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#धमाका_खास_खबर: 3 महीने से 3 साल तक के बच्चों के लिए भारत का पहला एजुकेशन रिसर्च, गीता पब्लिक स्कूल शिवपुरी को एमएमएम पर मिला कॉपीराइट

सोमवार, 30 जून 2025

/ by Vipin Shukla Mama
SHIVPURI शिवपुरी। अभी हाल ही में भारत की पहली स्कूल डायरी पर कॉपीराइट के बाद गीता पब्लिक स्कूल प्रबंधन ने एकेडमिक के क्षेत्र में एक नया कॉन्सेप्ट प्रस्तुत किया है जिसको नाम दिया गया है *एमएमएम मोमी माय मेंटर- इंफेंट क्यूरियो ट्रेनिंग स्कूल* 
3 महीने से 3 साल तक के बच्चों के लिए तैयार किए गए विशेष शैक्षणिक कांसेप्ट को इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी डिपार्टमेंट (बौद्धिक संपदा विभाग) द्वारा आधिकारिक रूप से कॉपीराइट प्रदान किया गया है। इस विशेष कांसेप्ट को गीता पब्लिक स्कूल ने विकसित किया है, जिसमें 3 महीने से 3 साल तक की आयु के बच्चों के सर्वांगीण विकास (मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक और सामाजिक) के लिए वैज्ञानिक तरीके से तैयार किया गया शैक्षणिक ढांचा शामिल है। बच्चों के लिए उनकी पहली गुरु उनकी मां होती है। इसी विचार को साकार रूप देते हुए 3 माह से 3 साल के बच्चों को उनकी मदर्स अब अपने साथ प्लेग्रुप लेकर जाएंगी जहां पर बच्चे को गेम्स, अलग अलग तरह के कलरफुल खिलौने, डांस, सिंगिंग, स्टोरी टेलिंग, म्यूजिक, एक्टिविटी पार्टिसिपेशन, ग्रुप कनेक्टिविटी में लेकर आना, पेरेंट्स कनेक्टिविटी में लेकर आना वे स्वयं सीखा पाएंगी। इस उम्र में बच्चों में सीखने की विलक्षण प्रतिभा होती है। बच्चे के लिए 2 से 3 घंटे का स्कूल होगा जिसमें बच्चे अपनी मदर् के साथ जाएंगे। इसके साथ ही मां अपने बच्चे को सही तरीके से एनालिसिस भी कर पाएगी कि उसका बच्चा किस चीज में आगे है। बच्चे की हेल्थ के बारे में भी प्रॉपर जानकारी रख पाएगी। जो वर्किंग मदर्स है जो चाहते हुए भी बच्चों के लिए पर्याप्त समय नहीं निकाल पाती वहां पर बच्चों के साथ उनकी ग्रैंड मदर्स बच्चों के साथ प्लेस्कूल जा सकती हैं। उनके लिए यह बहुत ही पॉजिटिव टास्क रहेगा।
स्कूल प्रबंधन द्वारा यह विचार और उसकी संपूर्ण ढांचा इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी डिपार्टमेंट को प्रस्तुत किया गया। विभाग ने उस विचार की मौलिकता, सामाजिक प्रभाव और शैक्षणिक महत्व को देखते हुए उसे कॉपीराइट की विधिक मान्यता प्रदान की। 
हमने रिसर्च और प्रेक्टिकल अनुभव के बाद इस मॉडल को विकसित किया है 
इस अवसर पर स्कूल संचालक श्री पवन कुमार शर्मा ने कहा कि "हमने रिसर्च और प्रेक्टिकल अनुभव के बाद इस मॉडल को विकसित किया है। यह हमारे लिए गर्व का क्षण है कि हमारे विचार को बौद्धिक संपदा विभाग से आधिकारिक मान्यता मिली है। अब हम इस मॉडल के जरिए देश में शिशु शिक्षा के क्षेत्र में नई दिशा दे सकेंगे।"












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