बैतूल। पेट दर्द से परेशान एक महिला का ज़ब ऑपरेशन किया गया तो महिला के पेट से कपड़ा निकला। कपड़े की वजह से महिला की आंतें तक फट गईं हैं। महिला को सोमवार 16 सितंबर को निजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। इससे पहले वह तीन दिन जिला अस्पताल में भी भर्ती रही, लेकिन राहत नहीं मिली।
बता दें कि इस ऑपरेशन से पहले जिला अस्पताल में जून महीने में महिला के सीजर ऑपरेशन के दौरान कपड़ा पेट में ही छूट जाने की बात सामने आ रही है। महिला के पति का कहना है कि 15-20 दिन से उसकी पत्नी जो कुछ खाती थी, वह बाहर हो जाता था। उसे लगातार उल्टियां हो रहीं थी। शिकायत पर स्वास्थ्य विभाग इसकी जांच कर रहा है।
ऑपरेशन के बाद से ही हो रहा था पेट दर्द
महिला का पति मजदूर है. आमला निवासी विजय रावत ने अपनी गर्भवती पत्नी गायत्री (20) को डिलीवरी के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया था। ऑपरेशन के जरिए डिलीवरी हुई। पिता रमेश टेकाम का कहना है कि इसके बाद से ही गायत्री पेट दर्द की शिकायत कर रही थी। धीरे-धीरे तकलीफ बढ़ती रही।
पिछले एक महीने से दर्द बहुत बढ़ गया था। वह जो कुछ भी खाती थी उल्टी हो जाती थी। कई जगह दिखाया, लेकिन कोई आराम नहीं हुआ। जिला अस्पताल में भी तीन दिन से भर्ती थी। हालांकि, वहां बोतल लगा दी और फिर छुट्टी कर दी गई, लेकिन कोई आराम नहीं हुआ तब महिला को कोठी बाजार स्थित निजी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। सोनोग्राफी सहित कई तरह की जांच के बाद उसका ऑपरेशन किया गया। डॉ. शैलेंद्र पंद्राम ने बताया की महिला कल हमारे पास आई थी। उसकी सोनोग्राफी करवाई तो इंटेस्टाइन में रुकावट थी। तब हमने डिसाइड किया कि ऑपरेशन करेंगे।
लेप्रोटिमी प्रोसीजर से ऑपरेशन किया गया। जिसमें पता चला कि बाउल नीचे जाकर बच्चेदानी में चिपकी हुई थी। उसे निकाला तो वह पूरी फटी हुई थी। निकालने की कोशिश की तो लगा यह स्टूल (मल) है, लेकिन वह जालीदार दिखा। जब खोला तो वह लंबा कपड़ा था। ये समझ नहीं आ रहा की यह पेट में कैसे चला गया। लगता है पहले जब ऑपरेट किया तब बाउल फटी। उसे रिपेयर करने की कोशिश की या उसे ऐसे ही छोड़ दिया गया। कपड़ा अंदर कैसे गया, कुछ समझ नहीं आया। डॉ. पंद्राम का कहना है कि जिला अस्पताल में प्रॉपर इन्वेस्टिगेशन नहीं किया गया।
महिला को 15-20 दिन से लगातार उल्टियां हो रहीं थी। अगर ऑपरेशन समय पर नहीं किया जाता तो उसकी जान जा सकती थी। खाना पीना बंद हो गया था। पूरी बाउल बंद थी। आतें फट गई थीं, उसे जोड़ा गया है।
सिविल सर्जन ने कहा, कपड़ा कैसे आया इसकी जांच करवा रहे
जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. अशोक बारंगा ने बताया कि मामला संज्ञान में आया है। महिला का रिकॉर्ड निकलवाया गया है। इसका सीजर किया गया था। अब उसके पेट में कपड़ा कैसे आया इसकी जांच करवा रहे हैं। जिसकी भी लापरवाही पाई जाएगी, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
पति को ऑपरेशन के बाद फीस चुकाने की चिंता
गायत्री का पति विजय रावत और पिता रमेश मजदूरी करते हैं। बेटी को निजी अस्पताल में भर्ती कराने के बाद यह पूरा परिवार परेशान है। हॉस्पिटल का खर्च और डॉक्टर की फीस चुकाने की चिंता है।
पेट में कपड़ा छोड़ने का ये दूसरा मामला
बैतूल जिला अस्पताल में मरीज के पेट में कपड़ा छोड़ने का यह दूसरा मामला है। इससे पहले हिना फाजलानी के साथ ऐसे ही वाकया हो चुका है। 29 नवंबर 2015 को जिला अस्पताल में उनका ऑपरेशन किया गया था। शुरू में तो दर्द को सीजर का दर्द समझते रहे, लेकिन जब दर्द बढ़ गया तो डॉक्टर को दिखाया।
हालांकि, डॉक्टर जांच की बजाय दर्द और एसीडिटी की दवा देती रही। आखिर में दर्द से तड़पती हिना को परिजन नागपुर के एक निजी अस्पताल ले गए। यहां 1 लाख खर्च कर दोबारा ऑपरेशन कराया गया तो पेट से कपड़ा निकला।
नौ साल बाद हिना को मिला न्याय
इस मामले में हिना ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। उन्होंने पूरा मामला कंज्यूमर कोर्ट में खींच लिया। पिछले अप्रैल महीने बैतूल के कंज्यूमर कोर्ट के आदेश पर सीएमएचओ बैतूल ने पीड़िता को एक लाख 46 हजार रुपए का हर्जाना चुकाया। पीड़िता पिछले नौ साल से लड़ाई लड़ रही थी।
ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर का नाम गायब
बताया जा रहा है कि इस केस में हिना ने जिला अस्पताल की डॉक्टर संध्या नेमा को भी प्रतिवादी बनाया था। लेकिन केस की सुनवाई के दौरान प्रतिवादी पक्ष ने बताया की संध्या नेमा ऑपरेशन के दौरान मौजूद ही नहीं थीं। जिस पर फोरम ने सीएमएचओ से कहा कि वे तय करें कि ऑपरेशन किसने किया है और रकम की वसूली करें।

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