शिवपुरी। पांच माह तक चार्तुमास में शिवपुरी में धर्म की गंगा प्रवाहित करने वाली प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी ठाणा पांच सतियों ने आज अपने अंतिम धर्मोपदेश में धर्म प्रेमियों को भावविभोर कर दिया। आदर्श नगर में यशवंत सांड के निवास स्थान पर आयोजित धर्मसभा में साध्वी रमणीक कुंवर जी ने कहा कि जीवन में धर्म और धन दोनों जरूरी है, लेकिन लगता है कि हम उन दोनों का सही उपयोग भूल गए हैं। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि इस बार शिवपुरी को चार्तुमास पांच माह का मिला है। पांच माह हमने आपको जिनवाणी सुनाई है। अब परीक्षा का समय है, देखना है कि इस जिनवाणी का आप कैसे उपयोग करते हैं और कैसे अपने जीवन में उतार कर उसे सार्थक करते हैं। इस संबंध में उन्होंने एक प्रेरक कथा भी सुनाई और कहा कि कल हमारी शिवपुरी से विदाई हो जाएगी, लेकिन विदाई से पहले हमें गुरू दक्षिणा देना मत भूलना। हमारी गुरू दक्षिणा धन दौलत नहीं है हम सिर्फ आपसे यह मांगते हैं कि प्रतिदिन मंदिर या धर्म स्थान में कम से कम एक मिनिट के लिए अवश्य जाऐं और प्रभू का स्मरण करें। यही हमारी गुरू दक्षिणा है। धर्म सभा में वात्सल्य गृह के बालकों को लब्धि विपिन सांखला के जन्म दिवस पर और आयोजक सांड परिवार की ओर से ड्रेस तथा अन्य सामग्री भेंट की गई।
साध्वी रमणीक कुंवर जी ठाणा पांच सतियों ने आज कलेक्टर बंगला रोड़ स्थित मुकेश भांडावत के निवास स्थान से सुबह 9 बजे बिहार किया। रास्ते में उन्होंने अमर मुनानी, बल्लभ लिगा और सुनील सांड के निवास स्थान एवं प्रतिष्ठान पर पहुंचकर उन्हें मांगलिक का लाभ दिया। इसके बाद वह आदर्श नगर में यशवंत सांड के निवास स्थान पर पहुंची। यहां धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने अपने चार्तुमास को एक प्राचीन कथा से जोड़ा। उन्होंने बताया कि सेठ धन्ना सार्थवाह की चार बहूऐं थी। जीवन की अंतिम बेला में उसने बहूओं की परीक्षा करने हेतु उन्हें चार-चार चावल के दाने दिए और कहा कि साल भर में मैं कभी भी उनसे ये दाने मांग लूंगा। सबसे बड़ी बहू ने सोचा हमारे पास चावल की क्या कमी, जब मांगेंगे तो भण्डार में से निकाल कर दे देंगे। दूृसरी बहू ने सोचा ससुर जी ने प्रसाद दिया है और यह सोच कर उसने उन दानों को खा लिया। तीसरी बहू ने उन दानों को संभालकर चांदी की डिब्बी में रख दिया, जबकि चौथी बहू ने उन दानों को बो दिया। साल भर बाद चौथी बहू के यहां चावल की अच्छी फसल हो गई, जब सेठ जी ने साल भर बाद उन बहूओं को बुलाया तो उन्हें समझ आ गया कि किस बहू ने उनके दिए चावलों का सही उपयोग किया है। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि ठीक उसी तरह हमने भी चार माह में आपको चावल के चार दानों की तरह जिनवाणी सुनाई है अब देखना यह है कि उसका आप कैसे उपयोग करते हैं। कैसे उसमें अभिवृद्धि करते हैं। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने अपने उदबोधन में बताया कि धन हमारे लिए लगाने की दवा है। उसे सदकार्य, दान और पुण्य में लगाना चाहिए। जबकि धर्म पीने की दवा है लेकिन हो यह रहा है कि हम लगाने की दवा पी रहे हैं और पीने की दवा लगा रहे हैं। इसीलिए जीवन में सुधार नहीं आ पाता, लेकिन अब हमें संभल जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी यह काया मिट्टी की है और मिट्टी में मिल जाएगी। क्या हम लेकर आए हैं और क्या लेकर जाऐंगे। इसलिए जब तक सांस रहे तब तक इसका सार्थक उपयोग मानवता की भलाई और धर्म में किया जाना चाहिए। धर्मसभा में साध्वी जयश्री जी ने सुन्दर भजन का गायन किया।
हमारी भूलों को दिल से न लगाना हमें माफ कर देना: साध्वी नूतन प्रभाश्री जी
धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने समस्त साध्वी मंडल की ओर से धर्मप्रेमियों से माफी मांगते हुए कहा कि चार्तुमास के दौरान यदि हमसे कोई ऐसा कार्य हुआ या हमारे बोलने से किसी के कौमल मन को ठेस लगी हो तो हम उनसे अपनी ज्ञात अज्ञात गलतियों और भूलों के लिए माफी मांगते हैं। हमारी भूलों को आप दिल से मत लगाना और हमें माफ कर देना। इस अवसर पर श्रीमती सुनीता यशवंत सांड ने अपने निवास स्थान पर जैन साध्वियों का स्वागत करते हुए कहा कि आपका हम पर अनंत उपकार है। चार्तुमास में पानी और आपकी वाणी ने हमें मंत्र मुग्ध किया है। संतों की विदाई और जुदाई नहीं होती उन्हें तो हमेशा बधाई मिलती है क्योंकि वह न केवल अपना कल्याण कर रहे हैं बल्कि समूची मानवता का कल्याण करने में जुटे हैं। इस अवसर पर उन्होंने एक भावुक भजन प्रस्तुत करते हुए कहा कि गुरूणी मैया कर रही है यहां से बिहार साथ लेकर जाऐंगे हम सबका प्यार।
आज सुबह 7 बजे साध्वी रमणीक कुंवर जी करेंगी बिहार
साध्वी रमणीक कुंवर जी ठाणा पांच सतियां शिवपुरी के आदर्श नगर से ठीक सुबह 7 बजे कोलारस की ओर पद बिहार करेंगी। वह लगभग 10 कि.मी. चलकर राजकुमार जैन जड़ी बूटी बालों के फार्म हाउस पर पहुंचेंगी। चार्तुमास कमेटी के अध्यक्ष राजेश कोचेटा ने सभी धर्म प्रेमियों से अनुरोध किया है कि साध्वी जी की विदाई की बेला के अवसर पर वह उपस्थित होकर उन्हें अपनी भावभीनी विदाई दें ताकि शिवपुरी का नाम रोशन हो सकें।

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