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धमाका धर्म: प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही विश्वव्यापी जनमानस मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के सद्गुणों का अनुसरण करने का संकल्प भी लें

शनिवार, 20 जनवरी 2024

/ by Vipin Shukla Mama
22 जनवरी को अयोध्या जी में भव्य राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही विश्वव्यापी जनमानस मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के सद्गुणों का अनुसरण करने का संकल्प भी लें –
रामायण के अनुसार भगवान राम के जीवनकाल से सीख लेकर हमें अपनी सभी जिम्मेदारियों का सही निर्वाहण करना चाहिए। भगवान राम संगठित होकर कार्य करने पर भरोसा करते थे। वनवास के समय राम जी के साथ पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण ने भी एक टीम के रूप में काम किया। भगवान राम ने रणनीति, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय और दूसरों की बातों को ध्यान से सुनकर टीम भावना से कार्य करते हुये शत्रुओं की विशाल सेना को हरा दिया। भगवान राम ने अपने जीवन में हर कार्य बेहतर योजना के साथ किया। जैसे - गुरूकुल जाना, ऋषि मुनियों को भयमुक्त कर उनका समर्थन हासिल करना, सुग्रीव को राजा बनाना हो या लंका तक पुल निर्माण करना। भगवान राम ने हर परिस्थिति के लिए एक विस्तृत योजना बनाई। भगवान राम ने जीवन में कई मुश्किल हालातों से निपटने धैर्य के साथ उन समस्याओं का समाधान ढ़ूंढ़ा और फिर उस पर कार्य किया। उन्होंने सीता हरण से लेकर लक्ष्मण के मुर्च्छित हो जाने तक कई तरह की समस्याओं का धैर्य के साथ सामना किया। इसी तरह हमें भी समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए बल्कि धैर्य के साथ उन समस्याओं का समाधान ढूंढ़ना चाहिए। कोई भी टीम सफल तभी होती है जब उसे सही मार्गदर्शक मिले। एक कुशल टीम लीडर अपनी टीम के सभी सदस्यों को समान भाव से देखे। भगवान राम राज परिवार के बेटे होने के बाद भी वनवासियों के बीच में वनवासी की तरह सरलता से रहे। जिंदगी में कामयाब इंसान बनने के लिये तथा लक्ष्य हासिल करने के लिए बेहतर मैनेजमेंट का होना बेहद ज़रूरी है। इसके लिए रणनीति, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय, उपलब्धता और पारदर्शिता होना बहुत जरूरी है यह सभी गुण भगवान श्रीराम में मौजूद थे। राम जी अपने भाइयों का किस कदर सम्मान करते है। उनके वन जाने के बाद भी भरत में उनकी चप्पल पादुका रखकर उनका इंतजार किया। सभी लोग लक्ष्मण जैसा भाई चाहते है। उसके लिया आपको भी भाई राम जी जैसा प्यार देना होगा। अहंकार को संतुलित करने के लिए त्याग आवश्यक है, यह गुण श्रीराम में था। इसलिए राम का व्यक्तित्व निःसंदेह संतुलित था। संतुलित व्यक्तित्व अनुकरणीय, शिक्षाप्रद होता है। सीता स्वयंवर में श्रीराम ने शिव धनुष तोड़कर वीरता और साहस का परिचय दिया। राम ने जंगल में भिक्षा मांग कर पूजा की थी इससे उनकी सादगी और आस्था का पता चलाता है। पुरुषोत्तम श्री राम ने जीवन में सदा साधु पुरुषों का संग किया। साधु पुरुषो का संग करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।  मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम ने मर्यादा का पालन करने के लिए बड़ी से बड़ी चीज का त्याग किया वो भी बिना किसी शंका के। जब राजा दशरथ ने उन्हें बनवास दिया तब उन्होंने उनके दिए गए वचन को ध्यान में रखते हुए सहर्ष स्वीकार किया। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का संपूर्ण जीवन एक वृह्द शिक्षालय है। जीवन के हर मोड़ पर, हर घड़ी, हर समय, विभिन्न परिस्थितयों में, भिन्न भिन्न लोगों, नाते-रिश्तेदारों से कब- कैसा आचरण करना चाहिए ये सभी बातें आप राम जी की जीवन गाथा से सीख सकते हैं। सीता स्वयंवर में परशुराम जी के क्रोधित होने पर लक्ष्मण जी उग्र हो गये लेकिन राम जी ने विनम्रता से बात की तथा विवाद को शांत किया। केकई के गलती स्वीकार करने पर श्री राम ने केकई को क्षमा किया। सीताजी के अपहरण होने पर उन्होंने धैर्य नहीं खोया। प्रभु राम ने अपनी मर्यादा में रहकर प्रजा की सेवा की और राम राज्य की स्थापना की। हमें भगवान श्रीराम की पूजा अर्चना के साथ- साथ उनके आचरण से भी शिक्षा ग्रहण करना चाहिये। श्रीराम जी ने एक आदर्श बिंदु जन मानस को दिया है जैसे कि राम ने एक आदर्श राजा के रूप में जनता के हितों का ध्यान रखा, पिता के आदेश पालन करना, सभी वर्ण के साथ मेलमिलाप, निषाद, शबरी और केवट मल्लाह से प्रेम भाव, सदाचार प्रजा में प्रेम सौहार्द का एक समान रूप से देखना आदि आज भी मिशाल है। श्रीरामचन्द्रजी का जीवन एक सीख नहीं बल्कि सीखों का पिटारा है। गुरु-शिष्य, राजा-प्रजा, स्वामी-सेवक, पिता-पुत्र, पति-पत्नी, भाई-भाई, मित्र-मित्र के आदर्शों के साथ धर्मनीति, राजनीति, कूटनीति, अर्थनीति, सत्य, त्याग, सेवा, प्रेम, क्षमा, परोपकार, शौर्य, दान आदि मूल्यों का सुन्दर आदर्श हमें उनके जीवन से सीखने को मिलता है। भारत में राम राज्य को एक न्यायपूर्ण राज्य व्यवस्था के पर्याय के रूप में जाना जाता है। यही इस देश की सुंदरता, संयम और अनोखी प्रकृति है। भगवान राम अपना हर काम उचित मैनेजमेंट के ज़रिये ही करते थे और उस मैनेजमेंट का परिणाम किसी से छुपा हुआ नहीं है। आप भी भगवान राम के जीवन से ये गुण सीखकर अपना जीवन सफल बना सकते हैं। श्री राम से हमें सीखना चाहिये कि अपने बड़ों का आदर करना, जीवन में कुछ सीखने के लिए सदैव जिज्ञासु रहना, अपने कुल और मर्यादा की रक्षा करना, अपने भाइयों से स्नेहपूर्ण व्यवहार करना, अपनी जीवनसंगिनी से अथाह प्रेम करना, अवसर आने पर अपना पराक्रम प्रकट करना।
श्रीरामजी इतने आदर्श वादी थे कि संसार के सारे लोग, चाहे वो किसी भी धर्म संप्रदाय से संवंध रखते हों, उन्हैं अपना आदर्श मान कर अपना जीवन सफल बना सकते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन से सीख लेकर आज ही संकल्प लें कि प्रत्येक दिन श्री राम के आदर्शों पर चलकर उनसे सीख लेकर अपने संकल्प पर द्रढ़ रहूंगा। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का सम्पूर्ण जीवन अनुसरणीय है।
आप सभी को अयोध्या जी में भव्य राम मंदिर में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम जी की प्राण प्रतिष्ठा की शुभकामनाऐं। जय श्री राम।
निवेदक : अरविन्द जैमिनी (अध्यक्ष अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण सभा जिला ग्वालियर, म.प्र.)










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