शिवपुरी। पोषद भवन में जैन साध्वियों ने उन कथित समाजसेवियों पर कड़े प्रहार किए जो समाजसेवक के रूप में अपनी पहचान रखते हैं, अखबारों में अपने फोटो छपवाते हैं, सार्वजनिक कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि बनकर गौरवान्वित होते हैं, लेकिन घर में अपने माता-पिता की कोई देखभाल नहीं करते। यहां तक कि महीनों तक उनसे बातचीत भी नहीं करते। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने कहा कि जिस घर में माता-पिता हंसते हैं वहां भगवान बसते हैं। वहीं साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि वैष्णो देवी, शिखरजी और गिरिनार जी तीर्थ जाने से पहले सबसे बड़े तीर्थ अपने माता-पिता का आशीर्वाद तो ले लो। बकौल साध्वी नूतन प्रभाश्री जी, माता-पिता के आशीर्वाद को भगवान भी नहीं काट पाते। जो माता-पिता का आशीर्वाद होता है उनके पुत्र भी संस्कारी होते हैं, क्योंकि आज कल की पीढ़ी कथन की बजाए आपकी करनी पर अधिक ध्यान केन्द्रित करती है। साध्वी जयश्री जी ने कहा कि जो व्यक्ति अंदर से जागा होता है वहीं आत्मा से परमात्मा की यात्रा कर पाता है।
धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि सेवा करने वाले को अपने सुख और इच्छाओं का त्याग करना होता है। सेवा के बदले वह कुछ नहीं चाहते। ना धन, ना यश, ना पद और ना श्रेय। समाज सेवकों को नसीहत देते हुए उन्होंने कहा कि सबसे पहले आपकी सेवा के हकदार आपके माता-पिता हैं। माता-पिता तो एक साथ अपने चार बच्चों को पाल लेते हैं, लेकिन आज चार बच्चे अपने एक माता-पिता को नहीं पाल पाते। उन्होंने कहा कि क्या त्रासदी है कि धन संपत्ति के बंटवारे के साथ अब माता-पिता का भी बंटवारा होने लगा है। उन्होंने कहा कि हम स्वयं इसके प्रत्यक्षदर्शी हैं। माता-पिता को 30 दिन अपने पास रखने का अनुबंध उनके दो पुत्रों ने किया, लेकिन जो महीने 31 दिन के होते हैं उनमें माता-पिता को एक दिन का उपवास रखना पड़ता था। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने कहा कि जब ऐसी घटना उनके समक्ष आई तो उस दिन वह दुखी होकर आहार लेने भी नहीं गईं। उन्होंने कहा कि जो अपने माता-पिता का नहीं हुआ वह किसी का नहीं हो सकता।
पुत्री ने अपनी तपस्वी माँ के त्याग की अनूठे ढंग सेे की अनुमोदना
साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज की प्रेरणा से चातुर्मास में पहली अठ्ठाई (आठ दिन का उपवास) करने का सौभाग्य बहन श्रीमती सुमन कोठारी ने प्राप्त किया। उनकी तपस्या की अनुमोदना उनकी सुुपुत्री श्रीमती पूर्णिमा जैन ने की। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने कहा कि आज तपस्वी बहन के(कैप्शन तपस्वी मां का स्वागत करती उनकी पुत्री)
स्वागत का दिन है, लेकिन उनका स्वागत मुफ्त में नहीं होगा। धर्म क्षेत्र में धन का भी कोई मूल्य नहीं है। उनका बहुमान वही कर सकता है जो तप करने की अधिकतम बोली लगाए। इस पर श्रीमती पूर्णिमा जैन ने संकल्प लिया कि वह पांच उपवास करेंगी इसके बाद उन्होंने अपनी माँ का शॉल और श्रीफल से स्वागत अभिनंदन किया। उनकी तपस्या के उपलक्ष्य में धर्मसभा में लकी ड्रा निकाला गया।

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