तत्पश्चात मंचासीन संत एवं आचार्य विभूतियों का स्वागत वस्त्र, श्रीफल, कार्यक्रम स्मृति चिन्ह, भेट कर दक्षिणा प्रदान करते हुये सर्व ब्राहम्ण समाज के वरिष्ठ जनों अध्यक्ष भरत
शर्मा, राजू दुबे खजूरी, रामजी ब्यास, डॉक्टर सुखदेव गौतम तथा अन्य विप्रजनों द्वारा किया गया। 
जिला अध्यक्ष भरत शर्मा ने अपने उद्बोधन में कार्यक्रम की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुये कहा कि सर्व ब्राहम्ण समाज की सामान्यता है कि वर्तमान हालातो में भी
ब्राहम्ण का अस्तिव, मान सम्मान, वैभव, जितना भी सर्व समाज में बचा है उसके मूल
में विद्यमान है पांडित्य कर्म से जुड़ें विद्वान ब्राहम्ण द्वारा घर घर कराये जा रहे पूजन,
हवन, अनुष्ठान, पाठ, जाप तथा जगह जगह सुनाई जा रही भागवत, राम कथायें एवं अनेकों पौराणिक कथाओं का श्रवण कराना तब हम क्यों न इन विद्वान पंडितों की चरण वन्दना करें इनका स्वागत सम्मान करें
जिन्होने हमें ब्राहम्ण होने का रूतवा दिया है बस इसी पुनीत विचार का आकार है यह "पांडित्य कर्म विद्वान ब्राहम्ण सम्मान समारोह" आज समारोह की भव्यता और
दिव्यता देख यहाँ हर कोई कहने लगा कि हम महज किसी साधारण कार्यक्रम में नही अपितु हम एकं महानुष्ठान की गोद में बैठे है जिसमें लगभग 300 पंडित्यों के दिव्य दर्शनों के साथ साथ महान महा संतो, महामण्डेलश्वरों के
दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है।
तत्पश्चात संत वचन अंतर्गत महंत रूद्र चेतन्यपुरी बगीचा सरकार द्वारा ब्राहम्णों को अपने आचरण में शुद्धता लाते हुये सर्व
समाज के कल्याण के भाव से समाज का मार्गदर्शन करना चाहिए संबंधित संदेश दिया तत्पश्चात संत बाई महाराज ने ब्राहम्ण होने पर गर्व करो पर अंहकार नहीं करने का जीवन मंत्र दिया, महामण्डलेश्वर
पुरूषोतमदास जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ब्राहम्ण सबकी मंगल कामनाओं को करते हुये एक रहे एकजुट रहे, शिवपुरी में कार्यरत 27 संगठनों पर चिन्ता व्यक्त करते हुये सभी संगठनों को विलोपित कर एक संगठन बनाने
पर जोर दिया, तत्पश्चात महामण्डलेश्वर अनिरूद्धबन महाराज ने ब्राहम्णों का वेद वर्णित पांडित्य संस्कारो का वरण कर सर्व समाज को भी इन संस्कारों से सुसज्जित करने की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करनी
चाहिए संदर्भित मंत्र देकर आशीवार्द दिया तो आचार्य गिरीश दुबे बांकडे ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में ब्राहम्णों को अपने कृतित्व और साधना की तलवार से समाज में झडें जमा रही बुराईयों, कुरूतियाँ, व्यसनों, का समूल
नष्ठ करने पर बल दिया तथा आचार्य जगदीश जैमिनी जी द्वारा पांडित्य कर्म की बारीकियों को समझाते हुये पांडित्य कर्म पूरे मनोयोग और सर्मपण भाव से कराये जाने पर बल
दिया। कार्यक्रम की शुरुआत में कवि आशुतोष शर्मा ने अपने विचार प्रकट किए।
तत्पश्चात कर्मकांडी ब्राहम्णों का शाल, पट्टिका, श्रीफल व स्मृति चिन्ह के साथ साथ दक्षिणा भेट सम्मानित किया इसके बाद श्री
राजेन्द्र दुबे खजूरी ने आभार व्यक्त करते हुये निर्धारित ब्राहम्ण भोज में सम्मिलित होने का आग्रह किया गया अंत में कार्यक्रम की
घोषणा रामजी ब्यास तथा डॉक्टर सुखदेव द्वारा अपने सारगर्भित उद्बोधन द्वारा की गई। कार्यक्रम का संचालन महेन्द्र उपाध्याय एवं मनिका शर्मा द्वारा किया गया।

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