शिवपुरी। अधिवक्ता रीतू शर्मा (एडवोकेट, ग्वालियर हाईकोर्ट) द्वारा एक ऐतिहासिक एवं संवेदनशील मामले में हस्तक्षेप करते हुए महिला एवं उसके नवजात शिशु को स्वधार गृह, ग्वालियर से मुक्त कराने हेतु हाईकोर्ट, ग्वालियर में हैबियस कॉर्पस याचिका दाखिल की गई।
यह याचिका उन परिस्थितियों में दाखिल की गई जब महिला, जो कि अब बालिग (20 वर्ष) है, को बिना उसकी स्वेच्छा के प्रशासनिक आदेश के आधार पर रोका गया था, जबकि वह मानसिक रूप से सक्षम है और अपनी मर्जी से बाहर जाना चाहती है।
उक्त याचिका में अधिवक्ता रीतू शर्मा ने यह दलील दी कि –
“एक बालिग महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध रोका जाना अनुच्छेद 21 (Right to Life and Liberty) का स्पष्ट उल्लंघन है।”
महिला के साथ उसका 4 माह का शिशु भी स्वधार गृह में निरुद्ध था, जिससे बच्चे के मानवाधिकार और परवरिश पर भी गंभीर प्रश्न उठे।
अधिवक्ता रीतू शर्मा ने यह सुनिश्चित किया कि महिला की स्वतंत्र इच्छा को उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाए और उसे स्वतंत्र जीवन जीने का संवैधानिक अधिकार दिया जाए। शर्मा ने कहा कि यह मामला महिलाओं की आज़ादी और कानून के दुरुपयोग के विरुद्ध एक मील का पत्थर बन सकता है।

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