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#धमाका_बड़ी_खबर: "शहर के बड़े पुल से लेकर गुरुद्वारा चौक की वेश कीमती भूमि का केस हार गई नगर पालिका शिवपुरी, कोर्ट ने लिखा, "शासन एवं नगर पालिका परिषद कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सके"

बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

/ by Vipin Shukla Mama
शिवपुरी। लगातार सुर्खियों में रहने वाली नगर पालिका परिषद शिवपुरी को लेकर फिर एक बड़ी खबर सामने आई है। शहर के बड़े पुल से लेकर गुरुद्वारा चौक तक अतिक्रमण तोड़े जाने को लेकर एक समय जो हंगामा खड़ा हुआ था उसी बहुचर्चित मामले में नपा केस हार गई है। नगर पालिका शिवपुरी अनुमानित 40 करोड रुपए की भूमि का केस हार बैठी है। माननीय तृतीय जिला न्यायाधीश शिवपुरी ने अलग-अलग वादीगण  के पक्ष में फैंसला सुनाया है। बता दें कि उक्त मामले के फैसले में लिखा है कि "वर्तमान मामले में वादी द्वारा अपने स्वत्व को स्थापित करने हेतु सारतः वर्ष 1959 में प्रारंभतः सभापति नगर पालिका शिवपुरी द्वारा अंबालाल पिता श्यामजी के पक्ष में निष्पादित विक्रय पत्र (प्रदर्श पी-1) से लगातार स्वत्व अंतरित किये जाने से संबंधित विकय पत्र प्रस्तुत किये गये है। विक्रय पत्र (प्रदर्श पी-1) का अवलोकन किया जावे तो उसे वर्ष 1959 में सभापति, नगर पालिका शिवपुरी द्वारा निष्पादित किया जाना लेख है। उक्त दस्तावेज की सत्यता की वास्तविकता के संबंध में प्रतिवादी पक्ष द्वारा कोई सारभूत चुनौती नहीं दी गयी है। चूंकि उक्त दस्तावेज नगर पालिका परिषद से संबंधित होना प्रकट है, ऐसी स्थिति में उक्तानुसार दस्तावेज निष्पादित न होना नगर पालिका परिषद से संबंधित दस्तावेजों के माध्यम से प्रमाणित किया जा सकता था। इस प्रकार के खण्डन के दस्तावेज नगर पालिका परिषद द्वारा अपने आधिपत्य से प्रस्तुत किये जा सकते थे, परंतु ऐसा न किया जाना धारा-114 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के दृष्टांत (छ) के आलोक में दस्तावेज का उचित रूप से निष्पादन किये जाने के तथ्य को बल प्रदान करता है। ये भी उल्लेख किया है कि "भारत क्षेत्र ग्वालियर की आज्ञा से किया गया है। सभापति नगर पालिका शिवपुरी स्वयं में एक लोकसेवक थे एवं उनके द्वारा पदीय कर्तव्य के रूप में सम्यक् रूप से कार्यवाही के पश्चात् विक्रय पत्र निष्पादित किया जाना उपधारित किया जा सकता है। उक्त तथ्य को खण्डित करने के संबंध में सर्वोत्तम साक्ष्य शासन एवं नगर पालिका परिषद द्वारा प्रस्तुत की जा सकती थी, परंतु उनकी ओर से कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है। सामान्य अनुक्रम में भी किसी साधारण नागरिक से यह अपेक्षा किया जाना कि वह शासन के विरूद्ध उन्हीं के 60 वर्ष पूर्व के दस्तावेज प्रस्तुत करें, स्वयं में कल्याणकारी राज्य के परिकल्पना के विपरीत है।"
कुलमिलाकर इस चर्चित मामले में नगर पालिका परिषद शिवपुरी की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है। किस केस पर लोगों की निगाह थी उसमें हार मिली है। 















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