शिवपुरी। उर्दू अदब की ख़िदमत और बज़्म—ए—उर्दू के अध्यक्ष की हैसियत से उर्दू की तरक़्क़ी में मशहूर शायर आफ़ताब अलम के योगदान को स्वीकार करते हुए, बज़्म—ए—उर्दू की शिवपुरी इकाई ने विगत दिवस उनका सम्मान किया। सम्मान के तहत संस्था के सभी पदाधिकारियों ने सबसे पहले शॉल उड़ा और हार पहनाकर उनका स्वागत किया। उसके बाद उन्हें एक प्रशस्ति—पत्र प्रदान किया। जिसमें उनके सतत लेखन, अच्छी सेहत और लंबी उम्र की दुआ की गई है।
गौरतलब है कि शायर आफ़ताब अलम पिछले कुछ दिनों से गंभीर तौर पर बीमार हैं और जिसके चलते वह चल—फिर भी नहीं पा रहे हैं। यही वजह है कि उर्दू अदब से जुड़ी हुई देश की एक पुरानी संस्था 'बज़्म—ए—उर्दू' की शिवपुरी इकाई के सभी पदाधिकारी संस्था के संरक्षक यूसुफ़ अहमद कुरैशी, उपाध्यक्ष शकील नश्तर, सचिव इशरत ग्वालियरी, कोषाध्यक्ष रामकृष्ण मोर्य 'मयंक', याकूब 'साबिर', प्रबंधक सत्तार कुरैशी आदि आफ़ताब अलम के घर पहुंचे और उनका सम्मान किया।
उर्दू, अरबी और फ़ारसी के विद्वान आफ़ताब अहमद 'अलम' एक नामी—गिरामी शायर हैं। जिनकी ग़ज़लों और नज़्मों का एक संग्रह 'ख़मसा अनासिर' प्रकाशित हो चुका है। जिसमें उन्होंने पंचतत्व आग, पानी, हवा, आकाश और मिट्टी पर तो नज़्में लिखी ही हैं, बल्कि अलग—अलग विषय मसलन 'दौर—एल—जदीद', 'हिंदुस्तानी तस्वीर', 'दिवाली', 'भारत', 'कन्या भ्रूण हत्या', 'मंदिर—मस्जिद', 'तात्या टोपे', 'बहादुर शाह ज़फ़र', 'टीपू सुल्तान', 'मंगल पांडे' और 'झलकारी बाई' पर केन्द्रित नज़्में उनकी इस किताब में शामिल हैं। 'झॉंसी की रानी', 1857 की महानायिका महारानी लक्ष्मीबाई पर आफ़ताब अलम की लंबी नज़्म है। जिसमें उन्होंने झॉंसी की रानी की 1835 से लेकर 1858 तक की जीवन—यात्रा को अपनी नज़्म में बड़े दिलचस्प ढंग से पिरोया है। म.प्र. प्रगतिशील लेखक संघ और म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन की शिवपुरी इकाई से जुड़े साहित्यकारों ने भी शायर आफ़ताब अहमद 'अलम' के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए, उन्हें इस सम्मान के लिए बधाई दी है।

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