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#धमाका_न्यूज: ट्रांसपोर्ट नगर का मामला, आदिवासियों की जमीन पर बुलडोजर चलाने का आरोप

गुरुवार, 4 दिसंबर 2025

/ by Vipin Shukla Mama
*शीर बांसखेड़ी के पट्टेधारी आदिवासी बोले, सौ साल की खेती-बस्ती उजाड़ी जा रही, सहमति तक नहीं ली
शिवपुरी। ट्रांसपोर्ट नगर के निर्माण के नाम पर प्रशासन द्वारा पट्टेधारी आदिवासियों की जमीन पर जबरिया निर्माण कराए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। शीर बांसखेड़ी गांव के आदिवासी परिवारों ने आरोप लगाया है कि वे सौ वर्षों से अधिक समय से जिस जमीन पर खेती करते आ रहे हैं और जहां उनकी पुश्तैनी बस्ती है, उस पर बिना उनकी सहमति के जबरन कब्जा कर निर्माण कराया जा रहा है। अपनी इसी पीड़ा को लेकर वे बीते कई दिनों से प्रशासनिक दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन सुनवाई न होने से आक्रोशित होकर उन्होंने निर्माणाधीन ट्रांसपोर्ट नगर स्थल पर ही डेरा डाल दिया है।
आदिवासियों का कहना है कि उनके पास जमीन के विधिवत पट्टे हैं, इसके बावजूद न कोई समुचित नोटिस दिया गया, न मुआवजा तय किया गया और न ही विस्थापन की कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई। अचानक खेतों में मशीनें उतार दी गईं, फसलें नष्ट कर दी गईं और पक्के निर्माण शुरू कर दिए गए। इससे उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
पीड़ित परिवारों के गोपाल आदिवासी ने बताया कि जिस आवास योजना के तहत उन्हें कुटीर निर्माण की किस्त मिलनी थी, वह भी प्रशासन ने रोक दी है। इससे जिन झोपड़ियों में वे किसी तरह जीवनयापन करते थे, उनका निर्माण भी अधूरा रह गया है। एक ओर जमीन छीनी जा रही है, दूसरी ओर सरकारी योजनाओं का लाभ भी उनसे छीन लिया गया है।
निर्माण स्थल पर बैठे आदिवासियों का कहना है कि यदि उनकी जमीन पर जबरन निर्माण नहीं रोका गया और उन्हें न्याय नहीं मिला तो वे पीछे हटने वाले नहीं हैं। बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं के साथ खुले मैदान में बैठकर उन्होंने प्रशासन के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध दर्ज कराया है।
आदिवासी परिवारों की पीढ़ा जानने सहरिया क्रांति के युवा मौके पर पहुंचे और वस्तुस्थिति जाँची सहरिया क्रांति संयोजक संजय बेचैन ने इस पूरे मामले को गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन बताते हुए प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि आदिवासियों को उनकी पुश्तैनी जमीन से बेदखल करना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि संविधान में मिले उनके अधिकारों पर सीधा हमला है। जब तक पीड़ितों को न्याय, मुआवजा और वैकल्पिक पुनर्वास नहीं मिलता, तब तक कोई भी निर्माण करना अत्याचार माना जाएगा ।
प्रशासन की चुप्पी और असुनवाई ने इस पूरे प्रकरण को और संवेदनशील बना दिया है। अब देखना होगा कि शासन इस आदिवासी विस्थापन के दर्द को कब और कैसे सुनता है।










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