- सीसीएफ़ की ई संगोष्ठी में उभरकर आये मतभेद
भोपाल। भोपाल की सहायक जीएसटी कमिश्नर रक्षा दुबे चौबे कहती है बालिकाओं के विवाह की उम्र 18 से बढाकर 21 किया जाना उचित नही है क्योंकि परिपक्वता का सवाल मतदान के अधिकार को निर्धारित करते समय 18 साल को उचित मानता है तब निजी मामले में यही पैमाना कैसे अपरिपक्व हो सकता है।बीजेपी की राष्ट्रीय सचिव सुखप्रीत कौर का मत है कि विवाह की उम्र समानता और बेहतर शिक्षा के मद्देनजर 18 से बढ़कर 21 होनी ही चाहिये क्योंकि जब 21 साल तक देश की बेटियां पढ़ेगी तब एक नए भारत का आविर्भाव होगा।
इन जोरदार तर्कों औऱ दावों के साथ आज " क्या बालिकाओं की शादी की उम्र 21 बर्ष होनी चाहिये?" विषयक ई संगोष्ठी सम्पन्न हुई। चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 21 वी संगोष्ठी में इस बार विभिन क्षेत्रों की 15 लब्ध प्रतिष्ठित महिला वक्ताओं ने भागीदारी की।
भोपाल की मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी शशि ठाकुर का कहना था कि 18 से 21 वर्ष विवाह की आयु सीमा बढ़ाने से लड़कियों में शिक्षा का स्तर ऊंचा होगा। इससे विवाह मामलों का लिंगभेद भी खत्म होगा। डॉ ठाकुर ने मेडिकल साइंस के विभिन्न पैरामीटर्स के आधार पर 21 बर्षीय विवाह कानून की वकालत की।ओबेदुल्लागंज की सरपंच भक्ति शर्मा ने 21 बर्षीय विवाह प्रस्ताव को उचित नही माना और कहाकि आज का सामाजिक और पारिवारिक माहौल एक तरह की खुली सँस्कृति को पोषित कर रहा है जिसके चलते प्यूबर्टी विकास जल्द हो रहा है ऐसे में 21 साल तक हर तबके की बेटियों को विवाह तक रोके रखना व्यवहारिक नही है। पॉक्सो कोर्ट में अभियोजन अधिकारी मनीषा पटेल ने अपने दैनंदिन अनुभव के आधार पर साफगोई से कहा कि अगर 21 साल बलिका के विवाह की आयु तय की जाती है तो यह कानून व्यवस्था के लिए एक चुनौती साबित होगा क्योंकि इसके माध्यम से पॉक्सो केसों की संख्या बढ़ेगी लोग इसका दुरुपयोग करेंगे।जेजेबी मेंबर भोपाल प्रतिभा पांडे ने कहा कि बालिका की आयु बढ़ाने से नही मानसिकता में बदलाब की अबश्यकता है।विवाह की उम्र 3 साल बढ़ाना उन परिवारों के लिए बोझ साबित होगा जो बालिकाओं को केवल विवाह तक रखना चाहते है।
ई संगोष्ठी में सहायक जीएसटी कमिश्नर रक्षा दुबे चौबे का स्पष्ट मत था कि जैविकीय औऱ सामाजिक रूप से हमें यह समझना ही होगा कि विवाह परिवार और समाज का दायित्व है औऱ यह उन्मुक्त यौन सबंधो की जगह इसके सामाजिक नियमन की एक अधिमान्य व्यवस्था है।बालिकाओं का पालन पोषण,शिक्षा,कैरियर को बनाना समाज का दायित्व है अगर यह 18 साल में सहायक नहीं है तो अगले 3 साल में कैसे सहायक हो सकते है।
डॉ निवेदिता शर्मा सदस्य, बाल कल्याण समिति, भोपाल ने बालिकाओं की शादी की उम्र बढ़ाने से असहमति व्यक्त की लेकिन विवाह के लिए समान आयु की पैरवी की। उन्होने कहा कि उम्र 18 हो या 21 हो लडक़े और लडक़ी के विवाह की आयु समान होनी चाहिए। उन्होने कहा कि वर्तमान कानून के हिसाब से 18 वर्ष की होते ही लडक़ी तो व्यस्क महसूस करती है जबकि उससे विवाह की इच्छा रखने वाले 21 वर्ष से कम आयु के लडक़े को यह अधिकार नहीं होता और ऐसे मामले में विवाह भी हो जाता