शिवपुरी। देश के तेजी से बढ़ते शहरी क्षेत्रों में यातायात, सीवेज, पेयजल, बिजली और दूरसंचार जैसी शहरी सेवाओं के लिए जगह की कमी एक बड़ी समस्या बन रही है। पानी की लाइन आदि की वज़ह से नयी नवेली सड़कों को भी खोद दिया जाता है, जिससे नगरीय प्रशासन को जनता की आलोचना का सामना करना पड़ता है।
इसी चुनौती को देखते हुए हमें एक नए समाधान की ओर कदम बढ़ाना चाहिए, जो है —ब्रिज-स्लैब आधारित सिटी रोड, जिसमें सड़क का मुख्य ढांचा एक सतही फ्लाईओवर जैसी स्लैब पर बनाया जाए। इस स्लैब के नीचे पानी की पाइपलाइन, सीवरेज, ऑप्टिकल फाइबर, बिजली लाइनें और अन्य यूटिलिटी सुरक्षित रूप से व्यवस्थित की जा सकेंगी। इससे बार–बार खुदाई की ज़रूरत कम होगी और रखरखाव भी आसान होगा।
दुनिया भर में और भारत में इससे पहले यूटिलिटी डक्ट वाली सड़कों का निर्माण किए जाने के प्रयास किए गए हैं किन्तु हम भारत की बात करें तो नगरीय निकायों के लिए (सारी दुनिया के लिए) आए दिन टूट फूट से जूझ रही सड़कों के स्थान पर ब्रिज-स्लैब आधारित सिटी रोड बिल्कुल नया, टिकाऊ और सस्ता विकल्प है।
हालांकि इस मॉडल के कई फायदे होने के बावजूद, इसे बिना रिटेनिंग वॉल, बिना डीप पाइल फाउंडेशन (गहरी नींव) और बिना भूमि-अधिग्रहण के लागू करना अपने आप में बड़ी चुनौतियाँ लेकर आता है। आइए समझते हैं कि कौन-सी व्यवहारिक और तकनीकी समस्याएँ सामने आ सकती हैं।
पहली समस्या है कि ऐसी सड़क के नीचे मिट्टी की क्षमता और सतही नींव पर भार का दबाव रहेगा यानि कि अगर ब्रिज स्लैब को गहरी पाइलिंग के बिना बनाया जाएगा तो पूरा भार उथली नींव या स्प्रेड फुटिंग पर आएगा। मध्यप्रदेश के कई शहर—जैसे इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, सागर—में अलग-अलग तरह की मिट्टी पाई जाती है, जिनमें ब्लैक कॉटन सोइल (काली मिट्टी) भी शामिल है। यह मिट्टी वर्षा में फूलती और गर्मी में सिकुड़ती है, जो संरचना के नीचे खालीपन और असमान बैठने (Differential Settlement) का जोखिम बढ़ा देती है। इसमें चुनौती यह है कि भार उठाने के लिए आवश्यक मजबूती सुनिश्चित करने हेतु विस्तृत जियोटेक्निकल सर्वे और अतिरिक्त ग्राउंड इम्प्रूवमेंट की आवश्यकता पड़ेगी, जिससे परियोजना की लागत और समय दोनों बढ़ेंगे। दूसरी समस्या बिना रिटेनिंग वॉल सड़क की सुरक्षा और ढलान प्रबंधन की है क्योंकि रिटेनिंग वॉल ना होने पर सड़क के किनारे की मिट्टी बरसात में कटाव का सामना कर सकती है। इससे ब्रिज-स्लैब के किनारे अस्थिरता पैदा हो सकती है। शहरों में जहां जगह सीमित होती है, वहाँ ढलान बनाना भी संभव नहीं रहता। ऐसे में चुनौती के तौर पर बरसाती पानी के तेज बहाव से ढांचे के किनारों को नुकसान पहुँच सकता है, और लंबे समय में बेस स्ट्रक्चर कमजोर होने का खतरा रहता है। ढलान प्रबंधन के वैकल्पिक उपाय महंगे और जटिल हो सकते हैं।
तीसरी समस्या जल निकासी का बड़ा प्रश्न है। ब्रिज-स्लैब रोड के नीचे यूटिलिटी रखने के बाद मुख्य चिंता यह होती है कि बारिश के दौरान पानी बहकर कहाँ जाएगा। यदि सड़क के साथ–साथ बड़े स्टॉर्म-वाटर ड्रेनेज की व्यवस्था है, तो उसकी सफाई सुनिश्चित रखना चुनौती होगा, क्योंकि कचरा और प्लास्टिक शहरों में भारी मात्रा में जमा होता है।
ऐसे में ड्रेनेज के जाम होने की स्थिति में पानी सीधे सड़क पर भर सकता है। स्लैब संरचना पर लगातार पानी का दबाव क्रैक, लीकेज और यूटिलिटी क्षति का खतरा बढ़ाता है।
गौरतलब है कि स्लैब के नीचे यूटिलिटी रखना फायदे का मॉडल है, परन्तु इसके लिए सुरक्षा, वेंटिलेशन, नियमित निरीक्षण एवं सफाई का अत्यंत सुव्यवस्थित सिस्टम चाहिए। नगर निगमों और स्थानीय निकायों में अक्सर मानव-शक्ति और तकनीकी साधनों की कमी रहती है। यदि रखरखाव समय पर न हो, तो पाइप लीकेज, गैस जमा होना, विद्युत जोखिम और अग्नि खतरे जैसी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
तमाम चुनौतियों के बावजूद इस तरह की सड़कों का निर्माण नगरों को बार-बार की सड़कों की मरम्मत, नुकसान, धूल आदि से बचा सकता है और दूरगामी नजरिया से देखा जाए तो अर्थ की समस्या से जूझ रहे नगरीय निकायों को लंबे समय के लिए बेहतरीन और सस्ता विकल्प साबित हो सकता है।
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धन्यवाद,
सुधीर मिश्रा










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