोलारस में राजनीति का परिणाम यादव, रघुवंशी या फिर वैश्य निर्धारित करते आए हैं। ऐसे में देखना होगा की कोलारस में बैजनाथ सिंह की कांग्रेस में इंट्री से फैला रायता आखिर किस तरह समेटा जायेगा। फिलहाल हम ये कहेंगे की बैजनाथ सिंह यादव ने उम्र के पड़ाव और कोलारस में टिकिट की दावेदारी न देखते हुए बीजेपी को बाय बाय कहने की जोखिम उठाई है सो ठीक ही किया हैं, वरना सिंधिया के लिए उनके दिल में आदर की झलक आज भोपाल में नजर आई जब उन्होंने सिंधिया का नाम पूरे आदर से लिया।

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