है तो ऐसी परिस्थिती में हमें ऐसा रास्ता निकालना पड़ता है कि लडक़ी का जीवन प्रभावित ना हो। श्रीमती निवेदिता सक्सेना अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति, झाबुआ ने अपने विचार रखते हुए कहा कि बालिकाओं के विवाह की उम्र बढ़ाने से हमारे सामाजिक परिवेश में बाल विवाह के मामले बढ़ जाएंगे। कई समाजों में तो 18 वर्ष तक भी लडक़ी के विवाह का इंतजार करना परिवार को भारी लगता हैं ऐसे लोगों के लिए 21 वर्ष की उम्र विवाह की न्यूनतम आयु कर देना एक बोझ की तरह हो जाएगा। उन्होने कहा कि विवाह की आयु परिवर्तन के बजाए लड़कियों के कम उम्र में विवाह रोकने हेतु सुधारात्मक उपाय अपनाए जाने चाहिए।
आउटलुक की मध्यप्रदेश की प्रमुख संवाददाता वरिष्ठ पत्रकार केएस सायनी ने लडक़े और लडक़ी हेतु विवाह की आयु समान होने की बात कही। शिक्षाविद् डॉ.भारती शर्मा विवाह की उम्र बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा कि लड़कियों को 3 वर्ष अधिक देकर हम बहुत कुछ दे सकते हैं। उन्हें शिक्षा के लिए अधिक समय मिल पाएगा क्योंकि भारतीय परिवेश में कई बार लड़कियों के विवाह तक का ही इंतजार होता है फिर उनकी शिक्षा बंद हो जाती है। शारीरिक एवं मानसिक विकास भी 18 वर्ष की उम्र तक पूर्ण नहीं हो पाता है। कम उम्र में गर्भधारण में मातृ-शिशु मृत्युदर बहुत अधिक है, विवाह की आयु बढ़ाने से इसमें कमि आएगी। अधिवक्ता मोना लक्ष्मी ने कहा कि हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 में विवाह की आयु लडक़े के लिए 18 वर्ष थी और लडक़ी के लिए 15 वर्ष। बाद में 1978 में हुए संसोधन के बाद यह 21 और 18 वर्ष हुई है। उन्होने कहा कि भारतीय परिवेश में लड़कियों की विवाह की उम्र बढ़ाने फायदे और नुकसान दोनो ही हैं अत: इस विषय पर समाज को यह तय करने दिया जाना चाहिए कि विवाह हेतु उम्र बढ़ाई जाए अथवा नहीं। खुशीलाल आयुर्वेदिक हॉस्पिटल की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ कामिनी ने अपने विचार रखते हुए लड़कियों के विवाह की उम्र 21 वर्ष किए जाने के प्रस्ताव का स्वागत करते हुए कहा कि लड़कियों में विवाह तक जितनी मैच्योरिटी होगी वह अपनी स्वयं की और अपने बच्चे की अच्छे से देखभाल कर सकेगी। उसका सिविक सेंस अच्छे से डवेलप हो जाएगा। संगोष्ठी को उदय संस्था की राखी रघुवंशी, मुस्कान संस्था की शिवानी तनेजा, आवाज संस्था के प्रशांत ने भी संबोधित किया।
संगोष्ठी में मत मतांतर की तर्कपूर्ण स्थिति के मद्देनजर यह निर्णय लिया गया कि फाउंडेशन इस विषय पर अगली ई संगोष्ठी में फिर से विचार विमर्श करेगा। फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने बताया कि अगले सेमिनार इस विषय पर न्यायपालिका, पुलिस और कानूनविदों को जोड़ा जाएगा।
फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र ने सभी महिला वक्ताओं का धन्यवाद दिया। इस सेमिनार में मप्र के अलावा, यूपी, असम, बिहार, झारखण्ड, छतीसगढ, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, बंगाल, त्रिपुरा के बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

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